मद्रास हाई कोर्ट ने सीजेएम कोर्ट और निचली अपीलीय अदालत द्वारा बलात्कार की सजा को बरकरार रखते हुए आरोपी के क्रिमिनल रिविजन पिटिशन को खारिज करते हुए कहा कि अभियुक्त के खिलाफ शारीरिक और हिंसक प्रतिरोध की कमी कृत्य को सहमति नहीं बना देगी।

कोर्ट ने आरोपी की याचिका को खारिज करते हुए कहा, “यह तथ्य कि पीड़िता ने आरोपी का शारीरिक और हिंसक रूप से विरोध नहीं किया, इस कृत्य को सहमति नहीं बना देगी। किसी को पीड़िता की तकलीफ समझनी होगी और पूरे प्रकरण को उसके दृष्टिकोण से देखना होगा। वह 17 साल की और बिल्कुल अकेली थी। जब उसका हाथ पकड़कर उसे घसीटा गया तो वह साथ चली गई। जब आरोपी ने उसे नीचे धकेल दिया और उसके साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की तो वह चिल्लाना और विरोध करना चाहती थी, लेकिन आरोपी और उसका कृत्य उस पर हावी हो गए।”

कोर्ट के अनुसार, आईपीसी की धारा 375 नि:संदेह यह निर्धारित करती है कि यदि अभियुक्त का कृत्य पीड़िता की इच्छा के विरुद्ध और उसकी सहमति के खिलाफ है, तो यह बलात्कार का अपराध होगा। इस मामले में जस्टिस डी. भरत चक्रवर्ती की पीठ ने कहा कि आईपीसी की धारा 90 में स्पष्ट है कि सहमति डर या गलत धारणा से पैदा नहीं होनी चाहिए।

कोर्ट ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 114-ए का हवाला देते हुए कहा, “धारा 114-ए के मुताबिक, रेप के अपराध में सहमति के अभाव का अनुमान होता है यदि पीड़िता यह बताती है कि उसने सहमति नहीं दी थी। इसका खंडन करने के लिए, आरोपी द्वारा सकारात्मक सबूत पेश किए जाने चाहिए। पीड़िता द्वारा केवल एक बहादुर और हिंसक प्रयास की गैरमौजूदगी निश्चित रूप से सहमति के बराबर नहीं है।”

मद्रास हाईकोर्ट ने ‘राव हरनारायण सिंह व अन्य बनाम राज्य’ के मामले में पंजाब एंड हरियाणा कोर्ट के 1957 के फैसले को आधार बनाते हुए कहा कि कहा कि ‘सबमिशन या आत्मसमर्पण’ को ‘सहमति’ नहीं माना जाएगा। मेडिकल साक्ष्य से पीड़िता के प्राइवेट पार्ट पर जख्म पता चले हैं, लिहाजा अदालत ने आरोपी के इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि यौन कृत्य स्वेच्छा से आत्मसमर्पण करने का नतीजा था।