उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) में स्वीडन के शामिल होने को लेकर तुर्किए के राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोगान और नाटो के महासचिव जेंस स्टोल्टेन्बर्ग के बीच रविवार को हुई बातचीत का कोई नतीजा नहीं निकल सका। इस बैठक में आपसी मतभेदों को सुलझाने के लिए दोनों देशों के कई वरिष्ठ अधिकारी भी शामिल हुए।
नाटो के महासचिव जेंस स्टोल्टेन्बर्ग ने इस्तांबुल में कहा, ‘राष्ट्रपति एर्दोगान और मैं आज इस बात पर सहमत हुए कि स्थायी संयुक्त तंत्र को 12 जून से शुरू होने वाले सप्ताह में फिर से मिलना चाहिए। सदस्यता स्वीडन को सुरक्षित बनाएगी, लेकिन साथ ही नाटो और तुर्की को भी मजबूत बनाएगी।’
दरअसल, नाटो 11-12 जुलाई को लिथुआनिया में होने वाली बैठक से पहले स्वीडन को सैन्य गठबंधन में शामिल करना चाहता है, लेकिन तुर्की और हंगरी द्वारा इस कदम को अब तक मंजूरी नहीं दी गई है।
इस बैठक में अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन भी शामिल होंगे। किसी नए सदस्य को गठबंधन में शामिल करने के लिए नाटो के सभी 31 देशों द्वारा उसकी उम्मीदवारी का अनुमोदन किया जाना जरूरी है। तुर्की की सरकार ने स्वीडन पर चरमपंथी संगठनों और कुर्द चरमपंथी समूहों के प्रति काफी उदार रुख रखने का आरोप लगाया है। कुर्द समूह और इससे जुड़े लोगों ने तुर्की में 2016 में तख्तापलट की कोशिश की थी। हंगरी ने मंजूरी नहीं देने के कारणों का उल्लेख नहीं किया है।