सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) क्षेत्र में युवाओं के लिए रोजगार की अपार संभावनाएं हैं। यह क्षेत्र विशेषकर उन युवाओं के लिए सुनहरा मौका लेकर आया है जो स्वयं के रोजगार के बारे में सोचते हैं और जिनका उद्देश्य स्वयं को रोजगार से जोड़ना है व अन्य बेरोजगार युवाओं को रोजगार के अवसर उपलब्ध करवाना है।
केंद्र के साथ कुछ राज्यों में भी यह मंत्रालय काम करता है
एसएसएमई का अर्थ सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम होता है जिसके लिए भारत में केंद्रीय स्तर पर एक मंत्रालय है। कुछ राज्यों में भी यह मंत्रालय काम करता है। युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने और बेरोजगारी को खत्म करने के लिए रणनीतिक रूप से देश के विभिन्न नागरिक समूहों, युवाओं, युवतियों एवं अन्य वर्ग के लोगों को रोजगार से जोड़ने का व्यापक कार्य इस क्षेत्र के माध्यम से किया जा रहा है।
वित्तमंत्री ने सभी तक रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने को कहा था
यह क्षेत्र वर्तमान में लोगों तक रोजगार पहुंचाने का विश्वसनीय माध्यम बन चुका है। इसी के चलते केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण में कहा था कि हम एक समृद्ध और समावेशी भारत की कल्पना करते हैं, जिसमें विकास का लाभ सभी क्षेत्रों और नागरिकों, विशेष रूप से हमारे युवाओं, महिलाओं, किसानों, ओबीसी, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति तक पहुंचे।
केंद्रीय एमएसएमई मंत्रालय ने हर उपक्रम (उद्योग) के लिए निवेश की सीमा निर्धारित की है जिससे वित्त के आधार पर तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है। पहली श्रेणी में वे उद्योग आते हैं जिसमें निवेश की सीमा (मशीनरी, संयंत्र एवं उपस्कर) तक होती है साथ ही एक साल में उत्पादन पांच करोड़ रुपए तक होता है। इससे साफ है कि सरकार कम पूंजी के उद्योगों को ज्यादा प्रोत्साहित करना चाहती है क्योंकि इन कुटीर उद्योगों के माध्यम से ज्यादा रोजगार उत्पन्न किया जा सकता है।
ठीक इसी प्रकार एमएसएमई की दूसरी श्रेणी में जो लघु उद्योग आते हैं, उनके लिए सरकार की नीतियों के अनुसार निवेश की सीमा लगभग दस करोड़ रुपए तक निर्धारित की गई है। इसके अलावा इस उद्योग के जरिए एक साल में कारोबार की सीमा 50 करोड़ रुपए तक सीमित की गई है। सरकार द्वारा ऐसे उद्योगों पर भी ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है क्योंकि रोजगार देने की संभावनाओं में देश भर में इनका महत्त्वपूर्ण योगदान है।
इसके अलावा तीसरी एवं अंतिम उद्योग की श्रेणी है मध्यम उपक्रम जिसमें संयंत्र और मशीनरी में 50 करोड़ रुपए निवेश की सीमा निर्धारित है और साथ ही इस उद्योग का कारोबार एक साल में 250 करोड़ रुपए से अधिक नहीं होना चाहिए।
एसएसएमई क्षेत्र के जरिए आत्मनिर्भर बनता भारत
रोजगार से जुड़ी समस्याओं को दूर करने के लिए सरकार संगठित रूप से ‘मेक इन इंडिया’ के तहत देश में ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान की शुरुआत कर चुकी है। इससे जुड़कर युवा सीधे एमएसएमई क्षेत्र में रोजगार का लाभ प्राप्त कर सकते हैं। इसके लिए युवाओं की कार्यशालाओं का भी आयोजन किया जा रहा है। यह अभियान बेरोजगार युवाओं को एक ओर रोजगार प्रदान कर रहा है साथ ही इसके माध्यम से स्वरोजगार के अवसर भी पैदा हो रहे हैं।
एमएसएमई क्षेत्र के मुख्य उद्योग
एमएसएमई क्षेत्र वर्तमान में देख की लगभग 40 फीसद आबादी को रोजगार देने का कार्य कर रहा है। इसमें निम्न कुशल से लेकर पूर्ण कुशल एवं पारंपरिक कुटीर उद्योगों को सरकारी सहायता के बाद दक्ष बना कर ज्यादा से ज्यादा आजीविका और रोजगार के साधन प्रदान किए जा रहे हैं। व्यक्तिगत और घरेलू सामानों की मरम्मत का कुल 40 फीसद हिस्सा कारोबार एमएसएमई क्षेत्र के अंतर्गत ही आता है। वस्त्र उद्योग यानी वस्त्र निर्माण जिसका कुल योगदान 8.75 फीसद हैं। यह उद्योग कुटीर उद्योगों में सबसे पुराने उद्योगों में से एक है। इस उद्योग में रोजगार की अपार संभावनाएं हैं। वस्त्र उद्योग में कई युवा नवउद्यम शुरू कर रहे हैं और अन्य लोगों को रोजगार दे रहे हैं।
इसमें छोटी बुनकर ईकाइयों से लेकर खादी ग्राम उद्योग सभी शामिल हैं। पेय एवं खाद्य उत्पादकों से संबंधित उद्योग एमएसएमई के मुख्य उद्योगों में से एक हैं। खाद्य एवं पेय उत्पादकों की कुल हिस्सेदारी 6.94 फीसद है। खिलौना उत्पादन उद्योग भी स्वरोगार संभावनाओं से भरा हुआ है। खिलौना निर्माण के वैश्विक उपभोग के आंकड़ों के अनुसार यह व्यवसाय 2022 में 170.7 अरब डालर का था जो विश्व में 7.2 फीसद की दर से वृद्धि कर रहा है। 2028 में यह 267.9 अरब डालर का हो जाएगा।
भारत में खिलौना व्यवसाय 2021 के आंकड़ों के अनुसार 1.35 अरब डालर का था। 2027 में भारत में खिलौना व्यवसाय 2.73 अरब डालर तक पहुंचने की संभावना है। इन उद्योगों से जुड़कर युवा बेहतर भविष्य का सपना देख सकते हैं एवं रोजगार की अपार संभावनाओं को तलाश सकते हैं।
‘आत्मनिर्भर भारत’ योजना के तहत भारत सरकार ऐसे कुटीर उद्योगों को बढ़ावा दे रही है जिसमें देश भर में स्वेदशी खिलौना उत्पादन उद्योग को व्यापक स्तर पहचान मिल सके साथ ही चीन का विश्व खिलौना उत्पादन में जो प्रभुत्व है उसको खत्म किया जा सके।
- सुनील कुमार
(शिक्षक, दिल्ली पत्रकारिता विद्यालय, डीयू)