यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद लंबे खिंच रहे युद्ध का बुरा असर पूरी दुनिया पर दिखने लगा है। युद्ध की वजह से कई देशों में खाद्य संकट बढ़ गया है। जैसे-जैसे युद्ध का समय बढ़ रहा है, वैसे-वैसे दुनिया के सामने खाद्य सुरक्षा से जुड़ी चिंताएं बढ़ती जा रही हैं। मध्य पूर्वी और उत्तरी अफ्रीकी देशों के लिए अनाज की ज्यादातर आपूर्ति रूस और यूक्रेन से ही होती है। मिस्र को दुनिया का सबसे बड़ा गेहूं आयातक देश माना जाता है। मिस्र ने पिछले साल अपने गेहूं का 80 फीसद हिस्सा इन्हीं दो देशों से खरीदा था। संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम का भी कहना है कि वह दुनिया में जरूरतमंद लोगों को खिलाने के लिए जो अनाज खरीदता है, उसका 50 फीसद हिस्सा यूक्रेन से आता है।
खाद्य असुरक्षा को लेकर दुनिया के 14 देशों में सर्वे किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, जितने लोगों से बात की गई उनमें से 79 फीसद परिवारों ने बताया कि उन्हें किसी न किसी तरह की खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ रहा है। 25 फीसद परिवारों को भीषण खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ा है।
जलवायु संकट के कारण खाद्य संकट की चुनौतियां पहले से चली आ रही हैं। यूक्रेन संकट ने उसमें इजाफा किया है। ‘ग्लोबल अलायंस फार द फ्यूचर आफ फूड’ (जीएएफएफ) की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, खाद्य असुरक्षा और आयात पर निर्भरता की वजह अस्थिर खाद्य प्रणालियां हैं। इससे वैश्विक स्तर पर तापमान भी बढ़ता है। इस रिपोर्ट से पता चलता है कि दुनिया में ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) के एक तिहाई उत्सर्जन के लिए खाद्य प्रणालियां जिम्मेदार हैं। जीएएफएफ के अध्ययन से पता चलता है कि मिस्र में इस साल के नवंबर में आयोजित होने वाले ‘काप27’ में 14 देश किस तरह से खाद्य प्रणाली में बदलाव की बात को शामिल कर सकते हैं।
कुछ देशों में बदलाव की प्रक्रिया पहले से जारी है। पहला है, बांग्लादेश। वहां मौसमी चक्रवात और ज्वार से बांग्लादेश के बाढ़ प्रभावित हिस्से में नियमित नुकसान होता है। इसी इलाके में मछली पालन और धान की खेती होती है। हाल के दिनों में आई बाढ़ ने दुनिया के इस तीसरे सबसे बड़े चावल उत्पादक देश को मजबूर कर दिया कि उसे बाहर से अनाज का आयात बढ़ाना पड़ा। बांग्लादेश के हर दसवें आदमी के सामने भोजन का संकट है।
अब इस देश में बाढ़ प्रभावित इलाकों का बेहतर प्रबंधन किया जा रहा है। कृत्रिम उर्वरकों का इस्तेमाल बंद करके, मछली के अवशेषों का इस्तेमाल प्राकृतिक उर्वरक के तौर पर किया जा रहा है। साथ ही, मीथेन और कार्बन डाइआॅक्साइड जैसी ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन करने वाले जैविक पदार्थों के विघटन को रोकने के लिए बाढ़ के मैदानों में पानी को जमा रखा जा रहा है।
बदलाव की प्रक्रिया वाला दूसरा देश मिस्र है, जिसका लगभग 96 फीसद हिस्सा रेगिस्तान है। इस देश में खेती योग्य भूमि और ताजा पानी की काफी कमी है। मिस्र में यह भी अनुमान लगाया गया है कि कृषि योग्य भूमि के 12 से 15 फीसद हिस्से पर समुद्र के स्तर में वृद्धि होने की वजह से खारे पानी का बुरा प्रभाव होगा। ऐसे में आयात किए जाने वाले भोजन और विशेष रूप से अनाज पर लगातार बढ़ रही निर्भरता से तभी मुकाबला किया जा सकता है, जब इस रेगिस्तान को हरा-भरा बनाने की पहल की जाए।
तीसरा देश सेनेगल है। पश्चिम अफ्रीकी देश सेनेगल जलवायु लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए कृषि-पारिस्थितिक खाद्य प्रणाली को अपनाने और स्थायी तौर पर खाद्य उत्पादन की दिशा में काम करने वाले कुछ देशों में से एक है। सेनेगल के खाद्य क्षेत्र के उत्सर्जन में कटौती से जलवायु लक्ष्यों को पूरा किया जा सकेगा और खाद्य प्रणाली को सुधारने में भी मदद मिलेगी। सेनेगल का तापमान वैश्विक औसत के मुकाबले 1.5 गुना तेजी से बढ़ रहा है। सेनेगल हाल के वर्षों में मछली का बड़ा निर्यातक रहा है।