मुजफ्फरनगर के दंगों के बाद पश्चिमी यूपी में सांप्रदायिक विभेद गहरा गया था। हालात ये थे कि 2018 तक हिंदू-मुस्लिम एक दूसरे को देखने को भी तैयार नहीं थे। मेरठ के एक स्कूल में ऐसा ही नजारा दिखा तो स्कूल प्रिंसिपल ने अनोखा प्लान तैयार किया जिससे दोनों समुदाय एक साथ घुलमुलकर रह सकें।
द वायर की खबर के मुताबिक स्कूल प्रिंसिपल को जब पता चला कि दोनों समुदायों के बच्चे एक दूसरे को आपत्तिजनक नामों से बुलाते हैं और शिक्षकों के बीच भी संप्रदाय एक दीवार की तरह से बनता जा रहा है तो उन्होंने एक योजना तैयार की। उन्होंने सभी टीचरों की एक वर्कशाप बुलाई और उन्हें उनका काम बताया। सभी बच्चों के साथ टीचरों को एक साथ एक कम्युनिकेशन प्रोग्राम में शिरकत करने को कहा गया।
इसके तहत दो-दो टीचरों का ग्रुप बनाया गया। इनमें एक हिंदू और दूसरा शिक्षक मुस्लिम था। उनको आपस में चर्चा करने के लिए कहा गया। उसके बाद बच्चों के साथ भी ये ही चीज दोहराई गई। प्रिंसिपल ने वर्कशाप के बाद जब टीचरों से उनके अनुभवों के बारे में पूछा तो सबसे वरिष्ठ शिक्षिका का कहना था कि हम दोनों एक जैसे ही हैं। यानि दीवार ढह चुकी थी।
ध्यान रहे कि मुजफ्फर नगर जिले के कवाल गांव में जाट-मुस्लिम हिंसा के साथ ये दंगा शुरू हुआ था, जिससे वहां 62 लोगों की जान गई थी। दंगों के बड़े पैमाने पर फैलने के बाद कई जिलों में कर्फ्यू लगा। कर्फ्यू करीब 20 दिनों तक रहा। जाट और मुस्लिम समुदाय के बीच झड़प से शुरू हुए दंगे के बाद पश्चिमी यूपी के ज्यादातर इलाकों में सांप्रदायिक दीवार बन गई।
दंगों को लेकर खटास इतनी ज्यादा थी कि 40 हजार से ज्यादा लोग बेघर हो गए थे। हालांकि, कोर्ट ने मुजफ्फरनगर दंगों से जुडे़ मामलों साक्ष्यों के आधार पर फैसला लिया। कवाल कांड में मलिकपुरा के ममेरे भाइयों सचिन और गौरव की हत्या के केस में कोर्ट ने सातों आरोपियों दोषी करार दिया था। लेकिन उसके बाद भी हिंदू-मुस्लिम एक दूसरे के सामने आ चुके थे।