दिल्ली में उबर कैब सर्विसेज में यात्रियों को पैनिक बटन की सुविधा दी जाती है। इस सुविधा को यात्रियों के लिए नई दिल्ली में उबर ड्राइवर के द्वारा महिला यात्री के बलात्कार के बाद सभी कमर्शियल वाहनों जैसे टैक्सी और बस में जरूरी कर दिया गया था। ये बटन सीधे पुलिस के सर्विलांस सिस्टम से जुड़ा हुआ होता है। इसकी मदद से यात्री बिना स्मार्टफोन के केवल इसे दबाकर पुलिस को अलर्ट कर सकते हैं।

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ की जांच में खुलासा हुआ है कि 2014 में दिल्ली उबर कैब में बलात्कार के बाद कंपनी के सैन फ्रांसिस्को स्थित हेडक्वार्टर में भी हड़कंप मच गया था, लेकिन बलात्कार की घटना के 8 साल बाद भी दिल्ली-एनसीआर की केवल 11, 000 कमर्शियल वाहनों में ही पैनिक बटन इंस्टॉल हो पाया है। साफ तौर पर नियमों को बनाने और उनके पालन करने में यहां पर बड़ा अंतर है। ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ ने दिल्ली में 50 उबर की कैब बुक कीं, जिसमें से 48 कैब में पनिक बटन नहीं पाया गया था। इसके साथ ही मॉनिटरिंग सिस्टम में कई तरह की गड़बड़ियां पाई गईं, जिसमें सॉफ्टवेयर इंटीग्रेशन का मुद्दा काफी बड़ा है, जिसके कारण नोडल ट्रांसपोर्ट एजेंसी को कैब से आए रियल टाइम अलर्ट को पुलिस तक पहुंचाने में समस्या आती है।

50 उबर कैब में से केवल सात में ही पैनिक बटन सक्रिय थे। इन सात में से पांच में बटन दबाने पर 20 मिनट के इंतजार के बावजूद दिल्ली पुलिस की ओर से कोई कार्रवाई नहीं हुई।

43 कैब में 29 में पैनिक बटन नहीं थे। केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय द्वारा 2016 में पैनिक बटन के इस्तेमाल की अधिसूचना के बावजूद 29 कारों में से 15 में ड्राइवरों ने कहा कि उन्होंने हरियाणा और यूपी से फिटनेस प्रमाण पत्र के साथ वाहन खरीदे थे। अन्य 14 ने कहा कि उन्होंने 2019 से पहले अपनी कार खरीदी थी और 2019 बाद ही सभी कारों में पैनिक बटन अनिवार्य हुआ है।

43 की सूची में चार ड्राइवरों ने कहा कि उनकी कारों के पैनिक बटन उनके ही बच्चों ने तोड़ दिए हैं जबकि तीन ने कहा कि कई बार यात्री ऐसे ही पैनिक बटन दबा देते हैं, जिस कारण उन्होंने बटन को निष्क्रिय कर दिया था। और सात ड्राइवरों ने कहा कि मरम्मत कार्य करने के बाद बटन ने काम करना बंद कर दिया। हालांकि यह समस्या सिर्फ उबर में नहीं है।

दिल्ली पुलिस की प्रवक्ता सुमन नलवा ने कहा, ‘हमें उबर या ओला जैसी कमर्शियल टैक्सियों से अब तक कोई पैनिक बटन अलर्ट नहीं मिला है। यह केंद्र सरकार की अधिसूचना के अनुसार परिवहन विभाग द्वारा किया जाना था। हम हिम्मत प्लस जैसे स्वयं के ऐप लेकर आए हैं और अपनी पीसीआर वैन को अत्याधुनिक तकनीक से लैस किया है, जो संकटकालीन कॉल का तुरंत जवाब देती है।”

नलवा ने कहा कि पुलिस को अपने सॉफ्टवेयर को परिवहन विभाग की निगरानी एजेंसी के साथ एकीकृत करने में “लगभग 20 दिन” लगेंगे और सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ एडवांस कंप्यूटिंग (सीडीएसी) के साथ बातचीत कर रहे हैं, जो इस पहल पर कार्य कर रहा है।