ब्रह्मदीप अलूने
पिछले कुछ दशकों से बांग्लादेश में इस्लाम के कट्टरपंथी वहाबी रूप का चलन तेजी से बढ़ा है जो जिहादी आतंकवाद को बढ़ावा देता है। बांग्लादेश के कौमी मदरसे जो एक लाख से ऊपर हैं, वे सरकार के नियंत्रण से बाहर हैं। परिवर्तन और परंपरा का निर्णायक संघर्ष अब राष्ट्रीय राजनीति की प्रमुख चुनौती बन गया है। इससे सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्रों में दक्षिण एशिया का बहु-जातीय और बहु-सांस्कृतिक समाज है जो सदियों से एक दूसरे के साथ समन्वय स्थापित कर आगे बढ़ता रहा है। लेकिन कट्टरपंथी ताकतों के प्रभाव से अब इस पर भी संकट गहराने लगा है। दरअसल भारत की भौगोलिक परिस्थितियों की प्रतिकूलताओं ने देश की आंतरिक और बाहरी सुरक्षा के लिए नित नई चुनौतियां पेश की हैं। किसी देश की शक्ति और सामर्थ्य में उसके नागरिकों, संस्कृति और भूगोल का गहरा योगदान होता है। भारत ने जहां बहु-संस्कृतिवाद को अपनाया और पोषित किया, वहीं पड़ोसी देशों के धार्मिक और संस्कृतिवाद ने इस समूचे क्षेत्र की समस्याओं को बढ़ाया ही है।
भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश के सबसे बड़े धार्मिक अल्पसंख्यक हिंदू हैं। उनकी आबादी करीब पौने दो करोड़ है जो देश की कुल आबादी के नौ फीसदी के करीब है। हाल में दुर्गा पूजा के दौरान कट्टरपंथियों ने देश के कई इलाकों में हिंदुओं और उनके मंदिरों को निशाना बनाया। यह इतना सुनियोजितपूर्ण था कि पुलिस भी इन पर काबू नहीं पा सकी। इन सबके बीच बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने धार्मिक हिंसा रोकने और जिम्मेदार लोगों पर कड़ी कार्रवाई का भरोसा तो दिया, लेकिन अप्रत्याशित रूप से भारत को नसीहत भी दे डाली कि वहां ऐसी कोई घटना नहीं होनी चाहिए जिससे बांग्लादेश में रहने वाले हिंदू प्रभावित हों। शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग को समावेशी विचारों के लिए पहचाना जाता है और प्रधानमंत्री स्वयं बांग्लादेश की स्थापना में भारत के योगदान की प्रशंसा करती रही हैं। लेकिन दुर्गा पूजा पर उनकी नियंत्रण और संतुलन की भाषा वहां रहने वाले हिंदू अल्पसंख्यकों की चिंता बढ़ाने वाली है।
बांग्लादेश का नोआखाली इलाका धार्मिक हिंसा से सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है। यह वही क्षेत्र है जहां आजादी के समय भीषण सांप्रदायिक दंगे हुए थे और महात्मा गांधी ने प्रभावितों के बीच जाकर इसे रोकने में सफलता हासिल की थी। इस समय भी हिंदुओं के लिए हालात वहां काफी खराब हैं लेकिन सरकार के नुमाइंदों की नजर 2023 में होने वाले आम चुनाव पर है। जाहिर है, अवामी लीग कट्टरपंथी ताकतों के आगे बेबस महसूस कर रही है। इससे बांग्लादेश में अस्थिरता बढ़ सकती है। दुर्गा पूजा पर देश भर में हुए हमलों में भारत विरोधी नारे लगाए गए।
यह भारत के लिए भी सुरक्षा चुनौती को बढ़ा सकता है। मालूम हो कि भारत और बांग्लादेश के बीच करीब चार हजार किलोमीटर से ज्यादा लंबी सीमा है जो असम, त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल, मेघालय और मिजोरम को छूती है। बांग्लादेश और भारत सीमा के बीच पूर्वोत्तर की भौगोलिक परिस्थितियां घुसपैठ के अनुकूल हैं और इसका फायदा उठा कर पाकिस्तान की खुफिया एजंसी आइएसआइ पूर्वोत्तर के रास्ते भारत में आतंकवादियों को घुसाती रही है। डेढ़ दशक पहले भारत के गृह मंत्रालय ने एक दस्तावेज तैयार किया था, जिसका शीर्षक था- पाकिस्तान के वैकल्पिक परोक्ष युद्ध का आधार। इसमें पाकिस्तान द्वारा विध्वंसक गतिविधियों को तेज करने के लिए चलाए गए नए अभियान के बारे में उल्लेख था। इस दस्तावेज में खासतौर पर बताया गया था कि पाकिस्तान भारत विरोधी अभियानों के लिए बांग्लादेश को एक नए ठिकाने के रूप में विकसित कर रहा है। दस्तावेज में इस बात का भी खुलासा था कि पाकिस्तान ने लगभग दो सौ आतंकवादी प्रशिक्षण शिविरों को पहले ही अपने यहां से हटा कर बांग्लादेश में व्यवस्थित करवा चुका है।
सन 1971 में पाकिस्तान से अलग होकर अस्तित्व में आया बांग्लादेश लंबे समय से राजनीतिक अव्यवस्थाओं से जूझता रहा है। साथ ही इस मुल्क में राष्ट्रीय सांस्कृतिक पहचान का संकट गहराया है। हिंदू वहां रहना चाहते हैं लेकिन उनकी सुरक्षा चिंताओं को जनसंख्या असंतुलन से समझा जा सकता है। 1971 में बांग्लादेश के जन्म के समय हिंदुओं की आबादी बीस फीसद से भी ज्यादा थी, जो अब घट कर महज नौ फीसद तक रह गई है। इसके पीछे बड़ा कारण इस्लामिक कट्टरतावाद को माना जाता है। पिछले कुछ दशकों से बांग्लादेश में इस्लाम के कट्टरपंथी वहाबी रूप का चलन तेजी से बढ़ा है जो जिहादी आतंकवाद को बढ़ावा देता है। बांग्लादेश के कौमी मदरसे जो एक लाख से ऊपर हैं, वे सरकार के नियंत्रण से बाहर हैं।
इन मदरसों को पाकिस्तान और सऊदी अरब से वित्तीय मदद मिलती रही है। इसमें ईशनिंदा को आधार बना कर कट्टरपंथी तत्व अल्पसंख्यकों के खिलाफ दुष्प्रचार करते रहे हैं। इसमें बांग्लादेश का एक प्रतिबंधित राजनीतिक दल जमात-ए-इस्लामी प्रमुख है। जमात देश की सबसे बड़ी इस्लामी राजनीतिक पार्टी है। 1971 के स्वतंत्रता युद्ध में इस दल ने पाकिस्तान का समर्थन किया था। बाद में यह बांग्लादेश के इस्लामीकरण के प्रयास में जुट गया। जमात-ए-इस्लामी वही संगठन है जिसने तालिबान द्वारा अफगानिस्तान पर कब्जा किए जाने के बाद ‘बांग्लादेश बनेगा अफगानिस्तान’ जैसे नारे तक गढ़ डाले। जमात बांग्लादेश को इस्लाम के कट्टर गढ़ के रूप में स्थापित करना चाहता है। इसीलिए वह युवाओं को कट्टरपंथी बना रहा है।
बांग्लादेश में राजनीति शेख हसीना और खालिदा जिया के इर्द-गिर्द ही घूमती रही है। खालिदा जिया को जहां कट्टरपंथी ताकतों का समर्थक माना जाता है, वहीं शेख हसीना उदार और भारत समर्थक मानी जाती हैं। राजनीतिक अस्थिरता से लगातार जूझने वाले देश के लिए शेख हसीना का करीब तेरह साल का शासन अल्पसंख्यकों सहित सभी नागरिकों के लिए वरदान साबित हुआ है। दुनिया के कई देशों में पिछले एक दशक से दक्षिणपंथी सरकारें जहां अति राष्ट्रवाद को बढ़ावा देकर धार्मिक भेदभाव को बढ़ा रही हैं, वहीं शेख हसीना के कार्यकाल में धर्म निरपेक्ष मूल्यों को लेकर बांग्लादेश लगातार आगे बढ़ रहा है।
शेख हसीना ने ढाका में स्थित प्रसिद्ध ढाकेश्वरी मंदिर को करीब पचास करोड़ टका की जमीन देने की घोषणा कर यह संदेश भी दिया था कि तरक्की और स्थायित्व के लिए सभी का सर्वांगीण विकास होना चाहिए। शेख हसीना को रोकने के लिए खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी(बीएनपी) जमात-ए-इस्लामी को लगातार समर्थन दे रही है। करीब डेढ़ दशक पहले बीएनपी सरकार के शासन में इस्लामिक कट्टरपंथियों को पनपने में काफी मदद मिली थी। जब से आवामी लीग की सरकार आई है, वह उन्हें दबाने की कोशिश कर रही है और इसमें कुछ कामयाबी भी मिली है।
बीएनपी की जमात और इस्लामिक कट्टरपंथियों से पुरानी करीबी है। बांग्लादेश में हिंदुओं को आवामी लीग गठबंधन का समर्थक माना जाता है और इसी कारण आम चुनावों में हिंदू निशाना बन जाते हैं। इस वक्त बांग्लादेश में हिंदू खौफ में जी रहे हैं। पुलिस का कहना है कि जिन मंदिरों पर हमला हुआ है, उनसे मामला दर्ज कराने को कहा गया है। लेकिन बहुत से मंदिरों के पदाधिकारी मामला दर्ज कराने को इसलिए तैयार नहीं हैं क्योंकि उन्हें पुलिस पर जरा भरोसा नहीं है। उनका कहना है कि समय पर पुलिस की मदद न मिल पाने से ही कट्टरपंथी हिंसक घटनाओं को अंजाम देने में सफल रहे।
बहरहाल बांग्लादेश को अपनी उदार छवि को कायम रखते हुए आगे बढ़ना चाहिए। राष्ट्रीय हितों की पारस्परिकता अंतरराष्ट्रीय नैतिकता की संकल्पना का महत्त्वपूर्ण पहलू है। राष्ट्रों को अपने हितों में तालमेल पैदा करने के उपाय तलाशने चाहिए, राष्ट्रीय हितों का मेल अस्तित्व रक्षा की सबसे बड़ी गारंटी है। शेख हसीना को भारत की ओर देखने के बजाय महात्मा गांधी की इस सीख को ध्यान में रखना चाहिए कि एक राष्ट्र के हित का मानव जाति के वृहत्तर हित के साथ मेल बिठाया जा सकता है।