वाराणसी की एक अदालत ने गुरुवार को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के सर्वेक्षण की अनुमति दे दी। अदालत ने उत्तर प्रदेश सरकार को सर्वेक्षण की लागत वहन करने का निर्देश दिया। अब अयोध्या की तरह अब ज्ञानवापी मस्जिद की भी खुदाई कर ASI मंदिर पक्ष के दावे की प्रमाणिकता को परखेगी।
ज्ञानवापी परिसर के पुरातात्विक सर्वेक्षण की याचिका पर सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट में 2 अप्रैल को बहस पूरी हुई थी। कोर्ट ने इस मामले में सभी पक्षों की दलील सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा था। ज्ञानवापी मस्जिद प्रबंधन समिति ने याचिका का विरोध किया था। इसके विरोध में अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी ने अदालत का दरवाजा खटखटाया था। सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और अंजुमन इंतेज़ामिया कमेटी ने तर्क दिया था कि याचिका धार्मिक पूजा अधिनियम 1991 की जगहों के तहत बनाए रखने योग्य नहीं है।
अदालत का आदेश वकील विजय रस्तोगी की याचिका पर आया। उन्होंने मांग की थी कि ज्ञानवापी मस्जिद में प्रवेश करने वाली भूमि हिंदुओं के हवाले की जाए। उन्होंने दावा किया कि 1664 में मुगल सम्राट औरंगजेब ने 2000 वर्षीय काशी विश्वनाथ मंदिर के एक हिस्से को मस्जिद बनाने के लिए नीचे खींचा था। रस्तोगी ने दिसंबर 2019 में स्वंयभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर की ओर से दीवानी अदालत में मस्जिद परिसर के सर्वेक्षण का अनुरोध करते हुए एक आवेदन दायर किया था।
विजय रस्तोगी ने बताया कि कोर्ट ने केंद्र सरकार और उत्तर सरकार को पत्र के जरिए इस मामले में पुरातत्व विभाग की पांच सदस्यीय टीम बनाकर पूरे परिसर के पुरातात्विक सर्वेक्षण करने का आदेश दिया है। सर्वेक्षण के बाद ये साफ हो जाएगा कि विवादित स्थल कोई मस्जिद नहीं, बल्कि आदि विशेश्वर महादेव का मंदिर है।
गौरतलब है कि इसी तरह की प्रक्रिया अयोध्या के राम मंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद का निपटारा करने के लिए अमल में लाई गई थी। ASI की रिपोर्ट के आधार पर ही कोर्ट ने विवादित जगह पर मंदिर होने को मान्यता दी थी। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने अपने फैसले में कहा था कि विवादित जगह पर राम मंदिर बनना चाहिए। मस्जिद के लिए दूसरी जगह पर जमीन दी गई है।