विकसित देशों को लेकर एक राय यह है कि वहां के लोग विकासशील और पिछड़े देशों से आयात किए गए सामान को ऊंचे दाम में भी खरीद लेते हैं। इसका कारण विकसित देशों के लोगों की उच्च आय को माना जाता है। इन देशों में आप्रवासियों को शिक्षा, व्यवसाय और रोजगार के बेहतर अवसर मिलते हैं। विकसित देशों में ब्रिटेन भी शामिल है, लेकिन यहां के बाशिंदों के खर्च की क्षमता अमेरिकियों जैसी बिल्कुल नहीं है। वहां बेरोजगारी और महंगाई से जनता बेहाल है तथा दूसरे देशों से आने वाले लोगों को भी कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

भारतीय व्यापारी सरकारी छापों और जुर्माने के डर से असुरक्षित महसूस कर रहे हैं

ऐसे में ब्रिटेन और भारत के बीच हुआ मुक्त व्यापार समझौता उम्मीदें तो जगा रहा है, लेकिन ब्रिटेन के बाजार का फायदा उठाने के लिए भारतीय व्यापारियों को वहां की अर्थव्यवस्था में सुधार और स्थिरता का इंतजार करना होगा। भारतीय विद्यार्थी आव्रजन नीति में बदलाव चाहते हैं, उनके रोजगार को लेकर अनिश्चितताएं बनी हुई हैं। ब्रिटेन के विश्वविद्यालयों में पढ़ाई करने जाने वाले भारतीय छात्रों की संख्या में बीस फीसद तक की गिरावट आई है। वहीं, भारतीय व्यापारी सरकारी छापों और जुर्माने के डर से असुरक्षित महसूस कर रहे हैं।

यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी में भी महंगाई पिछले एक वर्ष के दौरान डेढ़ से ढाई फीसदी के बीच रही है। यहां पर लोगों की धारणा यह है कि उन्हें जंग से नहीं, बल्कि महंगाई से डर लगता है। ब्रिटेन का हाल भी कुछ ऐसा ही है। इस साल जून में ब्रिटेन की मुद्रास्फीति दर करीब साढ़े तीन फीसद से थोड़ी ज्यादा थी और लगभग यही सिलसिला पिछले तीन वर्षों से जारी है।

अमेरिकी दबाव को दरकिनार कर भारत ने चुना अपना रास्ता, अब ब्रिटेन में बिना शुल्क बिकेगा देश का सामान

उच्च मुद्रास्फीति की इस लंबी अवधि के कारण पिछले तीन वर्षों में ब्रिटेन में उपभोक्ता कीमतों में बीस फीसद से अधिक की वृद्धि हुई है। खाद्य और ऊर्जा की कीमतें बढ़ी हुई हैं। वर्ष 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद यूरोपीय बाजारों में रूस से सस्ती गैस की आपूर्ति बंद हो गई।

रूस और यूक्रेन दोनों ही अनाज के प्रमुख निर्यातक हैं, लिहाजा इस युद्ध ने वैश्विक खाद्य बाजारों को भी अस्त-व्यस्त कर दिया। इस साल की शुरुआत में ब्रिटेन के आर्थिक विकास के पूर्वानुमान को दो फीसद से घटाकर एक फीसद कर दिया गया था। ब्रिटेन की बेरोजगारी दर बढ़कर साढ़े चार फीसद हो गई है। नौकरी रिक्तियों की संख्या भी लगभग चार वर्षों में अपने सबसे निचले स्तर पर आ गई है, जिससे काम की तलाश कर रहे लोगों के लिए रोजगार पाना मुश्किल हो गया है। ब्रेग्जिट के बाद ब्रिटेन में असमानता बढ़ी है, लिहाजा वहां का राष्ट्रीय ऋण काफी बढ़ गया है।

India-UK Trade Deal: फ्री ट्रेड डील पर हस्ताक्षर, अब सस्ते में मिलेंगे ये सामान, जानें दोनों देश एक-दूसरे से क्या खरीदते हैं

ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था की हालत अच्छी नहीं है। लोग सामान खरीद नहीं रहे हैं, क्योंकि उनके पास खरीदारी के लिए पैसे नहीं हैं। बेरोजगारी बढ़ गई है और सरकार गहरे दबाव में है। यूरोपीय संघ से अलग होने के बाद ब्रिटेन को अपनी अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए जरूरी था कि वह भारत से व्यापारिक संबंधों को मजबूत करे। भारत और ब्रिटेन के बीच बीते तीन साल से विचाराधीन मुक्त व्यापार समझौते पर अंतत: मुहर लग गई है। वर्ष 2020 में ब्रेग्जिट के बाद ब्रिटेन का किसी दूसरे देश के साथ यह सबसे बड़ा व्यापारिक समझौता है। इस समझौते के तहत ब्रिटेन से निर्यात किए जाने वाले सामान पर औसत शुल्क 15 फीसद से घटकर तीन फीसद हो जाएगा। इससे ब्रिटेन की कंपनियों के लिए भारत में सामान बेचना आसान हो जाएगा।

वहीं, ब्रिटेन में भारतीय वस्त्र और आभूषण भी सस्ते होंगे। दोनों ही पक्षों का दावा है कि इस समझौते से द्विपक्षीय व्यापार में खासा इजाफा होगा। इस समझौते से यह भी माना जा रहा है कि ब्रिटेन में काम करने के लिए भारतीय पेशेवर सरलीकृत वीजा प्रक्रियाओं और उदारीकृत प्रवेश श्रेणियों से लाभान्वित होंगे। इस समझौते से भारत के वस्त्र उद्योग को भी फायदा होने की उम्मीद है। भारत के लिए ब्रिटेन एक महत्त्वपूर्ण आयातक देश है। ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था में भारतीय कंपनियों की अहम भूमिका है। उच्च शिक्षा की दृष्टि से भारतीय छात्रों के लिए ब्रिटेन पसंदीदा देश है। दोनों देशों के आपसी संबंधों को मजबूत रखने में ब्रिटेन में रहने वाले करीब बीस लाख प्रवासी भारतीयों का अहम योगदान है। ये प्रवासी भारतीय न केवल ब्रिटेन और भारत के बीच एक सेतु का काम कर रहे हैं, बल्कि ब्रिटेन की प्रगति में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

सामने बैठे थे ब्रिटेन PM स्टार्मर, मोदी क्यों बोले- हम हमेशा स्ट्रेट बैट से ही खेलते हैं; किस ओर इशारा?

भारत और ब्रिटेन के बीच मुक्त व्यापार समझौता तो हो गया है, लेकिन इसमें राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक समस्याओं का हल होना शेष है। इस समझौते को अब ब्रिटिश संसद की मंजूरी मिलनी है। माना जा रहा है कि इसमें कई महीने लग सकते हैं। इसका प्रमुख कारण यह भी है कि देश का मुख्य विपक्षी दल कंजरवेटिव पार्टी में भारत से इस प्रकार के समझौते को लेकर आपसी मतभेद हैं। ब्रिटेन में प्रवासियों की संख्या अच्छी खासी है और वहां के नागरिक बाहर से आने वाले लोगों को लेकर आशंकित भी रहे हैं। यूरोपीय संघ से अलग होने का एक कारण यह भी था कि ब्रिटेन के लोग आप्रवासन से उपजी परिस्थितियों को लेकर बेचैन हो रहे थे। भारत के साथ व्यापार समझौते पर वार्ता ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री बोरिस जानसन के कार्यकाल में वर्ष 2022 में शुरू हुई थी।

ब्रेग्जिट के बाद ब्रिटिश अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए भारत से संबंधों को लेकर कंजरवेटिव पार्टी के भीतर ही गहरे मतभेद सामने आ गए। ब्रेग्जिट के बाद ब्रिटेन के आम जनमानस की मुक्त बाजार को लेकर बहुत महत्त्वाकांक्षाएं रही हैं। अब इसे लेबर पार्टी ने साकार तो किया है, लेकिन भारत को लेकर ब्रिटेन के लोग पूरी तरह सहज हैं, ऐसा बिल्कुल नहीं है।

ब्रिटेन के निवासियों को लगता था कि यूरोपीय संघ में ज्यादा समय तक बने रहने से न केवल उनका सांस्कृतिक और सामाजिक परिदृश्य बदल जाएगा, बल्कि स्थानीय नागरिकों के सामने रोजगार और सुरक्षा का संकट भी गहरा सकता है।

अब भारत को लेकर भी उनका यही व्यवहार सामने आ रहा है। ब्रिटेन के परंपरावादी समाज के लिए मुक्त बाजार व्यवस्था स्वीकार्य तो है, लेकिन मुक्त आवाजाही से आप्रवासन बढ़ने की आशंका को वे गंभीर मानते हैं। यह भी देखने में आया है कि भारतीयों के साथ रंगभेद और नस्लीय पूर्वाग्रह के कारण उन्हें अवैध प्रवासी मान लिया जाता है। उनके दस्तावेज खारिज हो जाते हैं। ब्रिटेन में सरकार की एक रपट में स्वीकार किया गया है कि दक्षिण एशियाई लोगों विशेषकर भारत से आने वाले प्रवासियों से भेदभाव हो रहा है।

ब्रिटिश भारतीय आधुनिक ब्रिटेन में सबसे सफल जातीय-धार्मिक समूहों में से एक हैं। अन्य सभी जातीय समूहों की तुलना में भारतीय परिवारों के पास घर के स्वामित्व की दर सबसे अधिक करीब इकहत्तर फीसद है। भारतीयों की प्रगति और सभी क्षेत्रों में बढ़ती भागीदारी को लेकर ब्रिटेन के स्थानीय लोग आशंकित है। फरवरी में अमेरिका की तर्ज पर ब्रिटेन ने भी अवैध प्रवासियों पर सख्त कार्रवाई की थी।

कई जगहों पर छापेमारी हुई, जिनमें भारतीयों द्वारा चलाए जा रहे छोटे कारोबार भी शामिल थे। यह अभियान अब भी जारी है और ब्रिटेन में भारतीय रेस्तरां और किराना स्टोर जैसे छोटे व्यापार सरकार के निशाने पर हैं। ब्रिटेन में अवैध प्रवासियों को काम पर रखने वाले कारोबारियों पर भी भारी जुर्माना लगाया जा रहा है। भारत जैसे विशाल बाजार को देखते हुए मुक्त व्यापार समझौता ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था के लिए बहुत अच्छा माना जा रहा है पर भारत को इसका फायदा कैसे मिलेगा, यह देखना दिलचस्प होगा।