देश का आईटी हब पानी की एक बूंद के लिए भी तरस रहा है। पैसा खर्च कर बड़ी इमारतें तो बना ली हैं, आलीशान बाथरूमों का निर्माण भी हुआ है, लेकिन उन शावरों से पानी आना ही बंद हो चुका है। हालात ऐसे चल रहे हैं कि लोग ऑफिस तक जाने की स्थिति में नहीं है, वर्क फ्रॉम होम की मांग की जा रही है। टैंकरों के जरिए पानी को पहुंचाया जा रहा है, पानी की बर्बादी पर 5000 तक का जुर्माना भी ठोका जा रहा है। ये सबकुछ कर्नाटक के बेंगलुरु में देखने को मिल रहा है।

बेंगलुरु के जल संकट का विश्लेषण

कम होती बारिश और भूजल के स्तर का लगातार गिरना बेंगलुरु की हालत के लिए जिम्मेदार है। बेंगलुरु को 145 लीटर करोड़ पानी कावेरी नदी से मिलता है, 60 करोड़ लीटर बानी बोरवेल से आता है। अब ये दोनों ही स्त्रोत सूख रहे हैं और आईटी हब में हाहाकार मच चुका है। मौसम विभाग का जो अनुमान है, वो भी बेंगलुरु में आए इस महा संकट की तस्दीक करता है। कहा जा रहा है कि कर्नाटक का ये शहर ज्यादा गर्म होता जा रहा है, तापमान असामान्य रूप से बढ़ रहा है।

भारत का भविष्य पानी-पानी कैसे हुआ?

अब बेंगलुरु में इस समय जो हो रहा है, वो सिर्फ एक झांकी मात्र है, उससे ज्यादा भयावह हालत तो देश के दूसरे राज्यों में हो सकती है। कई रिपोर्ट्स, कई स्टडी की जा चुकी हैं, सभी का संकेत साफ है- भारत जल संकट की तरफ तेज गति से आगे बढ़ रहा है। पानी की कमी से लेकर कई जगहों पर पानी की एक बूंद के लिए तरसने जैसे हालात बन सकते हैं। ये कोई एक दिन में नहीं होने वाला है, लेकिन जैसी प्रैक्टिस देखने को मिल रही है, समय के साथ भारत एक खतरनाक दलदल की ओर अग्रसर है।

आबादी ज्यादा, पानी उतना ही कम

ये चिंता की बात है कि भारत में पूरी दुनिया की 17 फीसदी आबादी रहती है, लेकिन उस अनुपात में जब पानी की बात की जाए तो वो सिर्फ 4 प्रतिशत के करीब बैठता है। हैरानी की बात है कि भारत में पूरी दुनिया का सिर्फ 4% शुद्ध जल का स्रोत है। ये आंकड़ा ही बताने के लिए काफी है कि हालात कितने विस्फोटक हैं और डिमांड की तुलना में सप्लाई कम चल रही है।

बिना पानी के रह जाएगी 40 फीसदी आबादी!

इसी चिंता में अगर नीति आयोग की CWMI रिपोर्ट जोड़ दी जाए तो जल संकट और ज्यादा बड़ा दिखने लगेगा। रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर 2 लाख लोगों की मौत होती है, सिर्फ इसलिए क्योंकि उन्हें साफ पानी नसीब नहीं होता। इसी तरह 75 फीसदी घर इस देश में ऐसे चल रहे हैं जहां आज भी पीने का पानी नहीं आता है। 2030 तक तो देश की 40 फीसद आबादी के पास पीने का पानी ही नहीं होगा। ये खतरनाक ट्रेंड बता रहा है कि भारत में जल संकट सिर्फ गंभीर नहीं जानलेवा भी साबित होने वाला है। अभी जो लंबी कतारें दिख रही हैं, वो सिर्फ एक बड़ी और खतरनाक पिक्चर का ट्रेलर है। असल दिक्कतें आने वाले सालों में शुरू होंगी जब मौसम और बदलेगा, ग्लोबल वॉर्मिंग बढ़ेगी और बारिश और ज्यादा अनीवन होती जाएगी।

ग्राउंड वॉटर की चुनौती, जरूरत ही बना सबसे बड़ा संकट

अब पीने के पानी की तो भारत में किल्लत बढ़ेगी, ये नहीं भूलना चाहिए देश ग्राउंड वॉटर भी जरूरत से ज्याद निर्भर चल रहा है। यहां भी पूरी दुनिया का 25 फीसदी ग्राउंड वॉटर तो भारत ही इस्तेमाल कर रहा है। उधर भी 70 फीसदी ग्राउंड वॉटर प्रदूषित बताया जाता है। इस बात की तस्दीक तो ये आंकड़ा भी करता है कि वॉटर क्वालिटी इंडेक्स में भारत 122 में से 120वें पायदान पर आता है, यानी कि पानी की गुणवक्ता जरूरत से ज्यादा ही खराब चल रही है।

आर्थिक संकट खड़ा करेगा पानी की कमी, कई इंडस्ट्री ठप

अब भारत की जैसी हालत चल रही है और जल का संकट लगातार बढ़ता जा रहा है, हर बड़ी एजेंसी मानकर चल रही है कि आर्थिक तौर पर भी ये देश को काफी नुकसान पहुंचाने वाला है। सपने जरूर विकसित भारत के देखे जा रहे हैं, लेकिन उसमें एक बड़ी अड़चन से पानी का संकट ही बनता दिख रहा है। वर्ल्ड बैंक के मुताबिक 2050 तक भारत की जीडीपी 6 फीसदी तक कम हो जाएगी। इसके ऊपर पानी की कमी की वजह से किसानों के लिए खेतीवाडी करना भी मुश्किल होगा जिससे आके चलकर फूड प्रोडक्शन पर असर पड़ेगा। समझने वाली बात तो ये भी है कि टेक्सटाइल, थर्मल पावर कुछ ऐसी इंडस्ट्री हैं जहां पर पानी की जरूरत पड़ती है, ऐसे में उनके काम पर भी बड़े स्तर पर असर होने वाला है।

सरकार अपनी तरफ से क्या कर रही है?

वैसे सरकार इन सभी संकटों से अवगत है, उसे पता है कि पानी की कमी और कम होता जल स्तर पर आने वाले समय में स्थिति को और ज्यादा बिगाड़ने वाला है। इसी वजह से कई परियोजनाएं केंद्र स्तर पर शुरू की गई हैं। उदाहरण के लिए जल शक्ति अभियान, जल जीवन मिशन, अटल भूजल योजना, अमृत सरोवर, नल से जल स्कीम, नमामी गंगे प्रोग्राम, नेशनल वॉटर पॉलिसी शुरू की जा चुकी हैं। कुछ असर भी जमीन पर हुआ है, लेकिन जब तक और स्पष्ट डेटा सामने नहीं आ जाता, इन योजनाओं का लाभ भी उतना नहीं मिल पाएगा।