सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों यानी एमएसएमई को देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है। समय-समय पर दुनिया भर में विपरीत हालात के दौर में भी भारत में स्थितियां नियंत्रण में रहीं, आर्थिक मोर्चे पर देश किसी गंभीर संकट में नहीं घिरा तो उसका मुख्य कारण छोटे उद्यमों से तैयार बुनियादी ढांचा रहा, जिसने संकट के उबरने में अहम भूमिका निभाई। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से इस क्षेत्र में जिस तरह की समस्याएं खड़ी हुई हैं, उसने कई स्तर पर चिंता पैदा की है।
गुरुवार को सरकार ने संसद में यह जानकारी दी कि बीते तीन सालों के दौरान करीब बीस हजार सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम या तो बंद हो गए या फिर उन्होंने काम करना बंद कर दिया। अकेले अप्रैल 2022 से मार्च 2023 तक तेरह हजार दो सौ नब्बे एमएसएमई बंद हो गए। एक साल मेंं इतने बड़े पैमाने पर छोटी औद्योगिक इकाइयों के बंद होने का तथ्य निश्चित रूप से परेशान करने वाला है। खासतौर पर इसलिए भी कि सरकार ने इस क्षेत्र को मजबूत करने पर अक्सर जोर दिया है और समय-समय पर इसे मजबूत बनाने के लिए आर्थिक सहायता की व्यवस्था करने की बात भी की है।
सवाल है कि छोटे उद्यमों की वजह से अर्थव्यवस्था में जीवन बने रहने की अहमियत के बावजूद यह स्थिति क्यों बन रही है कि देश के आर्थिक ढांचे में इस क्षेत्र की जगह लगातार सिकुड़ती जा रही है! हालांकि यह तथ्य है कि सरकार की ओर से जिन तीन सालों में इतने बड़े पैमाने पर छोटे उद्यमों के बंद होने की बात कही गई है, उसमें एक बड़ी भूमिका महामारी की वजह से लगाई गई पूर्णबंदी और उससे उपजे हालात की रही।
उस दौर में सब कुछ बंद होने की स्थिति का सबसे बड़ा असर लघु स्तर पर चलने वाले व्यवसायों पर ही पड़ा, क्योंकि इनका संचालन करने वालों के पास कोई बड़ी पूंजीगत सुरक्षा नहीं होती और वे अपनी इकाइयों में रोजमर्रा के उत्पादन या कारोबार से नियमित स्तर पर होने वाली आय पर ही निर्भर रहते हैं। पूर्णबंदी के बाद हालात सामान्य होने में लंबा वक्त लग गया और ऐसे में बहुत सारे छोटे उद्यमी बड़े आर्थिक झटके को झेल पाने की स्थिति में नहीं रहे। यही वजह है कि सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों के क्षेत्र में इसका विपरीत प्रभाव पड़ा और बहुत सारे लोगों के सामने अपनी इकाइयां बंद करने के सिवा अन्य विकल्प नहीं बचे।
सरकार की ओर से उन्हें बचाने का कोई प्रयास क्यों नहीं किया गया
सवाल है कि अर्थव्यवस्था की संरचना में जिस एमएसएमई का इतना जरूरी योगदान रहा और जिसकी भूमिका को बेहद महत्त्वपूर्ण माना गया, खुद सरकार के स्तर पर इसे बढ़ावा देने की बात कही गई, उसे संकट में खत्म होने के लिए क्यों छोड़ दिया गया! गौरतलब है कि सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय देश भर में एमएसएमई को ऋण और प्रौद्योगिकी सहायता, अवसंरचना व कौशल विकास के साथ-साथ प्रशिक्षण और बाजार सहायता के क्षेत्र में भी विभिन्न योजनाओं का कार्यान्वयन करता है।
जाहिर है, इस समूचे क्षेत्र के महत्त्व को समझते हुए इसकी मजबूती के लिए संगठित स्तर पर प्रयास करने की व्यवस्था की गई है। लेकिन खासतौर पर पिछले तीन सालों के दौरान विश्व भर में खड़ी हुई असाधारण परिस्थितियों की सबसे गहरी मार छोटे उद्यमियों पर ही पड़ी। जबकि इसी दौर में शीर्ष उद्यमियों की स्थिति काफी मजबूत हुई।
स्वाभाविक रूप से इस विरोधाभासी स्थिति पर सवाल उठेंगे। जरूरत इस बात की है कि आर्थिक मंदी या संकट के दौर में जिस तरह बड़े उद्योगों के लिए विशेष इंतजाम किए जाते हैं, वैसे ही देश की अर्थव्यवस्था में अहम योगदान देने और एक बड़ी आबादी को रोजगार देने और उनके जीवनयापन का जरिया होने के मद्देनजर छोटे उद्यमियों के लिए भी अलग से सहायता का प्रबंध किया जाए।