तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगान ने पाकिस्तान में एक बार फिर कश्मीर का मुद्दा उठाया। एर्दोगान ने पाकिस्तान की संंसद में कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान के रुख का समर्थन किया। भारत ने तुर्की के राष्ट्रपति के इस बयान का सख्त लहजे में जवाब दिया, ‘कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है। तुर्की भारत के मामले में हस्तक्षेप ना करे।’ बात एक बयान और उसपर सख्त जवाब तक सीमित नहीं है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान कश्मीर के मुद्दे का इस्तेमाल ‘मुसलिम भाईचारे’ की अपनी कूटनीति को आगे बढ़ाने में कर रहे हैं और इसकी आर्थिक वजहें ज्यादा हैं। दूसरी ओर, मुसलिम देशों की राजनयिक धड़ेबाजी के कारण अधिकांश देश पाकिस्तान के पाले में नहीं आ रहे हैं। वजह, आर्थिक कारणों से भारत उन देशों के बीच एक बड़ा रणनीतिक भागीदार बनकर उभरा है।
तुर्की, पाकिस्तान और भारत
पाकिस्तान और तुर्की के संबंध भारत के तुलना में अच्छे रहे हैं। दोनों देश सुन्नी प्रभुत्व वाले हैं। जुलाई 2016 में एर्दोगान के खिलाफ तुर्की में सेना का तख्तापलट नाकाम रहा तो पाकिस्तान ने खुलकर उनका साथ दिया। पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के दौर में एर्दोगान और पाकिस्तान के संबंध विकसित हुए। इसके अलावा आर्थिक और रणनीतिक कारण रहे हैं। 2017 से तुर्की ने पाकिस्तान में एक अरब डॉलर का निवेश किया है। वह पाकिस्तान को मेट्रोबस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम मुहैया करा रहा है। पाकिस्तान और तुर्की की करीबी अजरबैजान के साथ है। अजरबैजन की आर्मेनिया के विवादित इलाके नागोर्नो-काराबाख पर दावा रहा है। पाकिस्तान दुनिया का एकमात्र देश है, जिसने आर्मेनिया को संप्रभु राष्ट्र की मान्यता नहीं दी है। इसके बदले में तुर्की ने पाकिस्तान को कश्मीर पर समर्थन दिया है। इसके अलावा कई और मुद्दे हैं, जिनपर तुर्की और पाकिस्तान एक साथ हैं। जहां तक भारत का मामला है, तुर्की के साथ संबंधों में बेहतरी की वकालत दोनों देश करते रहे हैं, लेकिन तुर्की में सत्ता की हर राजनीतिक पहलकदमी भ्रष्ट धार्मिक नेताओं के इशारे पर होती है, जो भारत की धर्मनिरपेक्ष छवि पसंद नहीं करते।
ओआइसी, मध्यपूर्व और यूएई
अनुच्छेद 370 खत्म किए जाने के बाद कश्मीर मसले को पाकिस्तान मुसलिम देशों के संगठन आर्गनाइजेशन आॅफ इस्लामिक को-आॅपरेशन (ओआइसी) में भी ले गया, जिसके दुनिया भर के 57 मुसलिम बहुल देश सदस्य हैं। पाकिस्तान ने बहुत ही उम्मीद के साथ मुसलिम देशों की तरफ टकटकी लगाई, खासकर मध्य-पूर्व के मुसलिम देशों की ओर। पाकिस्तान के लिए सबसे झटके वाला रवैया संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) का रहा। भारत में यूएई के राजदूत ने दिल्ली की लाइन को मान्यता देते हुए कहा कि भारत सरकार का जम्मू-कश्मीर में बदलाव का फैसला उसका आंतरिक मामला है। यूएई के बयान की तरह ही मध्य-पूर्व के बाकी मुसलिम देशों का भी बयान आया। उन्होंने कहा कि भारत-पाक आपस में बात कर मसले को सुलाझाएं और तनाव कम करें।
भारी पड़ती आर्थिक भागीदारी
मध्य-पूर्व के मुसलिम देशों के लिए पाकिस्तान की तुलना में भारत ज्यादा महत्त्वपूर्ण कारोबारी साझेदार है। पाकिस्तान की तुलना में भारत की अर्थव्यवस्था का आकार नौ गुना बड़ा है। भारत इन देशों में कारोबार और निवेश का ज्यादा अवसर दे रहा है। दूसरी ओर, पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था संकट से जूझ रही है। भारत और अरब में कोई टकराव की स्थिति नहीं है। ओआइसी में भारत का अहम मौकों पर समर्थन करने वाले मुसलिम देश मुखर रहे हैं, वो चाहे ईरान हो या इंडोनेशिया। सऊदी और अमीरात हालिया तेल संकट के बाद व्यापार पर ध्यान दे रहे हैं और भारत उनके बड़े व्यापारिक और निवेश सहयोगियों में एक के रूप में उभरा है। अरब देशों के भारत और पाकिस्तान दोनों के ही साथ अच्छे संबंध रहे हैं और उसने भारत को कभी अपना दुश्मन नहीं समझा है। भारत के 70 लाख से ज्यादा कुशल कामगार अरब देशों में काम कर रहे हैं और वहां के विकास में अहम योगदान दे रहे हैं। भारत वहां के प्रमुख देशों के लिए निवेश का प्रमुख केंद्र है।
‘मुसलिम-5’ की पहल
सऊदी अरब और यूएई जैसे मुसलिम देशों और ओआइसी में भारत की पकड़ मजबूत होते देख अब पाकिस्तान ‘मुसलिम-5’ की पहल पर आगे बढ़ रहा है। इसमें मलेशिया आयोजक है और तुर्की एवं पाकिस्तान ने साथ दिया है। कतर की राजधानी दोहा में हो रही इसकी शुरुआती बैठक में पाकिस्तान, तुर्की, कतर, इंडोनेशिया और आयोजक मलेशिया शामिल हुए। मलेशिया के अनुरोध पर 18 से 21 दिसंबर के बीच कुआलालंपुर में एक और मुख्य शिखर वार्ता बुलाई गई है। इसकी कवायद में तर्क दिया जा रहा है कि पांचों देशों को मिलाकर विश्व की कुल जीडीपी में 50 फीसद और प्राकृतिक गैस के उत्पादन में 37 फीसद की हिस्सेदारी है। इन पांच देशों में मुसलिम दुनिया की 37 फीसद मुसलिम आबादी और 18 फीसद भूभाग शामिल हैं।
दुनिया के रणनीतिक समुद्री मार्ग जैसे मलक्का की खाड़ी, ओमान की खाड़ी, होर्मूज स्ट्रेट और बोसफोरस की खाड़ी में ये देश स्थित हैं और इस वजह से सामूहिक विकास और संपन्नता की अपार क्षमता रखते हैं।
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जानकारों की राय