इस बार के केंद्रीय बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कई नई घोषणाएं की हैं। इसमें एक बड़ी बात जीवन बीमा निगम (LIC) में अपनी आंशिक हिस्सेदारी की बिक्री का है। इसको लेकर राजनीतिक जगत के साथ-साथ बिजनेस जगत में भी चर्चाएं शुरू हो गई हैं। जानकारों का कहना है कि सरकार के लिए ऐसा करना आसान नहीं होगा। इसको बेचने में कई कानूनी अड़चने भी आएंगी। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी. चिदंबरम ने सोमवार को कहा था कि उनकी पार्टी भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआइसी) के लिस्टिंग (विनिवेश) प्रस्ताव का विरोध कर सकती है। उन्हाेंने कहा कि कड़ी प्रतिस्पर्धा के बावजूद एलआइसी लाभ में है।
बजट में वित्त मंत्री ने कहा था कि एलआईसी को शेयर बाजार में सूचीबद्ध कराया जाएगा। सूचीबद्धता से कंपनियों में वित्तीय अनुशासन बढ़ता है। सरकार का आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) के जरिए एलआईसी में अपनी कुछ हिस्सेदारी बेचने का प्रस्ताव है। अभी एलआईसी की पूरी हिस्सेदारी सरकार के पास है। इस बारे में डेकन हेराल्ड से बात करते हुए विनिवेश सचिव तुहीन कांत पांडेय ने कहा, “बजट घोषणा और एक्शन प्लान में काफी अंतर होता है। कई बार राजनीतिक फैसले पहले लेने पड़ते हैं। क्या बजट के निर्णय बिजनेस प्लान को तय करेंगे?” उन्होंने कहा कि यह एक बड़ा कदम है, अगर सफल हो गया तो अगले वित्त वर्ष में सरकार की विनिवेश योजना के पूरे 2.10 लाख करोड़ रुपए का ध्यान रखेगी।
दरअसल जीवन बीमा निगम की स्थापना एलआईसी एक्ट 1956 के तहत की गई थी। इसकी बिक्री करने से पहले इसको स्वतंत्र कामर्शियल कंपनी के रूप में बदलने की जरूरत पड़ेगी। हालांकि अभी केवल यह सैद्धांतिक रूप से घोषणा ही की गई है। इस पर अमल करने से पहले सरकार को कई स्तरों पर चर्चा करनी पड़ेगी। साथ ही संसद की मंजूरी भी लेनी पड़ेगी।
विशेषज्ञों का कहना है कि एलआईसी के पास 30 करोड़ पालिसी होल्डर्स हैं। अगर सरकार अपनी घोषणा के मुताबिक काम करती है तो इससे पालिसी होल्डर्स को फायदा होगा। यह बेहतर सुशासन, अधिक खुलापन, जिम्मेदारी और उच्च स्तर की पारदर्शिता को लाएगी सरकार को इतने बड़े स्तर पर कंपनी का विनिवेश करने के लिए कई प्रक्रियाओं और उसके समयसीमा से गुजरना पड़ेगा। साथ ही पूरी प्रक्रिया बाजार के हालात पर निर्भर करेगी। फिलहाल इसको पूरा करने में कम से कम एक साल जरूर लगेंगे।