चिकनगुनिया उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में होने वाली मच्छर जनित बीमारी है। संक्रमित मच्छर जब किसी स्वस्थ व्यक्ति को काटता है, तो वह उस व्यक्ति के शरीर में विषाणु छोड़ देता है। यह विषाणु रक्त के माध्यम से शरीर के अन्य भागों में फैल जाता है। चिकनगुनिया मुख्य रूप से ‘एडीज एजिप्टी’ और ‘एडीज एल्बोपिक्टस’ मच्छरों से फैलता है। यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में नहीं फैलता। इस बीमारी का सबसे ज्यादा खतरा अफ्रीका, दक्षिण पूर्व एशिया और अमेरिका के कुछ हिस्सों में है। पहली बार 1952 में इस बीमारी का अफ्रीका के मोजांबिक और तंजानिया के सीमावर्ती मकोंडे में पता चला था, क्योंकि उस समय यह बीमारी वहां गंभीर रूप से फैल गई थी। इसके रोगियों के जोड़ों में बहुत दर्द होता था, जिसके कारण उनका चलना-फिरना भी दूभर था। मकोंडे भाषा में चिकनगुनिया का अर्थ होता है ‘दर्द से झुकना’। इसीलिए इस बीमारी को ‘चिकनगुनिया’ नाम दिया गया।

चार से सात दिनों में दिखाई देते हैं चिकनगुनिया के लक्षण

चिकनगुनिया के लक्षण आमतौर पर मच्छर के काटने के चार से सात दिनों में दिखाई देते हैं। चिकनगुनिया होने पर बुखार, जोड़ों में दर्द (विशेष रूप से हाथों और पैरों में), सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द, थकान और दाने होते हैं। गंभीर मामलों में, चिकनगुनिया गुर्दे की विफलता, दिल का दौरा और रक्तस्राव जैसी जटिलताएं पैदा कर सकता है। ठीक हो जाने के बाद भी रोगी के जोड़ों में दर्द महीनों या वर्षों तक रह सकता है। विशेषकर बुजुर्गों या पहले से अन्य किसी रोग से पीड़ित व्यक्तियों में चिकनगुनिया होने पर लंबे समय तक स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। गंभीर मामलों में अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता हो सकती है। इस बीमारी के अधिक गंभीर होने पर मरीज की मौत तक हो जाती है। नवजात शिशुओं को भी इससे खतरा रहता है।

दुनिया भर के सौ से अधिक देशों में फैल चुकी है चिकनगुनिया

चिकनगुनिया दुनिया भर के सौ से अधिक देशों में फैल चुकी है। 2004 के बाद से इसका प्रकोप अधिक व्यापक हो गया है। पिछले 15 वर्षों में इसके मामले बढ़े हैं। वर्ष 2008 से अब तक कम से कम 50 लाख मामले सामने आए हैं। जलवायु परिवर्तन की वजह से मच्छरों के लिए अनुकूल वातावरण बढ़ रहा है। इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय यात्राओं में बढ़ोतरी होने से चिकनगुनिया के विषाणु का एक देश से दूसरे देश में पहुंचने का खतरा भी बढ़ गया है। हालांकि ऐसे रोगियों की संख्या प्राय: कम आंकी जाती है, क्योंकि इसे अक्सर डेंगू या जीका के रूप में गलत निदान किया जाता है।

अभी तक चिकनगुनिया के लिए कोई विशिष्ट इलाज नहीं है। इसका उपचार लक्षणों के आधार पर किया जाता है। चिकनगुनिया, डेंगू और जीका विषाणु सभी एडीज मच्छरों के काटने से फैलते हैं। इन बीमारियों का निदान रक्त परीक्षण से किया जा सकता है। इन तीनों बीमारियों के लक्षणों को प्रबंधित करने के लिए चिकित्सक आमतौर पर आराम करने, तरल पदार्थ और दर्द निवारक दवाएं लेने की सलाह देते हैं। चिकनगुनिया, डेंगू और जीका वायरस के लक्षण इतने समान होते हैं कि इनमें अंतर करना मुश्किल हो सकता है। इस वजह से चिकनगुनिया का गलत निदान भी हो सकता है। गलत निदान कई कारणों से हो सकता है। जिनमें से कुछ प्रमुख कारण हैं, रोगी के लक्षणों का सही ढंग से वर्णन न करना, डाक्टर द्वारा सही परीक्षण न करना, रोगी के यात्रा इतिहास या अन्य जोखिम कारकों की अनदेखी करना।

चिकनगुनिया के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए, मच्छरों से बचाव के उपायों के साथ-साथ इसका टीका विकसित करने पर ध्यान दिया जा रहा है। अमेरिका का खाद्य एवं औषधि प्रशासन (एफडीए) चिकनगुनिया के लिए दुनिया के पहले टीके को मंजूरी दे चुका है। यह टीका 18 वर्ष और उससे अधिक उम्र के लोगों में 98 फीसद प्रभावी है। एफडीए द्वारा अनुमोदित इस टीके को फ्रांसीसी बायोटेक कंपनी ‘वेलनेवा’ ने विकसित किया है। इसका नाम ‘इक्सचिक’ है। इसकी एकल खुराक इंजेक्शन के माध्यम से दी जाएगी। इस टीके का एफडीए ने त्वरित अनुमोदन इसलिए किया, क्योंकि इसके नैदानिक परीक्षण में पाया गया कि यह चिकनगुनिया जैसी गंभीर बीमारी के जोखिम को कम करने में प्रभावी और सुरक्षित है।

यह टीका चिकनगुनिया से सुरक्षा प्रदान कर सकता है। वहीं इस रोग के प्रसार को नियंत्रित करने तथा इससे होने वाली जटिलताओं को रोकने में मदद कर सकती है, लेकिन इस टीके के कुछ संभावित जोखिम भी हैं, जैसे इंजेक्शन लगने की जगह पर दर्द या सूजन होना, बुखार, सिरदर्द और मांसपेशियों में दर्द आदि। हालांकि, ये दुष्प्रभाव आमतौर पर हल्के होते हैं और कुछ दिनों में ठीक हो जाते हैं। इस टीके को अभी बड़े पैमाने पर उपयोग के लिए अनुमोदित नहीं किया गया है। हालांकि, संभावना है कि यह जल्द ही चिकनगुनिया के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए उपलब्ध हो जाएगा।

‘इक्सचिक’ टीके का मूल्यांकन करने के लिए उत्तरी अमेरिका में दो नैदानिक अध्ययन किए गए। ये अध्ययन 3500 लोगों और 1000 लोगों के दो समूहों पर किए गए। एक अध्ययन में 18 वर्ष और उससे अधिक उम्र के लगभग 3500 प्रतिभागियों को इस टीके की खुराक मिली थी, जबकि अन्य अध्ययन में लगभग एक हजार प्रतिभागियों को ‘प्लेसिबो’ दिया गया था। ‘प्लेसिबो’ एक ऐसा उपचार है, जो वास्तव में कोई उपचार नहीं है। जब किसी भी टीके का नैदानिक अध्ययन किया जाता है, तो समूह के कुछ लोगों पर वास्तविक उपचार प्रक्रिया को अपनाया जाता है और कुछ लोगों को वास्तविक उपचार की तरह दिखने वाली कोई दवा या अन्य प्रकार का उपचार दिया जाता है, जो वास्तव में नकली उपचार होता है।

दरअसल, उस व्यक्ति पर किए गए उपचार के मनोवैज्ञानिक प्रभाव को समझने तथा किसी नई दवा या टीके के वास्तविक प्रभाव को जांचने के लिए इस तरह के नकली उपचार का भी सहारा लिया जाता है, जिसे हम ‘प्लेसिबो’ के नाम से जानते हैं। इस अध्ययन में जिन प्रतिभागियों को ‘इक्सचिक’ का टीका दिया गया था, उनमें सिरदर्द, थकान, मांसपेशियों में दर्द, जोड़ों में दर्द, बुखार और मतली जैसे सामान्य दुष्प्रभाव देखे गए। इसके अलावा लगभग 1.6 फीसद टीका लेने वालों में चिकनगुनिया जैसी गंभीर प्रतिकूल प्रतिक्रियाएं भी देखी गर्इं। कुछ लोगों में ये प्रतिकूल प्रतिक्रियाएं कम से कम तीस दिनों तक रहीं।

‘इक्सचिक’ पर अमेरिका में किए गए नैदानिक अध्ययनों को ‘लैंसेट’ पत्रिका में प्रकाशित किया गया है। चिकनगुनिया की रोकथाम में यह टीका वास्तव में एक महत्त्वपूर्ण प्रगति है और उम्मीद की जा सकती है कि इससे उन देशों को बहुत राहत मिलेगी, जहां चिकनगुनिया बहुत तेजी से फैल रहा है। ब्राजील, पैराग्वे, पश्चिमी अफ्रीका के कुछ हिस्सों और भारत में चिकनगुनिया अधिक है। जल-जनित बीमारियों के राष्ट्रीय आंकड़ों के अनुसार, भारत में सितंबर 2023 तक चिकनगुनिया के 93,455 संदिग्ध मामले सामने आए। इसलिए भारत जैसे देशों के संदर्भ में इस टीके का विशेष महत्त्व है।