जांच एजंसी की मानें तो 28, मध्यप्रदेश में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की मानें तो 17 और अपुष्ट सूत्रों या कांग्रेस की मानें तो 45 लोग – जो कहीं न कहीं एक घोटाले की जद में आ रहे थे – अभियुक्त और गवाह, जांच के दौरान ही एक-एक करके काल के गाल में समा गए। अब तक कुख्यात हो चुके मध्य प्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) में हाल में तीन और मुलजिम काल के गाल में समा गए।
आरोपितों में ज्यादातर की मृत्यु या तो हिरासत में हुई, या फिर उनकी जमानत के दौरान। मामले में मध्य प्रदेश हाइकोर्ट भी दखल दे क्योंकि अदालती आदेश के चलते ही बनाए गए विशेष जांच दल की देखरेख में मध्य प्रदेश पुलिस का विशेष जांच दल (एसटीएफ) इसकी जांच कर रहा है। ऐसा दो वर्ष से हो रहा है।
इस मामले में मरने वालों के तार अत्यधिक महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों से भी जुड़े हैं। राज्यपाल रामनरेश यादव के पुत्र शैलेश का नाम इस सूची में सबसे ऊपर है। इसी मामले में वन रक्षकों की भर्ती के मामले में शक की सुई राज्यपाल की ओर भी मुड़ी, पर संवैधानिक कवच के चलते कुछ हो न सका।
इस बार इस मामले में जो दो मौतें हुईं उनमें से एक नरेंद्र सिंह तोमर की थी जिनको पुलिस हिरासत के दौरान में छाती में दर्द हुआ जबकि दूसरे अभियुक्त राजेश आर्य की मौत जमानत के दौरान बीमारी से हुई। तोमर की मौत पर आरोपों-प्रत्यारोपों का सिलसिला जारी है, रहेगा। लेकिन प्रदेश की मौजूदा शिवराज चौहान सरकार की इस पूरे मामले में भूमिका क्या महज एक जांच तक सीमित है। जांच भी वह जिसने अदालती आदेश के बाद जोर पकड़ा।
स्वतंत्र भारत का यह अपनी तरह का पहला ऐसा घोटाला होगा जिसमें अब तक 1800 लोग गिरफ्त में आ चुके हैं जबकि एक हजार और की तलाश है। जिसकी जद में अधिकारी, अभिभावक, छात्र और दलालों के अलावा बड़े-बड़े राजनेताओं के तार जुड़े हैं। न सिर्फ गिरफ्तारियों और अभियुक्तों की नजर में, वरना इसमें रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार का जो नंगा नाच हुआ, उसमें एक अनुमान के अनुसार दो हजार करोड़ से भी ज्यादा की धांधली हुई।
एसटीएफ की दो साल चली जांच के बाद एक विचार यह भी है कि उस घोटाले की अभी कई परतें खुलनी बाकी हैं। जितना जांच एजंसी पहचान पाई है, वह असल घोटाले का 10 फीसद भी नहीं। सच क्या है यह तो पूरी जांच के बाद ही सामने आएगा।
अब तक मौनव्रत धारण किए बैठी सरकार से ऐसी उम्मीद शायद फिजूल ही है कि वह भी उसमें अपनी भूमिका निभाते हुए अपनी राजनैतिक इच्छाशक्ति का प्रयोग उसकी परतें उधेड़ने में करे। यह पूरा मामला किसी एक अंग से न होकर सरकार के सभी अंगों से जुड़ा है जिसमें पुलिस, राजस्व, शिक्षक और आबकारी अधिकारी शामिल हैं। 2007 से 2013 तक डेढ़ लाख के करीब अधिकारी और कर्मचारी चयन प्रक्रिया को पूरा करके कामयाब होकर निकले। हजारों छात्रों को चिकित्सा और दंत चिकित्सा में अवैध प्रवेश मिला। उन सबसे क्या उम्मीद की जाएगी जब वे अपना काम करने उतरेंगे?
इस मामले में पीड़ितों और विपक्ष के अपने इल्जाम हैं। लेकिन सरकार को उन सबकी ओर कोई तवज्जो नहीं। कहीं इस बेरुखी के पीछे कोई बड़ा कारण तो नहीं। प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी की सरकार को कहीं यह चिंता तो नहीं कि घोटाले की परतें खुलते ही कई सफेदपोश बेनकाब हो जाएंगे।
आखिर देश में नरेंद्र मोदी सरकार की नींव ही भ्रष्टाचार के खिलाफ रखी गई है। कई वर्ष तक कांग्रेस के शासनकाल को भ्रष्ट और रिश्वतखोर का दर्जा देकर मोदी ने लोगों को एक भ्रष्टाचार रहित समाज का सपना दिखाया। कहीं मध्य प्रदेश में यह सपना टूट तो नहीं रहा? आखिर इस मामले में भाजपा के नेता ही नहीं वरना कथित तौर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े कुछ लोगों पर भी शक की सुई घूम रही है।
प्रदेश की भाजपा सरकार इसी बात को अपनी उपलब्धि की तरह बखान करती है कि आखिर उसी ने तो जांच के आदेश दिए। लेकिन क्या सरकार के पास जांच के अलावा कोई चारा था। हजारों छात्रों और लोगों के भविष्य से खिलवाड़ करने वाली इस धांधली को क्या यों ही जाने दिया जाता? आरोप तो यह भी है कि जो जांच कर रहे हैं उनमें से भी कुछ को जांच के दायरे में होना चाहिए। प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री कई महीने से जेल में हैं। कांग्रेस की मानें तो बहुत बड़ी कवायद मुख्यमंत्री को जांच के दायरे से दूर करने के लिए भी हो रही है।
इस सारे बवाल के बीच एक मांग मामले की जांच किसी स्वतंत्र एजंसी से कराने की भी है। लेकिन प्रदेश सरकार को यह स्वीकार नहीं। पर क्यों? जब सब कुछ इतना ही पाक-साफ है तो जांच कोई भी करे, क्या फर्क पड़ता है। पूरे मामले में अदालत के दखल से ही दूध का दूध और पानी का पानी होने की उम्मीद है। वरना सरकारी एजंसियों से इंसाफ की उम्मीद कुछ कम ही रहती है।
खास तौर पर तब जबकि प्रदेश के गृहमंत्री बाबूलाल गौर ऐसा कहें, ‘सभी मौतें स्वाभाविक हैं। मुलजिम बीमार हुए और मर गए। सीबीआइ जांच की जरूरत नहीं।’ बहरहाल इस पर वरिष्ठ कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह की हैरत भी कम स्वाभाविक नहीं, ‘बेचारे मुख्यमंत्री (शिवराज चौहान)। सात वर्ष तक इतना बड़ा घोटाला अनवरत चला। एकदम नाक के नीचे। अविश्वसनीय।’
ऐसे में यह सवाल सहज उठता है कि जब सरकार की नजर में सब ठीक है तो जांच चाहे एसटीएफ करे या सीबीआई, क्या फर्क है? लेकिन कुछ तो है जो इससे बचना है।
पिछले एक अरसे में यह देखने में आया है कि मौन शासकों का सबसे बड़ा हथियार है। कांग्रेस के प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने राजनीति में मौन के महत्त्व को स्थापित किया जिसे उनके उत्तराधिकारी मनमोहन सिंह ने बखूबी निभाया। लेकिन लगता है कि यही नुस्खा अब देश के अगले कर्णधारों को भी रास आ रहा है। लिहाजा इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक सब मौन हैं।
किसने क्या कहा…
शर्म और डर से जान दे रहे हैं लोग:
लोग घोटाले में नाम आने के कारण ‘शर्म और डर’ से जान दे रहे हैं। कोई उनकी हत्या नहीं कर रहा। डर और शर्म से वे मस्तिष्काघात, ह्रदयाघात के शिकार हो रहे हैं या आत्महत्या कर रहे हैं। क्योंकि मैंने जब व्यापमं में अपना नाम सुना तो मैं भी सदमे में आ गई।
– उमा भारती, केंद्रीय मंत्री।
जांच का तरीका संदिग्ध:
एसटीएफ की कार्रवाई पूरी तरह लचर है। यह जांच केवल मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, उनके परिवार और उनके निकटस्थ अधिकारियों को बचाने के लिए की जा रही है। जिस तरह जांच की जा रही है उससे किसी भी दोषी को सजा नहीं मिल सकती है।
-दिग्विजय सिंह, वरिष्ठ कांग्रेस नेता/पूर्व मुख्यमंत्री
चरित्र हनन की राजनीति:
कांग्रेस के पास कोई मुद्दा नहीं है, इसलिए वह चरित्र हनन की राजनीति कर रही है। राज्य में दस साल से भाजपा की सरकार है और वह किसानों के लिए काम कर रही है। कांग्रेस का जनाधार घट रहा है, जिससे वह परेशान है और चरित्र हनन की राजनीति कर रही है।
-शिवराज सिंह चौहान, मुख्यमंत्री, मप्र
घोटाले का आंकड़ा:
घोटाले में एसटीएफ ने अब तक 55 मुकदमे दर्ज किए हैं। इनमें कुल 2530 लोगों को आरोपी बनाया गया हैं। अब तक 1980 लोग गिरफ्तार किए गए हैं। 550 लोग अभी भी फरार हैं। 28 मामलों में चालान पेश किया जा चुका हैं। व्यापमं घोटाला सिर्फ मध्यप्रदेश तक ही सीमित नही हैं। इसके तार बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली सहित कुछ अन्य राज्यों से भी जुड़े हुए हैं।
भर्तियों का भ्रमजाल:
व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) मध्य प्रदेश में उन पदों की भर्तियां करता है, जिनकी भर्तियां मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग नहीं करता। साथ ही ये मप्र पीएमटी के माध्यम से मेडिकल कालेजों में प्रवेश सूची तैयार करता है। घोटाले में आरोप है कि कंप्यूटर सूची में हेराफेरी करके अनुचित तरीके से अपात्र लोगों को भर्ती कराया गया। इसके जरिए संविदा शिक्षक वर्ग-1 और वर्ग-2 के अलावा कांस्टेबल, कनिष्ठ आपूर्ति अधिकारी और नापतौल निरीक्षक आदि की भर्तियां की गर्इं। व्यापमं की तमाम भर्तियों में से करीब 1000 भर्तियों को संदिग्ध माना गया है।
डीआइजी आरके शिवहरे को गिरफ्तार किया गया है। उन पर आरोप है कि उन्होंने अपनी बेटी नेहा को प्री-पीजी मेडिकल में अनुचित तरीके से भर्ती कराया था। मामले में अरबिंदो मेडिकल कॉलेज के विनोद भंडारी, पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा और उनके ओएसडी ओपी शुक्ला गिरफ्तार किए जा चुके हैं। यह मामला 2013 में सामने आया था। मप्र हाई कोर्ट की निगरानी में अब एसटीएफ इसकी जांच कर रहा है।
तय थी कीमत:
परिवहन विभाग में कंडक्टर पद के लिए 5 से 7 लाख, फूड इंस्पेक्टर के लिए 25 से 30 लाख, सब इंस्पेक्टर की भर्ती के लिए 15 से 22 लाख रुपए।
नकल के लिए ऐसी अकल:
उम्मीदवार को फर्जी परीक्षार्थी के करीब बिठाया जाता था ताकि वो नकल कर सके। या फिर उम्मीदवार की जगह फर्जी छात्र बिठा दिए जाते थे। उम्मीदवार खाली उत्तर पुस्तिका छोड़ देता था जिसे बाद में भरा जाता था, रिजल्ट के अंकों को बाद में बढ़ा दिया जाता था
व्यापमं: रोजगार से मौत का घोटाला
व्यापमं मामले में 1000 फर्जी भर्ती की बात तो मप्र के मुख्यमंत्री विधानसभा में स्वीकार कर चुके हैं। एसआइटी ने कोर्ट में 42 लोगों की सूची दी, जो इस मामले से जुड़े थे, जिनकी अचानक मौत हो गई। मारे गए लोगों में सबसे बड़ा नाम मध्य प्रदेश के राज्यपाल राम नरेश यादव के बेटे शैलेश का था।
एसटीएफ ने माना है कि 23 आरोपियों की मौत हुई है। पिछले पंद्रह दिनों में हुई 5 मौतों को जोड़ दें तो संख्या 28 हो जाती है, कुछ का दावा है कि 40 आरोपियों की मौत हो चुकी है। 2012 में व्यापमं की आरोपी आदिवासी लड़की नम्रता दामोर की लाश ट्रेन की पटरी पर मिली। उसकी मौत के बाद उसके घरवालों से बात करने गए आज तक के रिपोर्टर अक्षय सिंह की भी मौत उसी के घर में संदिग्ध हालात में हो गई।
अपने अपने बोल…
सीबीआइ जांच क्यों नहीं:
व्यापमं घोटाले की जांच जैसे-जैसे सफेदपोशों के करीब आ रही है, आरोपियों की मौतें हो रही हैं। आखिर 90 अरब के इस घोटाले में इतनी मौतों के बाद भी सीबीआइ जांच क्यों नहीं हो रही है? यह मामला तुरंत सीबीआइ को सौंपना चाहिए।
-अरुण यादव, मप्र प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष
बड़े षड्यंत्र की ओर इशारा:
व्यापमं घोटाले में 40 से ज्यादा आरोपियों की मौत बड़े षड्यंत्र की ओर इशारा करती है। नैतिकता के नाते इस सरकार को तुरंत इस्तीफा दे देना चाहिए और पूरा मामला सीबीआइ को सौंप देना चाहिए।
-आलोक अग्रवाल, प्रदेश संयोजक, आप
कांग्रेस के पास मुद्दा नहीं:
कांग्रेस के पास कोई मुद्दा नहीं है, इसलिए वह इसे तूल दे रही है। इस पर अफवाह नहीं फैलानी चाहिए।
– उमाशंकर गुप्ता, भाजपा नेता
फर्जी शीट:
नेताओं के बिना किसी सूत्र का खुलासा करते हुए जारी की गई एक्सेल शीट फर्जी है। कांग्रेस, सीएम शिवराज सिंह चौहान की छवि धूमिल करने के लिए ऐसा कर रही है।
– नंदकुमार सिंह चौहान, अध्यक्ष मप्र भाजपा
बेवजह है कांग्रेस का हमला:
सुप्रीम कोर्ट पहले ही कांग्रेस की इस मामले की सीबीआइ जांच की मांग ठुकरा चुका है। अब कांग्रेस यह फर्जी एक्सेल शीट जारी कर मामले को दोबारा जिंदा करने का प्रयास कर रही है। विधानसभा, लोकसभा और स्थानीय निकाय चुनाव में हार का मुंह देखने के बाद कांग्रेस नेता इस घोटाले को मुद्दा बनाकर भाजपा सरकार पर हमला कर रहे हैं।… विनय सहस्त्रबुद्धे, मप्र भाजपा प्रभारी
जो आएगा वो जाएगा ही:
व्यापमं घोटा से जुड़े लोग अगर मर रहे हैं तो उसमें सरकार क्या कर सकती है। मौत पर राजा, न फकीर, किसी का नियंत्रण नहीं होता। यह तो प्रकृति का नियम है। कोई आया है तो जाएगा। इसे किसी से जोड़कर नहीं देख सकते। ज्यादातर मौतें प्राकृतिक हैं।
– बाबूलाल गौर, गृह मंत्री, मप्र
कुछ मौतों की वजह डिप्रेशन भी:
जिन लोगों को जबरन इस घोटाले में खींचा गया, वे डिप्रेशन में थे और कुछ मौतों की एक वजह यह भी हो सकती है। मैं कुछ ऐसे लोगों को जानता हूं, जिन्हें जबरदस्ती इसमें शामिल कर दिया गया और वे इस तरह के घोटाले में शामिल होने का दबाव नहीं झेल सके।
– कैलाश विजयवर्गीय, उद्योग मंत्री/भाजपा महासचिव
(मुकेश भारद्वाज)