UP Politics: बीजेपी शासित कानपुर नगर निगम ने कानपुर में “शिवालय पार्क” बनाने के अपने ही प्रस्ताव को रद्द करने का फैसला किया है क्योंकि इस मुद्दे पर उसे ने केवल विरोधियों की आलोचना का सामना करना पड़ा बल्कि अपनी ही पार्टी के पार्षदों और अन्य सदस्यों की तरफ से भी विरोध ही मिला। यह शिवालय पार्क मौजूदा “बुद्ध पार्क” के परिसर में बनाने की योजना थी लेकिन अब उस प्रोजेक्ट को ही कैंसिल कर दिया गया है।

जानकारी के मुताबिक, केएमसी ने यह प्रस्ताव प्रयागराज में इसी साल महाकुंभ मेले के दौरान बनाए गए एक ऐसे ही पार्क की प्रशंसा के बाद रखा था। सर्वेक्षण के बाद, बुद्ध पार्क के एक हिस्से को इसके लिए चुना गया था। कानपुर नगर आयुक्त सुधीर कुमार के अनुसार प्रशासन ने शिवालय पार्क में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन कराने की योजना बनाई थी। इसके अलावा, वहां मनोरंजन क्षेत्र, एक हैप्पीनेस पार्क, फव्वारे और एक किड्स ज़ोन बनाने का भी प्लान था।

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क्या है इस मुद्दे पर पूरा विवाद?

कानपुर के कल्याणनगर में 30 एकड़ में फैले बुद्धा पार्क की स्थापना उत्तर प्रदेश में मायावती के नेतृत्व वाली बहुजन समाज पार्टी सरकार के कार्यकाल के दौरान की गई थी। वर्षों से पार्क का एक बड़ा हिस्सा, जिसमें परिसर में स्थित जल निकाय भी शामिल है, उपेक्षित अवस्था में पड़ा हुआ था। बुद्धा पार्क परिसर में 15 करोड़ रुपये की लागत से शिवालय पार्क बनाने के केएमसी के प्रस्ताव की विपक्ष और बीजेपी के एक वर्ग, दोनों ने कड़ी आलोचना की।

बसपा सुप्रीमो मायावती, आज़ाद समाज पार्टी (कांशीराम) के प्रमुख और नगीना से सांसद चंद्रशेखर आज़ाद और कुछ बीजेपी पार्षदों ने शिवालय पार्क का विरोध किया और आरोप लगाया कि बुद्ध पार्क के एक हिस्से को, जहां भीमराव अंबेडकर की एक मूर्ति भी है, धार्मिक उद्देश्यों के लिए बदलने की योजना बनाई जा रही है।

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इस मुद्दे पर क्या है विपक्ष का रुख?

इस प्रोजेक्ट में मूल प्रस्ताव से अनुसूचित जाति (एससी) समुदायों की भावनाओं को ठेस पहुंचने का आरोप लगाते हुए मायावती ने इसे रद्द करने के बीजेपी सरकार के फैसले का स्वागत किया। उन्होंने बुधवार को एक पोस्ट में कहा, “कानपुर के प्रसिद्ध बुद्ध पार्क में शिवालय पार्क बनाने के बेहद विवादास्पद प्रस्ताव को रद्द करने के लिए हम उत्तर प्रदेश सरकार के आभारी हैं। हमें उम्मीद है कि सरकार ऐसे विवादों के खिलाफ भी गंभीरता से कार्रवाई करेगी ताकि शांति-व्यवस्था, आपसी भाईचारे और सौहार्द का माहौल न बिगड़े।” उन्होंने आगे कहा कि इस परियोजना से अशांति फैल सकती थी।

31 अगस्त को चंद्रशेखर आज़ाद ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर इस प्रस्ताव को रोकने का आग्रह किया। उन्होंने कहा, “बुद्धा पार्क सिर्फ़ एक हरित क्षेत्र नहीं है, बल्कि अंबेडकर और भगवान बुद्ध के करुणा, समानता और भाईचारे के विचारों से जुड़ा एक प्रतीकात्मक स्थल है। इसे किसी विशेष संप्रदाय या धर्म के धार्मिक स्थल में बदलने से दलितों की भावनाएं आहत होंगी। सार्वजनिक स्थानों को धार्मिक स्थलों में नहीं बदला जाना चाहिए… यह ज़रूरी है कि बुद्ध पार्क को उसके मूल स्वरूप में ही रखा जाए और अन्य स्थानों पर नई परियोजनाएँ शुरू की जाएं।”

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बीजेपी के लोग भी हैं नाराज

कानपुर नगर निगम के प्रस्ताव पर बीजेपी पार्षदों का एक वर्ग भी नाराज़ है। कानपुर की महापौर और भाजपा नेता प्रमिला पांडे को लिखे एक पत्र में पार्टी पार्षद नीरज कुरील ने उनसे इस प्रस्ताव पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया। उन्होंने पत्र में लिखा कि मैं एक पार्षद होने के साथ-साथ अनुसूचित जाति समुदाय का प्रतिनिधि भी हूं। मैंने नगर निगम की कार्यकारिणी की बैठक में यह मुद्दा उठाया था, लेकिन इसे गंभीरता से नहीं लिया गया।

पार्षद कुरील ने यह भी मांग की कि भगवान बुद्ध के संदेश को ध्यान में रखते हुए बुद्ध पार्क का सौंदर्यीकरण किया जाए। कुरील ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि बुद्ध पार्क के पुराने गौरव को बहाल करने के बजाय, प्रशासन ने उसके अंदर एक और पार्क विकसित करने का फैसला किया। महापौर ने आश्वासन दिया है कि ऐसा नहीं होगा। हमें खुशी है कि उन्होंने शिवालय पार्क को कहीं और स्थानांतरित करने का फैसला किया है।

यूपी की राजनीति में दलित अहम फैक्टर

उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जातियां बसपा का मुख्य वोट आधार रही हैं। पिछले कई वर्षों में बसपा के पतन के बाद, राज्य में समाजवादी पार्टी (सपा), बीजेपी और कांग्रेस जैसी अन्य राजनीतिक पार्टियां दलितों तक पहुंचने की पूरी कोशिश कर रही हैं।

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