शिवसेना और भाजपा ने गत वर्ष अक्टूबर में विधानसभा चुनाव मिलकर लड़ा था, लेकिन मुख्यमंत्री का पद ढाई वर्ष बारी बारी से साझा करने के मुद्दे पर असहमति के चलते दोनों अलग हो गईं। उसके बाद शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस एकसाथ आईं और काफी विचार विमर्श के बाद राज्य में सरकार बनाई। विधानसभा में पटखनी देने के बाद शरद पवार अब राज्यसभा चुनाव में भाजपा से भिड़ने के लिए तैयार हैं। लेकिन गठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर पेंच फंस सकता है।

अप्रैल में महाराष्ट्र से सात राज्यसभा सदस्य सेवानिवृत्त होने वाले हैं। माना जा रहा है कि इसमें चार सीट शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी और दो सीटें भाजपा के खाते में जा सकती है। लेकिन असल जंग सातवी सीट के लिए होनी तय है। उच्च सदन की इस एक अतिरिक्त सीट के लिए महाराष्ट्र विकास अघाडी के तीन सहयोगियों के बीच रस्साकशी हो सकती है।

राज्यसभा के सदस्य को चुनने के लिए 37 विधायकों के समर्थन की आवश्यकता है। भारतीय जनता पार्टी के 105 विधायक हैं और उसे नौ निर्दलीय विधायकों का समर्थन प्राप्त है। सत्तारूढ़ गठबंधन में शिवसेना के 56 विधायक हैं, जबकि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस के पास 54 और 44 विधायक हैं। शेष 20 विधायकों में से कम से कम 15 से राज्य के सत्तारूढ़ गठबंधन का समर्थन करने की उम्मीद है।

अप्रैल में रिटायर होने वाले राज्यसभा सांसदों में एनसीपी प्रमुख शरद पवार, उनकी पार्टी के सहयोगी माजिद मेनन, कांग्रेस के हुसैन दलवई, शिवसेना के राजकुमार धूत, केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले (आरपीआईए), भाजपा के अमर सब्बल और निर्दलीय सांसद संजय ककड़े हैं।

सत्तारूढ़ महाराष्ट्र विकास अघाडी गठबंधन की 169 विधायकों की मदद से इन सात सीटों में से चार पर जीत सुनिश्चित है, जबकि भाजपा भी सहयोगी और निर्दलीय से समर्थन के साथ आसानी से 2 सीटें जीत सकती है। सातवीं सीट के लिए किसी भी पक्ष के पास संख्या नहीं है। बता दें राज्यसभा उम्मीदवार विधायकों द्वारा चुने जाते हैं। विधायक सभी उम्मीदवारों के लिए अपनी वरीयता का आदेश देते हैं। यदि पहली वरीयता के मतों के माध्यम से एक सीट का निर्धारण नहीं किया जाता है, तो दूसरी वरीयता के मतों की गणना की जाती है।

सत्तारूढ़ गठबंधन दूसरी वरीयता के वोटों के माध्यम से सातवीं सीट हासिल करने की स्थिति में है, उम्मीदवार की पसंद को लेकर कांग्रेस और राकांपा के बीच टकराव होने की संभावना है। लिहाजा सातवीं सीट के लिए जोड़तोड़ की गणित के आसार हैं। ऐसे में विधायकों की पसंद काफी अहम होगी और ऐसे में विधायकों के टूटने की आशंका भी है।

एनसीपी कोटे से शरद पवार फिर से राज्यसभा जाना तय है जबकि केन्द्रीय मंत्री रामदास अठावले की भी राज्यसभा में फिर से जाने की उम्मीद है। इसके साथ ही शिवसेना कोटे से कोई नया चेहरा राज्यसभा में भेजा जा सकता है।