शिमला हाईकोर्ट ने कांगड़ा सिविल हॉस्पिटल के डॉक्टरों पर भारी-भरकम जुर्माना लगाया है। वजह है नाबालिग रेप पीड़िता का गलत टू फिंगर टेस्ट किया जाना। खबर के मुताबिक कोर्ट ने आदेश दिया है कि पीड़िता को पांच लाख का मुआवजा भी दिया जाए और इस रकम की वसूली डॉक्टरों से की जाए।
यह आदेश जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस सत्येन वैद्य की पीठ ने सुनाया है, कोर्ट ने माना है कि पीड़िता की गरिमा को ठेस पहुंचाई गई है और टू फिंगर टेस्ट ना किए जाने को लेकर पहले भी चेताए जाने का हवाला दिया।
क्या होता है टू फिंगर टेस्ट?
एक या दो उंगली से रेप पीड़िता की वर्जिनिटी टेस्ट करने की प्रक्रिया को टू-फिंगर टेस्ट कहा जाता है। यह टेस्ट महिला के साथ शारीरिक संबंध होने या न होने, महिला के शारीरिक संबंधों की आदत और वर्जिनिटी से जुड़े सबूत के तौर पर माना जाता रहा है।
मॉडर्न साइंस भी टू-फिंगर टेस्ट को नकारता है और जानकारों का मानना है कि यह टेस्ट महज एक मिथ है और एक गलत तरीका है। इससे पहले भी मद्रास हाईकोर्ट अपने एक आदेश में कह चुका है कि टू-फिंगर टेस्ट बलात्कार पीड़िताओं की निजता, शारीरिक और मानसिक अखंडता और गरिमा के अधिकार का उल्लंघन है।
सुप्रीम कोर्ट ने लगा दिया था बैन
टू-फिंगर टेस्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फ़ैसला सुनाया था। कोर्ट ने जांच के इस तरीके को मेडिकल की पढ़ाई से हटाने का का आदेश दिया था और इसे अवैज्ञानिक करार दिया था। कोर्ट ने कहा था कि यह तरीका पीड़िता को और ज्यादा प्रताड़ित करने वाला है।
न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायाधीश हिमा कोहली की बेंच ने ये फ़ैसला सुनाया था। टू-फ़िंगर टेस्ट का इस्तेमाल रेप के आरोपों की जांच के लिए होता रहा है लेकिन कोर्ट इसे बेहद खराब और गलत तरीका मानता रहा है। कोर्ट का मानना रहा है कि यह पीड़िता के मानसिक स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकता है।