पिछले सप्ताह मैंने राजस्थान के देहात में दो दिन बिताए। लोकसभा चुनाव जब पास आते हैं तो मेरे जैसे पत्रकार, जो राजनीति और शासन के बारे में लिखते हैं, ऐसी यात्राओं पर अक्सर निकलते हैं। सबके अपने तरीके हैं राजनीतिक हवा का रुख जांचने के। मेरा अपना तरीका है कि मैं सड़क के रास्ते घूमने निकलती हूं और जब कोई ऐसा गांव दिखता है, जिसमें मुझे लगे कि रुकना चाहिए तो रुक कर गांव वालों से पूछती हूं कि पिछले पांच सालों में उनके जीवन में किस किस्म के परिवर्तन आए हैं। या आए भी हैं कि नहीं। सो, ऐसा मैंने इस बार भी किया।
शुरू में स्पष्ट करना जरूरी समझती हूं कि यह एक ऐसा चुनाव है, जिसमें ज्यादातर लोग मानते हैं कि ‘आएगा तो मोदी ही’। कुछ ऐसे भी मिले हैं मुझे जो सवाल का जवाब सवाल में देते हुए कहते हैं, ‘आप बताइए कि दूसरी तरफ कोई है भी, जिसके लिए हम वोट देने का सोच भी सकते हैं?’ लेकिन ऐसे लोग मिले मुझे। ऐसा कहने के बाद, लेकिन यह भी कहना जरूरी समझती हूं कि अगर मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बनते हैं तो इसलिए नहीं कि आम मतदाता मान चुके हैं कि मोदी ने इतना अच्छा काम किया है पिछले दशक में कि उनके सपनों का भारत बन चुका है।
इन इश्तिहारों में मोदी की ‘गारंटी’ है कि ‘नए भारत’ का निर्माण धूमधाम से शुरू हो गया है
देहातों में निकलते ही मालूम पड़ता है कि जिस चमकते भारत को हम मोदी के इश्तिहारों में देखते हैं, वह यथार्थ से बहुत दूर है। मोदी के इश्तिहार इतने दिखते हैं टीवी पर इन दिनों कि कई बार लगता है कि इश्तिहारों में समाचार देख रहे हैं। समाचारों में इश्तिहार नहीं। इन इश्तिहारों में मोदी की ‘गारंटी’ है कि ‘नए भारत’ का निर्माण धूमधाम से शुरू हो गया है। आलीशान हवाई अड्डे, चमकती रेलगाड़ियां और हाइवे ऐसे कि जैसे हमने कांग्रेस के लंबे दौर में सपनों में भी नहीं देखे थे। मेरे मन में यही ‘नए भारत’ की तस्वीर थी, जब पिछले हफ्ते शहरी इलाकों को छोड़ कर देहाती इलाकों में निकली।
पहली बात यह कहना चाहती हूं कि सड़कें अब इतनी अच्छी बन चुकी हैं कि गांवों में पहुंचना आसान हो गया है। वे दिन याद हैं मुझे जब गांवों के अंदर जाने के लिए गाड़ी से उतर कर पैदल चलना पड़ता था गंदी, कच्ची सड़कों पर। अब ऐसा नहीं है। मगर यह भी कहना जरूरी समझती हूं कि इन नई, आधुनिक सड़कों के किनारे वही कूड़ा, वही गंदगी, वही लावारिस कूड़ा खाती हुई गायें दिखती हैं जो पहले दिखा करती थीं।
देहाती लोगों से जब बातें हुईं और जब मैंने पूछा कि उनके जीवन में पिछले पांच वर्षों में क्या तब्दीली आई है तो अक्सर जवाब मिला कि उनको कोई खासी तब्दीली नहीं दिखी है, लेकिन जब आगे पूछा कि क्या इंटरनेट जैसी सेवाएं आ गई हैं तो लोगों ने बताया कि सब कुछ आ गया है। फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और कुछ दिनों पहले तक टिकटाक भी आता था। लोगों ने स्वीकार किया कि मोदी की लोकप्रियता बढ़ गई है और एक ‘धारा’ बन गई है उनको फिर से जिताने की।
कारण? राम मंदिर का निर्माण बहुत अच्छा लगा है। अनुच्छेद 370 का रद्द किया जाना लोगों को अच्छा लगा है। ये भी अच्छा लगा है कि मोदी ने देश की छवि बहुत बेहतर की है दुनिया की नजरों में। लाभार्थी मिले जो बहुत खुश हैं कि उनको पेंशन जैसी सुविधाएं बिना रिश्वत दिए मिल जाती हैं और बहुत पसंद है लोगों को कि मुफ्त में उनको राशन मिल रहा है। मग जब मैंने आगे पूछा कि उनकी सबसे बड़ी शिकायत क्या है तो अक्सर यह सुनने को मिला कि उनके सांसद, विधायक गायब और निकम्मे अब भी हैं।
बीकानेर के एक गांव में एक शिक्षित नौजवान ने कहा, ‘अपने सांसद को हम अक्सर देखते हैं संसद के अंदर पगड़ी पहने मोदी के पीछे बैठे हुए’। स्थानीय राजनेताओं के बारे में किसी से तारीफ नहीं सुनी मैंने। सुना यह कि जीतते अगर हैं दोबारा तो मोदी के नाम पर जीतेंगे।
इन दौरों पर मेरी आदत है स्कूलों और अस्पतालों के अंदर जाकर अपनी आंखों से देखना कि इनमें क्या परिवर्तन आया है। और खुशी हुई इस दौरे पर देख कर कि सरकारी स्कूलों में अध्यापक मौजूद थे, लापता नहीं। लेकिन जिन कंप्यूटरों के बिना आधुनिक शिक्षा असंभव है, वे नहीं दिखे। एक गांव में पूछताछ के बाद पता लगा कि सरकारी स्कूलों में प्रायोगिक परियोजना चल रही है अंग्रेजी आठवीं कक्षा के बाद पढ़ाने के लिए। यह कोशिश फिलहाल सफल होती नहीं दिख रही है। अध्यापक खुद इतनी अंग्रेजी नहीं जानते हैं कि पढ़ा सकें और बच्चों के लिए अंग्रेजी अचानक सीखना मुश्किल वैसे भी है। आधुनिक तरीकों से आजकल भाषा सिखाने के कई तरीके हैं जो अभी आए नहीं हैं उन गांवों में, जहां मैं गई थी।
रही बात अस्पतालों की, तो उनका हाल तकरीबन वही है जो पहले था। कोई मरीज अगर बहुत बीमार हो जाए तो इलाज तभी हो सकता है जब उसको किसी बड़े शहर तक ले जाने की व्यवस्था की जाए। मुझे सबसे ज्यादा दुख हुआ यह देख कर कि स्वच्छ भारत अभियान का कोई असर नहीं हुआ है।
आधुनिक सड़कें जरूर बनी हैं, लेकिन उनके दोनों तरफ दिखते हैं वही गंदे, बेहाल कस्बे और गांव जो कई बार ऐसे लगते हैं कि कूड़े के ढेरों तले डूबने वाले हैं। ये गंदगी इसलिए भी ज्यादा चुभी मुझे कि अभी लौटी हूं श्रीलंका से। वहां लंबी सड़क की यात्रा की थी मैंने कोलंबो से अनुराधापुरा तक और वहां से कैंडी तक। श्रीलंका हमसे गरीब देश है, लेकिन वहां इतनी स्वच्छता देखी हर जगह कि सिर शर्मिंदगी से झुक गया।