Language Controversy: महाराष्ट्र और तमिलनाडु में तो नेशनल एजुकेशन पॉलिसी 2020 में प्रस्तावित थ्री लैंग्वेज पॉलिसी का विरोध जमकर हुआ। इसके बाद अब कर्नाटक की सरकार ने भी इसका विरोध किया है। सरकार थ्री लैंग्वेज पॉलिसी को राज्य पर हिंदी थोपने के एक तरीके के तौर पर देख रही है। वहीं, टू लैंग्वेज करिकुलम की ओर उसके कदम ने भी बैचेनी पैदा कर दी है।
इस समय कर्नाटक स्टेट बोर्ड के स्कूलों में थ्री लैंग्वेज पॉलिसी को फॉलो किया जाता है। इसके तहत राज्य के स्टूडेंट्स को क्लास 6 से थर्ड लैंग्वेज के तौर पर हिंदी, संस्कृत या कोई भी भारत की भाषा चुनने की इजाजत होती है। इस बीच, पहली भाषा तो कन्नड़ रहेगी और दूसरी इंग्लिश। हालांकि, उर्दू, मराठी, तेलुगु और तमिल मीडियम के स्कूलों में पहली भाषा ही मीडियम की संबंधित भाषा होगी। दूसरी भाषा का ज्यादातर ऑप्शन इंग्लिश होता है, जबकि तीसरी भाषा हिंदी या कन्नड़ होती है।
दक्षिण भारत की भाषाई विविधता एक जीवंत ताना-बाना – प्रदेश कांग्रेस
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट में राज्य कांग्रेस 29 जून को कहा था, ‘दक्षिण भारत की भाषाई विविधता एक जीवंत ताना-बाना है, जो कन्नड़, कोडवा, तुलु, कोंकणी, तमिल, तेलुगु, मलयालम और कई अन्य भाषाओं को एक साथ पिरोती है। हालांकि, स्कूलों में, खासकर कर्नाटक जैसे गैर-हिंदी भाषी राज्यों में, हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करना कलह पैदा करता है। कन्नड़, तुलु या कोडवा भाषियों के लिए, जो कन्नड़ और अंग्रेजी में धाराप्रवाह हैं, लिखित हिंदी में संघर्ष करना एक बड़ी चुनौती है।’
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सिद्धारमैया ने टू लैंग्वेज पॉलिसी का समर्थन किया
इस महीने की शुरुआत में पत्रकारों से बातचीत में सीएम सिद्धारमैया ने टू लैंग्वेज पॉलिसी का समर्थन किया और इस बात पर जोर दिया कि उनकी सरकार इसके लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। एजुकेशन एक्सपर्ट निरंजनाराध्या वी.पी. ने टू लैंग्वेज पॉलिसी के लिए इस कोशिश का समर्थन किया है। उन्होंने कहा, ‘तीसरी भाषा शुरू करने से बच्चे पर ज्यादा बोझ पड़ता है, जिससे उनकी स्किल पर असर पड़ेगा। तमिलनाडु की तरह, कर्नाटक को भी राज्य बोर्ड के स्कूलों में दो भाषाओं को ही शामिल करना चाहिए। इसमें एक क्षेत्रीय भाषा कन्नड़ और दूसरी इंग्लिश हो। रिसर्च से साबित हुआ है कि बच्चों के मुकाबले बड़ों में लैंग्वेज प्रोफिएंसी ज्यादा होती है। इसलिए, शुरुआत में ही ज्यादा भाषाओं को शामिल करने से उनकी स्किल प्रभावित होगी।’
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, सरकारी स्कूल के सूत्रों ने बताया कि स्कूल एजुकेशन डिपार्टमेंट ने अभी तक लैंग्वेज पॉलिसी में बदलाव पर विचार नहीं किया है। इसके अलावा, एसईपी कमीशन ने अभी तक टू लैंग्वेज पॉलिसी पर अपनी रिपोर्ट पेश नहीं की है।
कर्नाटक विधान परिषद के अध्यक्ष ने सीएम को लिखा पत्र
13 जुलाई को कर्नाटक विधान परिषद के अध्यक्ष बसवराज होराट्टी ने सिद्धारमैया को एक पत्र लिखा। इसमें कोठारी एजुकेशन कमीशन की परिकल्पना के मुताबिक, इसमें मल्टीपल लैंग्वेज को बढ़ावा देने के लिए थ्री लैंग्वेज पॉलिसी को जारी रखने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि थ्री लैंग्वेज फॉर्मूला स्टूडेंट्स को अलग-अलग भाषाओं में अच्छी तरह से बातचीत करने की क्षमता को बढ़ावा देता है। इससे वह अपना करियर बना सकते हैं। सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार से खफा हो गए राहुल गांधी?