प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजमाता विजयाराजे सिंधिया के सम्मान में विशेष स्मारक सिक्का जारी किया है। यह सिक्का विजयाराजे सिंधिया के जन्म शताब्दी वर्ष के समापन दिवस समारोह के अवसर पर जारी किया गया। राजमाता विजयाराजे सिंधिया की तारीफ में पीएम मोदी ने कहा कि पिछली शताब्दी में भारत को दिशा देने वाले कुछ एक व्यक्तित्वों में राजमाता विजयाराजे सिंधिया भी शामिल थीं। वह केवल वात्सलमूर्ति ही नहीं थीं एक निर्णायक नेता और कुशल प्रशासक भी थीं।

ग्वालियर राजघराने की महारानी के व्यक्तिव का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक बार उन्होंने तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया था। जिससे देश की राजनैतिक दशा ही बदल गई थी। विजयाराजे सिंधिया एक किंगमेकर के तौर पर जानी जाती हैं। यह बात है 1966 की है। उस वक्त मध्य प्रदेश में डीपी मिश्रा की सरकार थी। डीपी मिश्रा का उस वक्त खासा दबदबा था क्योंकि उन्हें इंदिरा गांधी का करीबी माना जाता था। उस दौरान विजयाराजे सिंधिया ग्वालियर से सांसद थी और पूरे ग्वालियर में उनका खासा दबदबा था।

इस बीच ग्वालियर में एक छात्र आंदोलन हुआ, जिसे डीपी मिश्रा बलपूर्वक इस आंदोलन को खत्म करने में जुटे थे और विजया राजे सिंधिया सांसद होने के नाते छात्र आंदोलन को समर्थन दे रही थीं। आंदोलन तो खत्म हो गया लेकिन इससे डीपी मिश्रा और विजया राजे सिंधिया के बीच मतभेद उभर आए थे।

इस दौरान सरगुजा महाराज के महल में पुलिस का आना विजया राजे सिंधिया के स्वाभिमान को चोट पहुंचा गया था। इस बात से नाराज सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ने का ऐलान कर दिया। अगले ही साल विधानसभा और लोकसभा चुनाव होने थे। उस चुनाव में विजया राजे सिंधिया विधानसभा और लोकसभा दोनों चुनाव लड़ीं। विधानसभा चुनाव में वह पहली बार जनसंघ (मौजूदा भाजपा) के टिकट पर चुनाव लड़ीं और लोकसभा का चुनाव निर्दलीय गुना से लड़ा।

विजयाराजे सिंधिया दोनों जगह चुनाव जीतीं। हालांकि मध्य प्रदेश में फिर से डीपी मिश्रा की सरकार बनी। इधर रीवा रियासत के जागीरदार और कांग्रेस नेता गोविंद नारायण सिंह ने डीपी मिश्रा से नाराजगी के चलते 35 विधायकों के साथ जनसंघ को समर्थन दे दिया। इससे डीपी मिश्रा की सरकार गिर गई और जनसंघ की सरकार बनी।

विजया राजे की यह इंदिरा गांधी को सीधे चुनौती थी। इसके चलते इंदिरा ने गोविंद नारायण सिंह को फिर से कांग्रेस में लाने की कोशिश की और इंदिरा की कोशिश रंग भी लायी और 20 महीने बाद ही गोविंद नारायण सिंह वापस कांग्रेस में लौट गए और जनसंघ की सरकार गिर गई।