हिमाचल के पहाड़ दरक रहे हैं, मौसम ने अपना मिजाज क्या बदला, पहाड़ों ने अपने साथ हुई अवैज्ञानिक छेड़छाड़ का बदला ले लिया। अगस्त में नजर आने वाले दृश्य जून के अंतिम सप्ताह में ही दिखने लगे। प्रदेश में पर्यटन चरम पर है, मगर दरकते पहाड़ों ने लाखों लोगों को आफत में डाल दिया है। हजारों वाहन और उसमें सवार सैलानियों को सड़कों पर रात बितानी पड़ी। भूखे प्यासे रहना पड़ा, बच्चों, बुजुर्गों और महिलाओं की स्थिति बेहद दयनीय दिखी। मनाली से लेकर मंडी तक, मंडी से कुल्लू, पठानकोट, शिमला जिले के पहाड़, कांगड़ा की वादियां, चंबा की सर्पीली सड़कें सब एक ही झटके में जवाब दे गई।

सरकार, प्रशासन सब लाचार हैं। पहाड़ों के रौद्र रूप के आगे सब बौने साबित हुए। ऐसा लगने लगा कि कुदरत ने साफ संदेश दे दिया है कि जरूरत से ज्यादा छेड़खानी करोगे तो परिणाम इससे भी अधिक भयावह होंगे, यह तो मानसून के आने से पहले या फिर यूं कहिए कि झलकी भर है। हिमाचल ने 24, 25, 26 जून को जो देखा वह एक सबक है, अन्य प्रांतों से आए लाखों लोगों ने आफत झेली यह एक संदेश है, जिसे समझने की जरूरत है।

अवैज्ञानिक खनन, सुरंगों में बदलती सड़कें, कुदरत के स्वभाव के विपरीत विकास यह सब इसी का परिणाम है। आलीशान कार्यालयों में बैठ कर खींची रेखाओं से हो रही टू लेन, फोरलेन सड़कों का रेखांकन इस पहाड़ी प्रदेश के लिए कतई वाजिब नहीं है। मंडी कुल्लू के बीच पंडोह तक हो रहा पहाड़ों का कटान आने वाले कितने सालों तक गुल खिलाता रहेगा यह साफ नजर आ रहा है। कई सवाल भी सरकार व प्रशासन पर खड़े हैं।

विशेषज्ञों की मानें तो कीरतपुर से मनाली और अब पठानकोट से मंडी के मार्गों पर बनाई गई या बनाई जा रही दर्जनों सुरंगें भी यहां की प्रकृति के स्वभाव से विपरीत हैं। हिमाचल ने जून महीने में ही 24,25,26 जून को जो देखा, सहा, भुगता और जो संदेश सड़कों या वाहनों में बैठ कर रातें काटने वाले सैलानी साथ ले गए, उससे पार पाने के लिए विकास के कर्णधारों को सोचना होगा।

प्रदेश और केंद्र की सरकारों को तालमेल बिठाकर विकास की परिभाषा कम से कम पहाड़ी राज्य में तो बदलनी ही होगी। योजनाएं बनाने वाली सरकारी मशीनरी को रटा रटाया पैमाना छोड़ कर प्रकृति के स्वभाव और भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप, मौके पर आकर धरातलीय सच को साथ रख कर योजनाएं बनानी होंगी अन्यथा आने वाली पीढ़ी इन्हें कभी माफ नहीं करेगी। प्रदेश के सबसे पुराने सरकारी कालेज वल्लभ महाविद्यालय में कार्यरत प्रो संजय सहगल का मानना है कि प्रकृति के साथ छेड़छाड़ एक सीमा तक ही होनी चाहिए।

अवैज्ञानिक तरीके से हो रहे विस्फोट प्रदेश के पहाड़ों के लिए खतरनाक हैं। पहाड़ जो दरके हैं, देश दुनिया से आए सैलानी जो इन पहाड़ों के बीच चौबीस घंटे से भी ज्यादा देर तक कैद रहे हैं, यह सब अनियोजित विकास का परिणाम है। आने वाले दिनों में यह सुरंगें भी दरक सकती हैं और इसका जो परिणाम होगा उसकी कल्पना से ही रूह कांप जाती है।

उनका कहना है कि मौसम का मिजाज दो महीने बाद वाला नजर आने लगा है। कुछ साल पहले बिलासपुर जिले के कुछ घरों में दीवारों से पानी टपकने लगा था और पिछले दिनों जो मौसम में अत्यधिक नमी रही, उससे मंडी के घरों में भी पानी निकलने जैसे मामले सामने आए हैं। यह सब मौसम का बदलाव है और बेतरतीब खनन, पहाड़ों का अंधाधुंध कटान, मलबे का इकट्ठा होना, वाहनों का अत्यधिक दबाव ही कारण है।