मनोज मित्ता

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव की सरगर्मी न सिर्फ अमेरिका, बल्कि दुनिया के अन्य हिस्सों में भी महसूस की जा रही है। विशेष रूप से भारत में कमला हैरिस की उम्मीदवारी को लेकर भारी चर्चा हो रही है। मौजूदा उपराष्ट्रपति और राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार कमला हैरिस अब दुनिया भर में एक पहचाना हुआ नाम हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कमला हैरिस की जड़ें भारत के तमिलनाडु राज्य के सलेम जिले के छोटे से गांव कमलापुरम से जुड़ी हैं?

कमलापुरम में ही हैरिस की मां का 1938 में एक ब्राह्मण परिवार में जन्म हुआ था

कमलापुरम, जिसे कभी बहुत कम लोग जानते थे, अब इतिहास के पन्नों में छुआछूत के मुद्दे के कारण एक खास स्थान रखता है। यह वही गांव है, जहां कमला हैरिस की मां, श्यामला गोपालन, का 1938 में एक ब्राह्मण परिवार में जन्म हुआ था। लेकिन कमलापुरम का नाम सबसे पहले करीब एक सदी पहले खबरों में आया था, जब इस गांव में जातिगत भेदभाव और छुआछूत से जुड़ा एक महत्वपूर्ण विवाद सामने आया।

चौदह साल पहले कमलापुरम के मूल निवासी आर. वीरियन, जो उस समय मद्रास विधान परिषद (एमएलसी) के सदस्य थे, को अपमान का सामना करना पड़ा था। उन्हें उस गांव की एक सड़क पर जाने से रोका गया था, क्योंकि वह सड़क ‘अग्रहारम’ में स्थित थी – एक विशेष बस्ती, जिसे केवल ब्राह्मणों के लिए आरक्षित माना जाता था। “अछूतों” को परंपरागत रूप से इस सड़क का उपयोग करने की अनुमति नहीं थी। वीरियन ने इस अपमान के खिलाफ आवाज उठाई और तत्कालीन मद्रास सरकार के मुख्य सचिव को एक टेलीग्राम भेजकर अपने नागरिक अधिकारों के उल्लंघन की शिकायत की।

जातिगत छुआछूत के कारण गांव में वीरियन को जाने से रोका गया था

16 अप्रैल 1924 को बॉम्बे स्थित टाइम्स ऑफ इंडिया ने इस घटना को प्रमुखता से कवर किया, जिसमें वीरियन का लंबा टेलीग्राम प्रकाशित किया गया। शीर्षक था: ‘मद्रास एमएलसी की शिकायत: असहनीय ब्राह्मण अत्याचार’। वीरियन ने इस घटना का विवरण देते हुए कहा कि वह केवल कमलापुरम के ‘अग्रहारम सार्वजनिक मार्ग’ से गुजरना चाहते थे, ताकि वह डाकघर में पत्र डाल सकें और उसी इलाके में स्थित एक स्कूल को देख सकें। लेकिन जातिगत छुआछूत के कारण गांव के मुंसिफ, मोनिगर रुंगियर नामक ब्राह्मण ने उन्हें उस गली से गुजरने की अनुमति नहीं दी। वीरियन ने कहा कि उस अधिकारी के लिए यह कोई मायने नहीं रखता था कि डाकघर और स्कूल तक पहुंचने का दूसरा कोई रास्ता नहीं था।

यह घटना छुआछूत के खिलाफ वीरियन के संघर्ष की एक महत्वपूर्ण शुरुआत थी। कमलापुरम की इस घटना ने जातिगत भेदभाव और छुआछूत के खिलाफ चलने वाले संघर्ष को नया आयाम दिया, जो आज भी सामाजिक और राजनीतिक सुधार के इतिहास का हिस्सा है।

“छुआछूत की इस घटना ने एक लंबी और जटिल यात्रा की नींव रखी, जिसका एक प्रमुख मोड़ 22 अगस्त, 1924 को मद्रास विधानमंडल द्वारा पारित एक प्रस्ताव था। हालांकि, इस प्रस्ताव की विफलता ने सामाजिक सुधार के लिए कोई ठोस बदलाव नहीं किया। इसके बाद वीरियन ने छुआछूत को गैरकानूनी घोषित करने के लिए एक विधेयक लाने का निर्णय लिया। यह एक साहसिक कदम था, क्योंकि किसी निजी सदस्य के विधेयक के लिए समर्थन प्राप्त करना उस समय लगभग असंभव माना जाता था।

वीरियन ने इस चुनौती का सामना करने के लिए एक सूक्ष्म और रणनीतिक रास्ता चुना: उन्होंने मौजूदा नागरिक कानून में संशोधन के रूप में अपने छुआछूत विरोधी प्रावधानों को शामिल करने का प्रयास किया, लेकिन सवर्ण हिंदुओं के बहुमत वाले विधानमंडल में समर्थन हासिल करना आसान नहीं था। इसके लिए न केवल गहन बातचीत और समझौते हुए, बल्कि वीरियन को कई बार अपनी वास्तविक मंशा छुपानी भी पड़ी।

जब 14 दिसंबर, 1925 को पहली बार इस विधेयक पर चर्चा हुई, वीरियन ने अपने भाषण की शुरुआत एक बहुत ही नपी-तुली भाषा में की। उन्होंने कहा, ‘मैं जाति के मुद्दे को नहीं उठाऊंगा और न ही छुआछूत की समस्या को जाति के संदर्भ में प्रस्तुत करूंगा।’ यह साफ तौर से दर्शाता है कि उन पर कितना दबाव था और उन्हें किस प्रकार के राजनीतिक संतुलन साधने की आवश्यकता थी।”

इस तरह यह घटना केवल एक विधेयक तक सीमित नहीं रही, बल्कि उस दौर की सामाजिक-राजनीतिक जटिलताओं और जातिगत भेदभाव के खिलाफ चलने वाले संघर्ष का एक प्रतीक बन गई।