विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के द्वारा ड्राफ्ट किए गए इतिहास के नए सिलेबस पर सवाल खड़े होने लगे हैं। आयोग की तरफ से स्नातक के लिए नए सिलेबस को तैयार किया जा रहा है। जिसके लिए एक ड्राफ्ट तैयार किया गया और वेबसाइट पर 28 फरवरी तक लोगों से इसे लेकर प्रतिक्रिया मांगी गयी थी। लेकिन आयोग की तरफ से तैयार किए गए ड्राफ्ट पर कई लोगों ने सवाल उठाए हैं, उनका कहना है कि आयोग की तरफ से पाठ्यक्रम में भगवाकरण करने का प्रयास किया जा रहा है।
जानकारों का कहना है कि यह पहली बार है जब उच्च शिक्षा नियामक सामान्य दिशा-निर्देश जारी करने के बजाय इतिहास का पूर्ण पाठ्यक्रम तैयार करने का प्रयास कर रहा है। गौरतलब है कि यूजीसी की तरफ से तैयार किये गए सिलेबस में “20 से 30 प्रतिशत तक ही परिवर्तन किसी यूनिवर्सिटी के द्वारा की जाएगी। नए ड्राफ्ट सिलेबस के अनुसार अब दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास (ऑनर्स) का पहले पेपर में ‘आइडिया ऑफ भारत’ पढाया जाएगा।
छात्रों और शिक्षकों ने आरोप लगाया है कि नए सिलेबस में मुस्लिम शासन के महत्व को कम करने का प्रयास किया गया है और वैदिक काल और हिंदू धार्मिक ग्रंथों से जुड़े कई मिथक को डाला गया है। वेद, उपनिषद जैसे धार्मिक साहित्य को सिलेबस में जगह दी गयी है।
ड्राफ्ट सिलेबस के तीसरे पेपर में प्राचीन इतिहास में सिंधु-सरस्वती सभ्यता को बताया गया है। उसके पतन के कारणों का जिक्र किया गया है। बताते चलें कि वेदों में सरस्वती नदी का उल्लेख मिलता है, लेकिन इतिहास में उसकी व्याख्या विवादित रही है।
“भारत की सांस्कृतिक विरासत” नाम के 12 वें पेपर में “रामायण और महाभारत से जुड़े सांस्कृतिक विरासत की परंपरा” जैसे विषय शामिल किए गए हैं। छात्रों ने आरोप लगाया है कि नए सिलेबस में आक्रमणकारी शब्द का प्रयोग सिर्फ मुस्लिम शासकों के आगे किया गया है। ईस्ट इंडिया कंपनी को भी आक्रमणकारी नहीं बताया गया है।