यूपी विधानसभा चुनावों में पूर्ण बहुमत से एक बार योगी सरकार की वापसी हुई है। बता दें कि भाजपा की वापसी में कई मुद्दों का असर रहा लेकिन मंदिर का मुद्दा इसमें अहम माना जा रहा है। अयोध्या, काशी और मथुरा में मंदिर निर्माण को लेकर भाजपा नेताओं की तरफ से की गई बयानबाजी का असर चुनावी नतीजों में देखा जा सकता है।
वैसे 1990 के दशक में मंडल और मंदिर की राजनीति लगभग एक साथ शुरू की गई थी। मंडल की राजनीति ने समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी जैसी पार्टियों को यूपी में जगह बनाने और सत्ता में आने में मदद की थी। हालांकि मंडल की राजनीति अब धीरे-धीरे कमजोर होती दिख रही है। वहीं मंदिर मुद्दे को लेकर लोगों का जुड़ाव बना हुआ है। जिससे भाजपा अपने दायरे को बढ़ाने में सफल भी दिख रही हैं।
दरअसल मंडल की राजनीति से सत्ता में आने वाले दल अब राज्य में अपना आधार खोते दिख रहे हैं। यूपी में सत्ता में रह चुकी बसपा को इस चुनाव में महज एक सीट हासिल हुई है। वहीं समाजावदी पार्टी तमाम कोशिशों के बाद भी लोगों को अपने साथ जोड़ने में विफल रही है। ऐसे में भाजपा जोकि मंदिर की राजनीति के लिए जानी जाती है, उसे सफलता चुनाव दर चुनाव मिलती दिख रही है। सत्ता में रहने के बाद भी उसके वोट शेयर में वृद्धि देखी गई है।
बता दें कि सपा गठबंधन को इस बार यूपी में 125 सीटें हासिल हुई हैं। भाजपा सहयोगी दलों के साथ इस बार 273 सीटें हासिल करने में कामयाब रही है। वहीं कांग्रेस को सिर्फ 2 सीटें ही मिल पाई है।
गौरतलब है कि मंडल की राजनीतिक करने वाले दलों ने इस मंच के जरिए सत्ता तो हासिल की लेकिन उनपर आरोप लगता रहा कि उन्होंने परिवारवाद, जाति आधारित राजनीति से इसके दायरे को समेट कर रख दिया। वे मंडल की विचारधारा को अपने शासन के एजेंडे से जोड़ने में विफल रहे। इससे लोगों का मोह भी भंग हुआ।
दूसरी तरफ मंदिर निर्माण की परियोजनाओं से भाजपा ने अपने ‘हिंदुत्व’ के दायरे को और बढ़ाया है। देखा गया कि यूपी में बड़े पैमाने पर बेरोजगारी, महंगाई के मुद्दे, कोरोना संकट, अधिक महंगाई के बीच हिंदुत्व का मुद्दा काफी असरदार रहा जिससे भाजपा को बड़ी सफलता मिली है।