देश की बढ़ती आबादी पर नियंत्रण के लिए भाजपा सरकार का जनसंख्या नियंत्रण कानून लाने के विचार पर तमाम तरह की बातें कही जा रही हैं। कुछ लोग इसे भाजपा सरकार का मुसलमानों के खिलाफ कानून बता रहे हैं तो कुछ लोगों का कहना है कि कानून सबके लिए समान रूप से बनना चाहिए। इस मुद्दे पर इंडिया टीवी में एंकर सौरव शर्मा के साथ डिबेट में वरिष्ठ अधिवक्ता रिजवान अहमद ने कहा कि सरकार साफ करे कि कानून सबके लिए है या सिर्फ मुसलमानों के लिए है। पहले यह तय कर ले।

उन्होंने कहा कि पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने कहा है कि तीस साल पहले हिंदुओं और मुसलमानों के बच्चों में केवल एक का अंतर था। कुरैशी साहब ने कहा कि एक बच्चे का फर्क है। सुनने में बहुत कम लगा, लेकिन इस एक को हिंदू के तीन और मुसलमान के चार कहेंगे तो सुनने में एकदम ज्यादा लगेगा, जिसका 100 साल बाद नजर आएगा। 1400 साल में 100 ऐसे उदाहरण होंगे, जहां मुस्लिमों की बढ़ती आबादी ने उस जगह को कल्चरली और पोलिटिकली टेकओवर कर लिया है।

इससे पहले पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने कहा कि पिछले 60-70 सालों में यह धारणा बनाई जाती रही है कि अगर हिंदू परिवार में दो बच्चे हैं तो मुस्लिम परिवार में आठ या दस बच्चे होंगे। जबकि नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे भारत सरकार की रिपोर्ट है, में बताया गया है कि तीस साल पहले यह गैप केवल एक बच्चे का था। वह घटकर अब 0.3 थी हो गई है। यानी एक बच्चे का भी नहीं है।

दूसरी बात यह मिथ कि मुसलमानों में फैमिली प्लानिंग सबसे कम अपनाई गई है, यह लेटेस्ट रिपोर्ट में 47 फीसदी है। लेकिन आप भूल जाते हैं कि रिपोर्ट के मुताबिक 42 फीसदी हिंदुओं ने फैमिली प्लानिंग नहीं अपनाई है। इसका मतलब 100 करोड़ हिंदुओं में 42 करोड़ ने नहीं अपनाया है, जबकि मुसलमानों में केवल 8-9 करोड़ लोग ऐसे हैं, तब ज्यादा दोषी कौन है।

वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि देश के दो सौ जिलों में और दस राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हो गए हैं। अगर इस पर रोक नहीं लगाई गई और कोई उपाय नहीं किया गया तो हालात काफी खराब हो जाएंगे।