मार्च 2025 में दिल्ली में हुए एक अग्निकांड के दौरान हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास से बेहिसाब नकदी बरामद हुई थी। इस सनसनीखेज़ मामले में अब तक कोई FIR दर्ज नहीं की गई, जिस पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सोमवार को गंभीर सवाल उठाए। उनकी टिप्पणी ने न्यायिक व्यवस्था की पारदर्शिता और जवाबदेही पर एक नई बहस को जन्म दे दिया है।
इस घटना के बाद सुप्रीम कोर्ट ने तीन न्यायाधीशों की एक आंतरिक समिति बनाई थी, जिसने अपनी जांच में आरोपों को “विश्वसनीय” माना। इसके बावजूद अब तक इस मामले में कोई FIR दर्ज नहीं हुई है। इसी को लेकर उपराष्ट्रपति ने सख्त नाराजगी जताई है और कहा कि यह न केवल चिंताजनक है, बल्कि कानून के शासन पर भी सवाल खड़े करता है।
“अरबों लोगों के मन को झकझोरने वाली है घटना”
वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया द्वारा संपादित पुस्तक ‘The Constitution We Adopted’ के विमोचन कार्यक्रम में बोलते हुए उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा, “लोग बेसब्री से इस सवाल का जवाब चाहते हैं – उस नकदी का स्रोत क्या था? उसका उद्देश्य क्या था? क्या न्यायिक व्यवस्था इससे प्रभावित हुई? और इस पूरे मामले में बड़ा दिमाग किसका लगा है?
धनखड़ ने कहा कि यह घटना “अरबों लोगों के मन को झकझोरने वाली है”, उन्होंने कहा कि “वैज्ञानिक, फोरेंसिक, विशेषज्ञ, गहन जांच की जरूरत है जो सब कुछ उजागर करे और कुछ भी छिपा न रहे। सच्चाई को सामने लाने की जरूरत है।”
जांच रिपोर्ट, लेकिन कोई कानूनी कार्रवाई नहीं
22 मार्च 2025 को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ आरोपों की जांच के लिए तीन सदस्यीय पैनल गठित किया था। समिति की रिपोर्ट में साफ कहा गया कि आरोप ‘विश्वसनीय’ हैं। इसके बावजूद, अब तक न तो कोई प्राथमिकी दर्ज हुई और न ही किसी प्रकार की सार्वजनिक कार्रवाई की गई।
उपराष्ट्रपति ने यह कहते हुए चिंता जताई कि इस जांच समिति की कोई “संवैधानिक वैधता” नहीं है और इसकी रिपोर्ट सिर्फ प्रशासनिक उद्देश्य के लिए है। उन्होंने पूछा कि क्या ऐसे गंभीर मामले में केवल आंतरिक रिपोर्ट ही पर्याप्त है, जब अरबों लोगों का भरोसा न्यायपालिका पर टिका हो?
वीरास्वामी जजमेंट पर उठाए सवाल
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने 1991 के सुप्रीम कोर्ट के वीरास्वामी फैसले पर भी सवाल उठाए। इस फैसले में कहा गया था कि किसी न्यायाधीश पर मुकदमा चलाने से पहले उच्च मंजूरी आवश्यक है। धनखड़ ने कहा कि यह व्यवस्था न्यायपालिका के चारों ओर “दंड से मुक्ति” का एक घेरा बना देती है। उन्होंने इस फैसले पर पुनर्विचार की आवश्यकता पर जोर दिया ताकि न्यायिक पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित की जा सके।
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अपने भाषण में धनखड़ ने यह भी कहा कि, “लुटियंस दिल्ली में हमारे एक जज के घर नोट जलाए गए, बेहिसाब नकदी मिली, लेकिन अब तक कोई FIR नहीं हुई। क्या यह कानून के शासन वाला देश है, जहां इतनी बड़ी बात पर भी कोई कानूनी कदम नहीं उठाया गया?” उन्होंने जोर देकर कहा कि कानून के शासन में एक पल की भी देरी नहीं होनी चाहिए। यदि लोकतंत्र को जीवित रखना है, तो संस्थानों और व्यक्तियों दोनों को जवाबदेह ठहराना जरूरी है।
“लोकतंत्र में संवाद और जवाबदेही जरूरी”
धनखड़ ने अपने भाषण में लोकतंत्र की तीन प्रमुख नींव – अभिव्यक्ति, संवाद और जवाबदेही – की चर्चा की। उन्होंने कहा कि अगर कोई सिर्फ अपनी बात कहना चाहता है और दूसरों की नहीं सुनना चाहता, तो यह लोकतंत्र नहीं, अहंकार है। उन्होंने यह भी कहा कि किसी व्यक्ति या संस्था को जांच से दूर रखना, उसे पतित करने का सबसे निश्चित तरीका है।
सीजेआई संजीव खन्ना की पारदर्शिता की तारीफ
धनखड़ ने पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की इस बात के लिए सराहना की कि उन्होंने आंतरिक दस्तावेजों को सार्वजनिक किया, जो आमतौर पर कभी सामने नहीं आते। उन्होंने इसे न्यायपालिका में विश्वास बहाल करने की दिशा में एक सकारात्मक कदम बताया।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि इस पूरे मामले की निष्पक्ष और तेज जांच होनी चाहिए, ताकि आम जनता को यह भरोसा हो सके कि देश में कोई व्यक्ति या संस्था कानून से ऊपर नहीं है। उन्होंने उम्मीद जताई कि न्यायपालिका में पारदर्शिता और जवाबदेही की परंपरा को मजबूत किया जाएगा, जिससे लोकतांत्रिक संस्थाओं में जनता का विश्वास बना रहे।