केंद्रीय गृह मंत्रालय के तहत काम करे रहे जम्मू-कश्मीर प्रशासन की हाईकोर्ट में जमकर फजीहत हुई। दरअसल दो मौलवियों को प्रशासन ने हेट स्पीच के नाम पर जेल में डाल दिया था। हाईकोर्ट में मामला पहुंचा तो प्रशासन ये भी नहीं बता सका कि दोनों ने हेट स्पीच कब और कहां दी थी? दोनों को सितंबर 2022 में Jammu and Kashmir Public Safety Act के तहत जेल में डाला गया था। साल बाद दोनों को इंसाफ मिल सका।

हाईकोर्ट के जस्टिस रजनीश ओसवाल और जस्टिस संजय धर की बेंच प्रशासन की हरकत को लेकर हैरत में थी। डबल बेंच का सवाल था कि आप ऐसे ही कैसे किसी को जेल में डाल सकते हैं। कोर्ट को ये भी बताया गया कि पीड़ितों की तरफ से कुछ लोगों ने प्रशासन को सच बताने की कोशिश भी की। वो जाकर संबंधित अफसर से मिले भी। उनको सच भी बताया लेकिन अधिकारी ने उनकी बात पर ध्यान तक नहीं दिया।

हाईकोर्ट बोला- प्रशासन ने दिमाग का इस्तेमाल तक नहीं किया

बेंच का कहना था कि प्रशासन ने दिमाग लगाए बगैर दोनों को जेल में भेजने का आदेश सुना दिया। जिला मजिस्ट्रेट ने ये भी नहीं देखा कि कौन से अपराध के लिए उनको जेल भेजा जा रहा है। नाम दिया हेट स्पीच का पर कहीं भी इसका जिक्र नहीं है कि हेट स्पीच कब और कहां दी गई।

ये याचिका मुश्ताक अहमद उर्फ वीरी और मौलवी अब्दुल राशिद शेख उर्फ दाऊदी की तरफ से दायर दो अलग-अलग याचिकाओं पर ये फैसला सुनाया। वीरी के मामले में कोर्ट ने कहा कि ना तो जगह का जिक्र है और ना ही समय का। फिर भी हेट स्पीच का केस लगा दिया गया। कम से कम ये तो बताते कि कौन सी जगह और किस वक्त वीरी ने हेट स्पीच दी थी। वीरी की तरफ से एडवोकेट शफकत नाजिर ने बहस की थी।

दाऊदी के केस में हाईकोर्ट का रुख और ज्यादा सख्त था। कोर्ट का कहना था कि कम से कम प्रशासन को दिमाग का इस्तेमाल तो करना चाहिए था। कोर्ट ने कहा कि मौलवी की हिरासत से जुड़े दस्तावेजों में भी हेरफेर की गई है। ऐसा लगता है कि प्रशासन उसके जेल भेजने पर ही आमादा थी।