ब्रिटिश सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को भारत के भगोड़े शराब कारोबारी विजय माल्या की प्रत्यर्पण के खिलाफ की गई अपील ठुकरा दी है। इसे भारत की बड़ी जीत माना जा रहा है। भारत और ब्रिटेन के बीच मौजूदा संधि के मुताबिक, जल्द ही माल्या को यूके से वापस भारत भेजे जाने का रास्ता साफ हो सकता है।
गौरतलब है कि माल्या की भारत प्रत्यर्पित किए जाने की अपील पिछले महीने ही ब्रिटेन हाईकोर्ट ने भी रद्द कर दी थी। माल्या पर एसबीआई और अन्य बैंकों से किंगफिशर एयरलाइंस के लिए लोन लेकर उसे न चुकाने, धोखाधड़ी और मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप हैं।
सबसे पहले भारत की अपील पर लंदन की वेस्टमिंस्टर मजिस्ट्रेट कोर्ट ने ही माल्या के प्रत्यर्पण को मंजूरी दी थी। इसके खिलाफ माल्या ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी और प्रत्यर्पण रद्द करने की मांग की थी। 20 अप्रैल को हाईकोर्ट में उसकी याचिका खारिज कर दी गई, जिसके बाद उसके पास सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने के लिए 14 दिन का समय था। अदालत ने ब्रिटेन के प्रत्यर्पण कानून 2003 की धारा 36 और धारा 118 के तहत 28 दिन की अवधि तय की है जिसके भीतर प्रत्यर्पण प्रक्रिया होनी चाहिए।
सैद्धांतिक रूप से अगले कदम के तौर पर माल्या अपने प्रत्यर्पण को रोकने के लिए यूरोपियन कोर्ट ऑफ ह्यूमन राइट्स (ईसीएचआर) में आवेदन कर सकता है। वह भारत में निष्पक्ष सुनवाई का मौका न मिलने का हवाला दे सकता है। इस समझौते में ब्रिटेन भी एक पक्ष है। अगर ईसीएचआर में इस तरह का आवेदन किया जाता है तो उसका फैसला आने तक प्रत्यर्पण की प्रक्रिया रुक जाएगी। हालांकि, ईसीएचआर में अपील के बाद भी माल्या के लिए सफलता की बहुत कम गुंजाइश होगी क्योंकि उसे साबित करना होगा कि इन आधारों पर ब्रिटेन की अदालतों में उसकी दलीलें पहले खारिज हो चुकी हैं।
माल्या को भारत सरकार ने भगोड़ा घोषित कर रखा है। वह मार्च 2016 से ब्रिटेन में है। माल्या को एक प्रत्यर्पण वारंट पर अप्रैल 2017 में यहां गिरफ्तार किया गया था। तब से वह जमानत पर है।