जेडीयू ने बुधवार को अपने उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर एवं महासचिव पवन वर्मा को पार्टी से निष्कासित कर दिया। जेडीयू की तरफ से कहा गया कि हाल के दिनों में उनके आचरण ने यह स्पष्ट किया है कि वे पार्टी के अनुशासन का पालन नहीं करना चाहते हैं। जेडीयू से निष्कासन के तुरंत बाद किशोर ने कहा, ‘शुक्रिया नीतीश कुमार। मेरी शुभकामना है कि आप बिहार के मुख्यमंत्री पद पर बरकरार रहें। भगवान आपका भला करे।’ वहीं पवन वर्मा ने कहा ‘वह (नीतीश कुमार) अब अपने शॉर्ट टर्म पॉलिकिटल गोल्स को हासिल कर सकते हैं। मैं आशा करता हूं कि आप हर कीमत पर बिहार के मुख्यमंत्री बने रहें। पार्टी के संविधान के किसी संदर्भ के बिना, अपने निजी विचारों, जिसके बारे में वह पहले भी बार-बार बोलते रहे हैं। उम्मीद है वह अपनी सहयोगी बीजेपी के कार्यों और निर्देशों संबंधी लक्ष्यों को प्राप्त कर सकेंगे।’
दरअसल दोनों नेता नागरिकता (संशोधन) कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनपीआर) को लेकर पार्टी अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के एनडीए को समर्थन के कारण उनकी आलोचना करते रहे हैं। प्रशांत किशोर सीएए के मुद्दे पर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के स्टैंड की तारीफ भी कर चुके हैं। 2018 में जेडीयू से जुड़े प्रशांत किशोर का सफर 2 साल भी नहीं चला। अब सवाल यह है कि क्या सिर्फ सीएए और एनपीआर पर नीतीश के रुख के चलते वह बागी हुए या फिर इसके अलावा खटपट की कोई और भी वजह है।
सवाल यह है भी है कि यह खटपट कब शुरू हुई और कब नीतीश कुमार की नजरों में प्रशांत किशोर चढ़ने लगे। 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की बंपर जीत के बाद चर्चा में आए प्रशांत किशोर अलग-अलग पार्टियों के लिए चुनाणी रणनीति बनाते रहे हैं। 2014 में बीजेपी को जीत दिलाने के बाद 2015 में जेडीयू को भी उन्होंने जीत दिलाई। आरजेडी, जेडीयू और कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा और बीजेपी को हार का मुंह देखना पड़ा। नीतीश को बड़ी जीत दिलाने के बाद उनका कद और बढ़ता चला गया। नीतीश ने उन्हें कैबिनेट में जगह दी। इसके बाद 2018 में वह आधिकारिक तौर पर जेडीयू में शामिल हो गए। पार्टी में उन्हें नंबर दो की पोजिशन यानि उपाध्यक्ष बना दिया गया।
नीतीश ने पार्टी के दिग्गज और सीनियर लीडर्स को साइडलाइन कर ऐसा किया गया।नजरअंदाज किए गए आरपीसी सिंह जिन्होंने कभी नीतीश कुमार के राइट हैंड माने जाने वाले लल्लन सिंह को साइडलाइन किया था। प्रशांत किशोर उपाध्यक्ष बनने के बाद जेडीयू नेताओं की मीटिंग बुलाते और उनसे चर्चा करते। वहीं सीएम नीतीश भी अपने आवास पर नेताओं की मीटिंग बुलाते। साइडलाइन हो चुके आरपीसी सिंह और लल्लन सिंह के बीच नजदीकियां बढ़ीं और फिर बीजेपी से लॉबिइंग शुरू हो गई।
2019 में प्रशांत किशोर ने एक ऐसा बयान दिया जो नीतीश कुमार को बिल्कुल भी पसंद नहीं आया। दरअसल किशोर ने कहा था कि आरजेडी से गठबंधन तोड़ लेने के बाद जेडीयू को बीजेपी से हाथ नहीं मिलाना चाहिए था बल्कि चुनाव में कूद जाना चाहिए था। प्रशांत के इस बयान पर नीतीश बहुत खफा हुए। इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रचार की कमान प्रशांत किशोर को न देकर आरसीपी सिंह को दे दे गई। इससे भी नीतीश और प्रशांत के बीच दूरियां बढ़ीं।
चुनावी रणनीतिकार से राजनेता बने प्रशांत कई राज्यों में चुनावी कैंपेन संभाल चुके हैं। बिहार के अलावा उत्तर प्रदेश में कांग्रेस, आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी के लिए चुनावी कैंपेन का काम संभाल चुके हैं। अब उनकी कंपनी आई-पैक पश्चिम बंगाल में में टीएमसी और दिल्ली में आम आदमी पार्टी (आप) के लिए चुनावी रणनीति बना रही है। दिल्ली में चुनावी सरगर्मी के बीच उन्होंने बीजेपी के खिलाफ ट्वीट किए थे जबकि दिल्ली में बीजेपी और जेडीयू मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं।