भारत को आजाद हुए कई साल बीत गए, कई सरकारें आईं, कई सरकारे गईं, लेकिन विवादित और सबसे बड़े फैसले लेने का क्रेडिट मोदी सरकार को देना पड़ेगा। इस सरकार ने पिछले 9 साल में कई ऐसे फैसले लिए हैं, जिसकी उम्मीद किसी ने नहीं की थी, जिनसे हिंसा होने की प्रबल संभावना थी। लेकिन क्योंकि ये फैसले लिए गए और हिंसा को होने से भी रोका गया, ये मोदी सरकार के लिए एक बड़ा संदेश साबित हुआ, वो संदेश जो अब देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड के लिए एक नई पिच तैयार कर रहा है।

पिछले कुछ समय से देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है। अब इसकी चर्चा कोई ऐसे ही शुरू नहीं हो गई है। कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भोपाल में एक रैली को संबोधित किया। कहने को वे पांच वंदे भारत ट्रेन को हरी झंडी दिखाने आए थे, लेकिन उस सरकारी कार्यक्रम के दौरान ही 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर एक बड़ा दांव चल दिया गया। पीएम मोदी ने रैली में कहा कि यूनिफॉर्म सिविल कोड के नाम पर ऐसे लोगों को भड़काने का काम हो रहा है। एक घर में एक सदस्य के लिए एक कानून हो और दूसरे के लिए दूसरा तो घर चल पायेगा क्या? तो ऐसी दोहरी व्यवस्था से देश कैसे चल पाएगा? हमें इस बात को याद रखना है कि भारत के संविधान में भी नागरिकों के समान अधिकार की बात कही गई है।

मोदी सरकार के पास बड़े फैसले वाला जिगरा

अब इससे बड़ा संदेश क्या हो सकता है, देश का प्रधानमंत्री सामने से आकर खुलकर यूनिफॉर्म सिविल कोड पर बयान जारी कर रहा है। पीएम मोदी ने वैसे भी कभी बिना किसी कारण के किसी मुद्दे को हवा नहीं दी है। जिस मुद्दे पर बात की, उस पर इस सरकार ने फैसले लिए हैं। कई लोग मानकर चल रहे हैं कि यूनिफॉर्म सिविल कोड तो बीजेपी की विचारधारा वाला मुद्दा है, कई सालों से चला आ रहा है, ऐसे में अब चुनाव से पहले इसे उठाने की बात चल रही है। लेकिन एक एंगल और है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। मोदी सरकार ने कई ऐसे फैसले लिए हैं जिन पर विवाद चरम पर था, जिन पर हिंसा होने की पूरी संभावना था, लेकिन क्योंकि ये सरकार उन फैसलों को लाने में कामयाब हो गई, उसे इस बात का अहसास है कि UCC पर भी जनता उनकी बात मान ही जाएगी।

अब सबसे पहले बात मोदी सरकार के उन फैसलों की करनी चाहिए, जिन के परिणाम काफी खतरनाक रह सकते थे। उन सभी फैसलों का कैसे यूसीसी से कनेक्शन बन रहा है, उस पर रोशनी डाली जाएगी।

जम्मू-कश्मीर से 370 का हटना

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 का हटना कोई साधारण घटना नहीं थी। जिस फैसले को लेकर सालों से बड़ा विवाद चला आ रहा था, कश्मीर के नेता डंके की चोट पर कहते थे कि अगर इसके साथ छेड़छाड़ की गई तो कोई तिरंगा उठने वाला नहीं रहेगा। लेकिन मोदी सरकार ने वो कदम उठाया, संसद में बकायदा प्रस्ताव लाया गया, उसे पारित करवाया गया और इतिहास हमेशा के लिए बदल गया। एक तरफ जम्मू-कश्मीर से 370 की समाप्ति हुई, तो दूसरी तरफ लद्दाख जम्मू-कश्मीर से अलग एक केंद्र शासित प्रदेश बन गया।

अब इस फैसले के साथ कितने खतरे जुड़े थे- घाटी में हिंसा हो सकती थी, फिर पथराव वाली स्थिति बन सकती थी, महबूबा मुफ्ती जैसे कई नेता विरोध प्रदर्शन कर सकते थे। लेकिन क्योंकि सरकार पहले से तैयार थी, एक तरफ पर्याप्त सुरक्षा बल को घाटी में तैनात किया गया, तो वहीं दूसरी तरफ कई ‘विवादित’ नेताओं को नजरबंद कर दिया गया। नतीजा ये रहा कि कुछ चुनौतियों को छोड़ दिया जाए तो अनुच्छेद 370 हटने के बाद भी कोई बड़ी हिंसा नहीं हुई, सबकुछ धीरे-धीरे सामान्य हो गया।

राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला

अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण हो, ये एक कई साल पुराना मुद्दा है। बीजेपी के घोषणा पत्र उठाकर देखेंगे तो जब से पार्टी की स्थापना हुई है, ये मुद्दा हर बार वादों में शामिल किया गया है। लालकृष्ण अडवानी की रथ यात्रा पूरी तरह राम मंदिर के ही इर्द-गिर्द घूमी थी। अब यहां तक तो इस मामले में बीजेपी का सीधा योगदान रहा, लेकिन इस केस में सबसे बड़ा मोड़ तब आया जब सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर पर अपना फैसला सुनाया। अब कोर्ट का फैसला तो मायने रखता ही था, उससे ज्यादा जरूरी था उस प्रतिक्रिया पर नजर रखना जो उस फैसले की वजह से देखने को मिलती। अयोध्या की सड़कों पर जिस तरह से पुलिस का जमावड़ा कर दिया गया था, कई संवेदनशील इलाकों में सुरक्षा बल की तैनाती थी। ये बताने के लिए काफी था कि हिंसा भड़कने का डर सरकार के मन में भी था।

लेकिन जब सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाया, कहीं कोई हिंसा नहीं हुई, कहीं से भी बड़े बवाल की खबर नहीं आई। ना मुस्लिम समाज ने ज्यादा उत्तेजित होने का काम किया और ना हिंदू समाज ने अपने जश्न से किसी को ज्यादा उकसाने का काम किया। एक बड़ा फैसला संपन्न हुआ और अब वर्तमान में तेजी से राम मंदिर का निर्माण चल रहा है।

तीन तलाक के खिलाफ कड़ा रुख

तीन तलाक एक ऐसा मुद्दा रहा, जो धर्म से ज्यादा अधिकारों को लेकर था। इस मुद्दे को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक जनसभा में सबसे पहले उठाया था। उसके बाद से तो दोनों सरकार और बीजेपी ने इसे भी अपना कोर मुद्दा बना लिया और कई मौकों पर इसे उठाने का काम किया। विपक्ष जरूर इसे धार्मिक एंगल देने की कोशिश में लगा रहा, कई मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने भी ऐसा ही रुख अपनाया, लेकिन मोदी सरकार की नीति स्पष्ट रही- मुस्लिम महिलाओं को उनके अधिकार दिए जाएंगे।

उसी कड़ी में सरकार दोनों लोकसभा और राज्यसभा में तीन तलाक बिल लेकर आई और फिर 19 सितंबर, 2018 को ये कानून बन गया।

सर्जिकल-एयरस्ट्राइक ने किया इच्छाशक्ति का प्रदर्शन

वैसे इस लिस्ट में पाकिस्तान के खिलाफ की गई सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक को भी जोड़ा जा सकता है। इसका कारण ये है कि क्योंकि इन दोनों ही कार्रवाई से पाकिस्तान के साथ सीधे युद्ध का खतरा काफी बड़ा था। किसी देश को युद्ध की स्थिति में ले आना बड़ी चुनौतियों को स्वागत देने के समान रहता है। लेकिन इस मोदी सरकार ने पहले उरी हमले के बाद सर्जिकल स्ट्राइक की, फिर पुलवामा हमले के बाद बालाकोट एयरस्ट्राइक से करार जवाब दिया। सेना की इस जवाबी कार्रवाई ने भारत की छवि को तो और ज्यादा मजबूत बनाने का काम किया ही, मोदी सरकार ने इसका पॉलिटिकल माइलेज भी उठाया।

यूनिफॉर्म सिविल कोड के लिए कैसे बन रहा माहौल?

अब ये तमाम फैसले बताते हैं कि मोदी सरकार का जिगरा तो काफी बड़ा है, वो अगर चाहे तो कोई भी बड़ा कदम उठा सकती है। मार्केटिंग टीम भी इतनी तगड़ी बना रखी है, जनता के बीच बात आसान शब्दों में पहुंचा दी जाती है। ऐसे में अब जब यूनिफॉर्म सिविल कोड की बात की जा रही है, तो यहां भी तैयारी काफी है। अभी पीएम मोदी ने भोपाल में रैली कर इसका जिक्र किया है, उत्तराखंड में कानून बनकर तैयार होने जा रहा है। वहीं इस मॉनसून सत्र में दोनों लोकसभा और राज्यसभा में इसका प्रस्ताव को पेश भी किया जा सकता है।

2024 के लोकसभा चुनाव के लिहाज से देखें तो बीजेपी के लिए ये एक बड़ा ट्रंप कार्ड साबित हो सकता है। एक तरफ इसे लागू कर दिखाने की कोशिश होगी कि देश के विकास में बड़ा कदम उठाया गया है, दूसरी तरफ विपक्ष पर आरोप लगाया जाएगा कि वो अब तक तुष्टीकरण की राजनीति कर रही है। यानी की राष्ट्रवाद के मुद्दे को भी धार दी जाएगी और विपक्ष को भी जनता के कठघरे में खड़ा कर दिया जाएगा।

क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड?

यूनिफॉर्म सिविल कोड को हिंदी में समान नागरिक संहिता कानून कहते हैं। अपने नाम के मुताबिक अगर ये किसी भी देश में लागू हो जाए तो उस स्थिति में सभी के लिए समान कानून रहेंगे। अभी भारत में जितने धर्म, उनके उतने कानून रहते हैं। कई ऐसे कानून हैं जो सिर्फ मुस्लिम समुदाय पर लागू होते हैं, ऐसे ही हिंदुओं के भी कुछ कानून चलते हैं। लेकिन यूनिफॉर्म सिविल कोड के आने से ये सब खत्म हो जाता है, जाति-धर्म से ऊपर उठकर सभी के लिए समान कानून बन जाता है।

भारत में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होने से क्या बदलेगा?

इसका उत्तर बिल्कुल सरल है, अगर भारत में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू हो जाता है तो हर धर्म-मजहब के लिए एक समान कानून लागू हो जाएंगे। कानून में एक शब्द का कई बार इस्तेमाल होता है- पर्सनल लॉ। पर्सनल लॉ वो होते हैं जिन्हें धर्म, जाति, विश्वास के आधार पर तैयार किया जाता है। शादी, तलाक, एडोप्शन, फैमिली प्रॉपर्टी, वसीहत जैसे जितने भी मामले होते हैं, ये सब अभी तक पर्सनल लॉ के अंदर ही आते हैं। अगर मुस्लिम समाज में बात करें तो वहां जैसे अभी तीन शादियां, तीन तलाक जैसी नियम चलते हैं, यूनिफॉर्म सिविल कोड आने से ये सब भी बदल जाएगा। फिर शादियों में भी एक ही कानून चलेगा।

यूनिफॉर्म सिविल कोड के पक्ष-विपक्ष में क्या तर्क?

यूनिफॉर्म सिविल कोड के समर्थन में एक बात हमेशा कही जाती है कि इससे लैंगिक समानता बढ़ जाएगी, धर्म के नाम पर जो अभी भेदभाव होता है, वो भी कम होगा। इसके अलावा अभी जो हजारों कानून चल रहे हैं, वो भी काफी कम हो जाएंगे जिससे न्याय प्राणली में भी एक सरलता आएगी। लेकिन इसी के उलट कुछ बुद्धिजीवी मानते हैं कि यूसीसी लागू होने से धार्मिक स्वतंत्रता भी खत्म हो जाती है। तर्क दिया जाता है कि संविधान ने ही धार्मिक स्वंत्रता भी दी है, ऐसे में यूसीसी लागू नहीं हो सकता।