विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत के आरक्षण नीति की समीक्षा के सुझाव का आज समर्थन किया और केंद्र से कहा कि वह यह पता लगाने के लिए एक न्यायिक आयोग का गठन करे कि लाभार्थी जातियों को इसकी अब जरूरत है या नहीं।
विहिप के संयुक्त महासचिव सुरेंद्र जैन ने आरक्षण व्यवस्था की समीक्षा पर जोर देते हुए कहा कि भागवत ने जो सुझाव दिया वह कोई नया नहीं है क्योंकि संविधान निर्माताओं ने भी 10 वर्ष बाद आरक्षण की समीक्षा की परिकल्पना की थी।
विहिप ने समीक्षा पर जोर तब दिया है जब भाजपा ने भागवत की टिप्पणी से स्वयं को अलग कर लिया है और कहा है कि वह ऐसी किसी भी समीक्षा के खिलाफ है।
जैन ने कहा, ‘‘यह पता लगाने का बिल्कुल सही समय है कि क्या जिन जातियों को आरक्षण मुहैया कराया गया था उन्हें उससे लाभ हुआ है या नहीं। यह भी पता लगाने की जरूरत है कि जिन जातियों को आरक्षण मिल रहा है उन्हें भविष्य में इसकी जरूरत है या नहीं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘विहिप आरक्षण की समीक्षा करने के लिए एक न्यायिक आयोग के गठन की मांग उठाती रही है क्योंकि हम इसे एक राजनीतिक मुद्दे की बजाय एक राष्ट्रीय मुद्दा मानते हैं।’’
उन्होंने यद्यपि जोर देकर कहा कि विहिप ने कभी भी इसे ‘‘समाप्त करने’’ की मांग नहीं की। उन्होंने भागवत की आलोचना किये जाने के लिए ‘‘क्षुद्र राजनीति’’ को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि ‘‘गैर राजनीतिक’’ आयोग का गठन होने से इस मुद्दे पर राजनीति में लिप्त लोग दरकिनार हो जाएंगे।
जैन ने कहा कि विहिप का मानना है कि एक न्यायिक आयोग के गठन के बाद उसकी सिफारिशों को सार्वजनिक चर्चा के लिए जनता के समक्ष रखे जाने की जरूरत है। उसके बाद आरक्षण की जरूरत पर अंतिम निर्णय के लिए इस पर संसद में चर्चा होनी चाहिए।
पटेल और जाटों द्वारा आरक्षण की मांग की ओर इशारा करते हुए जैन ने कहा कि वे समुदाय भी आरक्षण के लाभ की मांग कर रहे हैं जो समाजिक और आर्थिक रूप से मजबूत हैं। उन्होंने कहा कि यह समाज के लिए ‘‘अपशकुन’’ है।