मंगलवार को लोकसभा में बीजेपी के लिए उस समय असहज स्थिति हो गई, जब उसके अपने ही संसद पार्टी लाइन से अलग होकर जातिगत जनगणना का मुद्दा उठाने लगे। सांसद के इस कदम से सदन के अंदर मौजूद बीजेपी के नेता हैरान रह गए।
दरअसल मंगलवार को ओबीसी से संबंधित संविधान (127वां संशोधन) 2021, विधेयक पर सदन में चर्चा चल रही थी। बीजेपी की ओर से बदायूं की सांसद संघमित्रा मौर्य को इस पर बोलने के लिए मौका मिला। सांसद ने “जाति जनगणना के लिए राज्यों को शक्ति देने” के लिए सरकार की प्रशंसा की। संघमित्रा ने कहा- “यहां तक कि मवेशियों की भी राज्यवार गणना की गई है… प्रत्येक जिले में कितने मवेशी हैं और किस जिले में कौन से जानवर अधिक हैं, लेकिन पिछड़े वर्गों की कभी गिनती नहीं की गई।”
आगे उन्होंने कहा कि “आज, प्रधानमंत्री ने जनसंख्या की जाति गणना के लिए राज्यों को अधिकार दिया है। पिछड़े, हमारी जाति, वर्ग और समाज के लोग, चुनाव के दौरान ही फोकस बनते हैं, लेकिन आने वाले समय में, मुझे यकीन है कि हम न केवल चुनाव के दौरान, बल्कि सभी का ध्यान केंद्रित करेंगे”।
सांसद ने ये बातें पिछली कांग्रेस सरकारों पर ओबीसी समुदायों के साथ न्याय नहीं करने का आरोप लगाते हुए कहा। सांसद की टिप्पणी ने भाजपा में कई लोगों को हैरान कर दिया। बता दें कि संघमित्रा प्रमुख ओबीसी नेता और यूपी के मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी हैं, जिन्होंने पिछले राज्य चुनावों से महीनों पहले 2016 में बसपा छोड़ बीजेपी का दामन थाम लिया था।
केंद्र सरकार ने हाल ही में स्पष्ट किया था कि वह नीति के रूप में, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को छोड़कर जनगणना में जाति-वार जनसंख्या की गणना नहीं करेगी। भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार, विपक्ष यहां तक सहयोगी दलों के प्रेशर के बाद भी अभी तक जाति आधारित जनगणना की मांगों पर चुप रही थी, लेकिन जब उसके ही सांसद ने लोकसभा में ये मुद्दा उठा दिया तो पार्टी सदन के भीतर असहज हो गई। पार्टी सूत्रों ने कहा कि जाति आधारित जनगणना के लिए संघमित्रा मौर्य की बात ने “पार्टी को शर्मिंदा किया है”।
बता दें कि मानसून सत्र के दौरान सिर्फ यहीं एक बिल था जिसपर विपक्ष ने अपनी सहमति जताई थी। बाकी अभी तक जितने भी बिल पास हुए हैं वो सब विपक्ष के हंगामे के बीच ही हुए हैं।