सरकार ने ब्‍यूरोक्रेट्स की अगुआई में ऐसी समितियां बनाने का प्रस्‍ताव तैयार किया है जो मुख्‍य सूचना आयुक्‍त (CIC) और सूचना आयुक्‍तों (ICs) के खिलाफ शिकायतों पर फैसला करेगा। केंद्रीय सूचना आयोग इस प्रस्‍ताव को सूचना के अधिकार (RTI) के त‍हत उसे मिली स्‍वतंत्रता को खत्‍म करने के कदम के रूप में देख रहा है। CIC को यह प्रस्‍ताव पिछले माह उसकी राय जानने के लिए भेजा गया था। प्रस्‍ताव पर कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (DoPT) के एक अवर सचिव के हस्‍ताक्षर हैं।

द इंडियन एक्‍सप्रेस को मिली जानकारी के अनुसार, प्रस्‍ताव में दो समितियां गठित करने की बात की गई है। एक समिति CIC के खिलाफ आने वाली शिकायतों देखेगी और उसपर फैसले लेगी, दूसरी समिति सूचना आयुक्‍तों के खिलाफ शिकायतों पर निर्णय करेगी। पहली समिति में कैबिनेट सचिव, DoPT सचिव, एक रिटायर्ड CIC को रखने का प्रस्‍ताव दिया गया है। जबकि दूसरी समिति में कैबिनेट सचिवालय के सचिव (समन्वय), DoPT सचिव और एक रिटायर्ड सूचना आयुक्‍त को रखने की योजना है। दोनों ही समितियों में, सरकारी अधिकारी बहुमत में होंगे।

एक शीर्ष अधिकारी ने कहा, “यह प्रस्‍ताव राजनैतिक व्‍यवस्‍था की ओर से सूचना आयुक्‍तों की कार्यप्रणाली को प्रभावित करने का प्रयास है। इससे उस संस्‍था की स्‍वतंत्रता छीन ली जाएगी जिसने सरकार में और पारदर्शिता लाने की नागरिकों की मांग पूरी की है। इससे सरकारी दबाव के आगे आयोग और कमजोर पड़ जाएगा।”

वर्तमान व्‍यवस्‍था के अनुसार, किसी सूचना आयुक्‍त के खिलाफ शिकायत आने पर उसे आयोग की बैठक में रखा जाता है। यह परंपरा रही है कि सूचना आयुक्‍तों के खिलाफ आने वाली शिकायतों पर मुख्‍य सूचना अधिकारी संज्ञान लेते हैं। अगर CIC के खिलाफ कोई शिकायत होती है तो उसे सूचना आयुक्‍तों की बैठक में रखा जाता है।

सूत्रों ने बताया कि 27 मार्च को हुई बैठक में DoPT के प्रस्‍ताव पर मुख्‍य सूचना आयुक्‍त समेत कम से कम पांच सूचना आयुक्‍तों ने चर्चा की। नाम न छापने की शर्त पर सूत्र ने कहा, “बैठक में प्रस्‍ताव का एक स्‍वर में विरोध हुआ। यह तय हुआ कि आयोग की राय को एक विस्‍तृत नोट में भेजा जाएगा जिसमें प्रस्‍ताव के सभी कानूनी, तकनीकी और प्रशासनिक पहलुओं का जिक्र होगा।”

RTI एक्‍ट की धारा 14 (1) कहती है कि आयुक्‍तों को केवल राष्‍ट्रपति द्वारा हटाया जा सकता है। वह भी तब, जब राष्‍ट्रपति की शिकायत पर सुप्रीम कोर्ट जांच कर उन्‍हें दोषी पाए। इसके अलावा आयुक्‍तों को अपने कार्यकाल के दौरान नैतिक अधमता करने पर, किसी और रोजगार में लिप्‍त रहने, शारीरिक या मानसिक रूप से अक्षम हो जाने पर, या फिर ऐसा कोई हित सामने आने पर जिससे वह अपने कर्त्‍तव्‍य का निर्वहन निष्‍पक्ष होकर न कर सकें, राष्‍ट्रपति पद से हटा सकते हैं।