Bengal Communal Violence: पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में हिंसा में तीन लोगों की मौत हो गई है और कई लोग घायल हो गए हैं। इस हिंसा की वजह से लोगों को अपना घर तक छोड़कर जाना पड़ा है। आठ साल की बच्ची को अपनी गोद में लेकर बैठी सप्तमी मोंडोल ने कहा कि क्या वह अपने गांव फिर से वापस लौट पाएंगी। उनका गांव गंगा के उस पार 60 किलोमीटर दूर है।

सप्तमी के अलावा अपने घरों से भागकर स्कूल में शरण लेने वाले 400 से ज्यादा पुरुष, महिला और बच्चे हैं। मुर्शिदाबाद में हुई हिंसा में अब तक 200 से ज्यादा गिरफ्तारियां की गई हैं और पुलिस का दावा है कि हालात सामान्य हो रहे हैं। लेकिन जो लोग संकट से भाग गए हैं, वे इस बारे में आश्वस्त नहीं हैं। धूलियान की रहने वाली सप्तमी ने कहा, ‘शुक्रवार को भीड़ ने हमारे पड़ोसी के घर में आग लगा दी और हमारे घर पर पत्थरबाजी की। मेरे माता-पिता और मैं अंदर छिप गए और शाम को जब भीड़ चली गई तो हम वहां से निकल गए। तब तक बीएसएफ ने गश्त शुरू कर दी थी। हमारे पास सिर्फ वही कपड़े हैं जो हमने पहने हुए हैं। हम बीएसएफ की मदद से घाट तक पहुंचे।’

हम दूसरों की जमीन पर शरणार्थी बन गए – सप्तमी

सप्तमी की मां महेश्वरी मंडल ने बताया, ‘अंधेरा हो चुका था, हम नाव पर सवार होकर नदी पार कर गए। दूसरी तरफ एक गांव था, जहां एक परिवार ने हमें रात भर के लिए आश्रय दिया और कपड़े दिए। अगले दिन हम इस स्कूल में आए।’ सप्तमी ने कहा कि जब हम नदी पार कर रहे थे, तब मेरे बच्चे को बुखार हो गया। अब हम दूसरों की दया पर हैं। हम अपनी ही जमीन पर शरणार्थी बन गए हैं। हम शायद कभी वापस न लौटें अगर वे हम पर फिर से हमला कर दें तो क्या होगा।

पश्चिम बंगाल में भड़की सांप्रदायिक हिंसा

मेरा घर जला दिया गया – तुलोरानी मोंडोल

परलालपुर हाई स्कूल में रहने वाले परिवार सुती, धुलियान और समाहेरगंज जैसे क्षेत्रों से आते हैं। धुलियान की एक महिला तुलोरानी मोंडोल ने कहा, ‘मेरा घर जला दिया गया है। हम अपने इलाके में एक स्थायी बीएसएफ कैंप चाहते हैं; तभी हम वापस लौट सकते हैं।’ लालपुर की रहने वाली एक महिला प्रतिमा मोंडोल ने भी भयावह मंजर को दोहराया। उन्होंने कहा कि दंगा करने पर वह डर के मारे कांप उठीं। उन्होंने कहा, ‘भीड़ ने हमारे घर में तोड़फोड़ की, जबकि हम छत पर छिप गए। अगली शाम, हमने नदी पार करने के लिए नाव ली। मेरा एक साल का बच्चा है।’

धुलियान के सब्जीपट्टी की रहने वाली नमिता मोंडोल ने कहा, ‘हम अपने साथ कुछ भी नहीं ला सके। पुलिस और बीएसएफ आखिरकार चले जाएंगे। तब हमारी सुरक्षा कौन करेगा।’ स्थानीय निवासी रेबा बिस्वास ने इलाके की 9 अन्य महिलाओं के साथ मिलकर दोपहर का खाना बनाया। उन्होंने बताया, ‘हमने उन्हें शुक्रवार रात को अपने घरों में रखा और फिर यहां ले आए।’

परिवारों के रहने का किया गया इंतजाम

कुंभीरा हेल्थ सेंटर के डॉक्टर प्रसेनजीत मोडोंल ने कहा कि यहां एक गर्भवती महिला है। एक अन्य महिला भी थी, जिसका प्रसव होना था, उसके बाद में बेदराबाद के एक हॉस्पिटल में ट्रांसफर कर दिया गया। कालियाचौक 3 के ब्लॉक विकास अधिकारी सुकांत सिकदर ने कहा, “हमने यहां परिवारों के रहने की व्यवस्था की है। हम वयस्कों को चावल, दाल, आलू और अंडे, शिशुओं को शिशु आहार और बच्चों को दूध देते हैं। प्रशासन ने तिरपाल की चादरें और पीने का पानी उपलब्ध कराया है।” पीड़ित महिलाओं ने की BSF के परमानेंट कैंप की मांग