उत्तर प्रदेश में धर्मांतरण विरोधी कानून के खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय में दायर एक याचिका के जवाब में यूपी सरकार ने हलफनामा दायर किया। जिसमें कहा है कि स्पष्ट है कि किसी भी समुदाय का हित हमेशा व्यक्तिगत हितों से ऊपर रहेगा”। बता दें कि 27 नवंबर 2020 को यह अध्यादेश राज्य में लागू हुआ था। इस अध्यादेश को सही ठहराते हुए राज्य सरकार ने कहा कि इस कानून का उद्देश्य ‘समाज और परिवार की भावना को सुरक्षित रखना’ है। जिसके परिणस्वरूप समाज में संतुलन बनाए रखना है।

दरअसल इलाहाबाद उच्च न्यायालय में यूपी में लागू गैरकानूनी धर्मांतरण निषेध अधिनियम, 2021 को चुनौती देते हुए एसोसिएशन फॉर एडवोकेसी एंड लीगल इनिशिएटिव्स ट्रस्ट (AALI) की तरफ से याचिका दायर की गई थी। इसी के जवाब में सरकार की तरफ से विशेष सचिव (गृह) अटल कुमार राय ने हलफनामा दायर कर जवाब दिया। बता दें कि इस मामले की अगली सुनवाई 15 नवंबर को होगी।

उत्तर प्रदेश गैरकानूनी धर्मांतरण निषेध अध्यादेश के मुताबिक गलत बयानी, अनुचित प्रभाव, जबर्दस्ती और प्रलोभन, किसी कपटपूर्ण तरीके से या विवाह द्वारा एक से दूसरे धर्म में परिवर्तन कराना अपराध है।

हलफनामे में कहा गया कि जब अपने निजी अधिकारों का प्रयोग कर व्यक्ति किसी दूसरे संप्रदाय में जाता है तो वहां के नियमों, मान्यताओं के चलते जटिलताएं आती हैं। हलफनामे में कहा गया है कि इस स्थिति में व्यक्ति की गरिमा से समझौता किया जाता है और व्यक्ति को समानता का आश्वासन नहीं मिलता।

इसमें कहा गया कि इस तरह का धर्मांतरण उस व्यक्ति की मर्जी के खिलाफ होगा जो समाज में दूसरे धर्म के सदस्य के साथ रहना चाहता है, लेकिन अपनी मान्यताओं को छोड़ना नहीं चाहता है। हलफनामे में कहा गया है कि जहां तक ​​”अंतर मौलिक अधिकारों का सवाल है, ये मौलिक अधिकार समुदाय के अधिकारों की तुलना में एक व्यक्ति के अधिकार हैं”।

इस कानून को लेकर उठाए जा रहे सवाल पर हलफनामे में कहा गया है कि सिर्फ यूपी में ही नहीं, बल्कि देश के आठ राज्यों ने भी गैरकानूनी धर्मांतरण रोकने के लिए कानून बनाया है। म्यांमार, भूटान, श्रीलंका और पाकिस्तान में भी धर्मांतरण विरोधी कानून लागू हैं।

हलफनामे में कोर्ट को जानकारी दी गई कि जबरन धर्मांतरण के कई मामलों में एफआईआर में दर्ज किए गए हैं। इसके अलावा इससे जुड़ी घटनाओं की जांच राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से भी की गई है। इसको लेकर एक रिपोर्ट हलफनामे के साथ कोर्ट में पेश की गई। इसमें कहा गया है कि यह कानून जबरदस्ती, धोखाधड़ी और गलत बयानी कर शादी करने पर लागू होगा।

हलफनामे में जानकारी दी गई कि राज्य में धर्मांतरण विरोधी कानून के तहत जुलाई तक 79 मामले दर्ज किए जा चुके हैं। जिसमें 50 मामलों में चार्जशीट और सात में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की गई। अन्य 22 मामलों में जांच चल रही थी।