आचार्य रजनीश के बहन-बहनोई ने दुनिया भर में फैले ओशो के अनुयायियों को पत्र लिखकर अपील की है कि पुणे के आश्रम की तीन एकड़ जमीन को बचाने के लिए वो आगे आएं। उनका आरोप है कि ट्रस्ट इस जमीन को औने-पौने दाम में बेचने पर तुला है। एक पत्र उन्होंने ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन को भी भेजा है। फाउंडेशन ही पुणे के आश्रम का संचालन करता है।

आचार्य रजनीश की बहन मां प्रेम नूरू और बहनोई स्वामी अमित चैतन्य का कहना है कि उन्होंने महाराष्ट्र सरकार को भी इस मामले से अवगत कराया है। ओशो के संबोधि दिवस से बेहतर दिन इस पत्र को लिखने के लिए नहीं हो सकता है। उनका कहना है कि ट्रस्टी महंगे दामों पर आश्रम की गतिविधियों को चला रहे हैं। हालांकि, अभी भी दुनिया के कोने-कोने से लोग आ रहे हैं, लेकिन इस तरह की कवायद सरासर गलत है।

पत्र में लिखा है कि 150 देशों से ज्यादा देशों में मौजूद ओशो संन्यासियों के लिए यह आश्रम किसी तीर्थ की तरह से है। आर्थिक संकट का हवाला देकर ट्रस्ट इसे बेचने जा रहा है। उन्होंने ओशो के अनुयायियों से अपील की कि अनमोल जगह को बिकने से बचाएं। ट्रस्ट को उसकी मनमानी करने से रोका जाए।

यह आश्रम पुणे के कोरेगांव पार्क स्थित पॉश इलाके में बना है। इसका बाजार भाव बहुत ज्यादा है, लेकिन ट्रस्ट इसे औने-पौने दाम में बेचने पर आमादा है। ट्रस्ट का कहना है कि आश्रम फिलहाल घाटे में है और इसे बेचना बहुत जरूरी है। ट्रस्ट के सदस्यों ने आश्रम के तीन एकड़ में फैले स्वीमिंग पूल और गार्डन वाले हिस्से को बेचने के लिए चैरिटी कमिश्नर के सामने प्रस्ताव रखा है। उनका कहना है कि कोरोना संकट के कारण आश्रम में कोई कामकाज नहीं हो पा रहा है। ध्यान गतिविधियां पूरी तरह से बंद हैं। आश्रम के पास पैसा बुलकुल नहीं आ रहा। इस वजह से जगह को बेचना पड़ रहा है।

ओशो का जन्म 11 दिसंबर 1931 को मध्य प्रदेश के कुचवाड़ा में हुआ था। पहले उनका नाम चंद्रमोहन जैन था। उन्होंने अपनी पढ़ाई जबलपुर से की। फिर वह जबलपुर यूनिवर्सिटी में लेक्चरर बन गए। नौकरी छोड़ने के बाद उन्होंने नवसंन्यास आंदोलन की शुरुआत की। इस दौरान उन्होंने खुद को ओशो कहना शुरू कर दिया। साल 1981 से 1985 के बीच ओशो अमेरिका चले गए।

ओशो ने ओरेगॉन में एक आश्रम की स्थापना की। ये आश्रम 65 हजार एकड़ में फैला था। 1985 वह पुणे के कोरेगांव पार्क इलाके में स्थित अपने आश्रम में लौट आए। उनकी मृत्यु 19 जनवरी, 1990 में हो गई। उनकी मौत के बाद पुणे आश्रम का नियंत्रण ओशो के क़रीबी शिष्यों ने अपने हाथ में ले लिया। आश्रम की संपत्ति करोड़ों रुपये की मानी जाती है। इसको लेकर उनके शिष्यों के बीच विवाद भी है।