केंद्र सरकार और आरबीआर्इ गवर्नर रघुराम राजन के बीच कई मुद्दों पर विश्वास की कमी बढ़ती जा रही थी। केंद्र में मंत्री पीयूष गोयल और निर्मला सीतारमण न केवल राजन पर निशाना साध रहे थे बल्कि भाजपा और आरएसएस के संगठन स्वदेशी जागरण मंच में भी उनके प्रति नफरत का भाव था। राजन को कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने नियुक्त किया था। भाजपा के सांसद सुब्रमण्यम स्वामी और स्वदेशी जागरण मंच के सह संयोजक एस गुरुमूर्ति ने राजन की नीतियों को चुनौती देने की मांग की थी। साथ ही अर्थव्यवस्था की कमजोर गति के लिए भी उन्हें ही जिम्मेदार बताया था।
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सरकार में मौजूद सूत्रों के अनुसार राजन के वित्त मंत्री के साथ तनावपूर्ण रिश्तों का पहला इशारा 2015 के शुरू में मौद्रिक नीति बनाने के एग्रीमेंट के वक्त हुआ था। आरबीआई को मुद्रास्फीति की दर 4 प्रतिशत के नीचे रखने का जिम्मा दिया था। आरबीआई ने गवर्नर के लिए बड़ी भूमिका की मांगते हुए इसकी स्वतंत्रता बरकरार रखने को कहा था। साथ ही मौद्रिक नीति कमिटी में आरबीआई के प्रतिनिधियों को ज्यादा अहमियत की भी मांग शामिल थी। वित्त मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि मौद्रिक नीति कमिटी को लेकर बातचीत चल रही थी इसी दौरान राजन ने श्वेत पत्र के जरिए आरबीआई गवर्नर के लिए केबिनेट रैंक और डिप्टी गवर्नर्स के लिए राज्य मंत्री की रैंक मांगी थी। सरकार ने कभी इन मांगों को नहीं माना।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने दफ्तर के सीनियर अधिकारियों जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और प्रिंसिपल सेक्रेटरी को भी मंत्री का दर्जा देने में विश्वास नहीं रखते। आरबीआई और वित्त मंत्रालय के बीच गवर्नमेंट सिक्युरिटीज मार्केट को रेग्युलेट करने के मुद्दे पर भी तनातनी थी। बाद में इस मुद्दे पर मंत्रालय को पीछे हटना पड़ा था। हालांकि इन मुद्दों के बीच पिछले एक साल से सरकार का राजन के प्रति असंतोष बढ़ रहा था। राजन के ‘अंधों में काना राजा’ वाले बयान पर निर्मला सीतारमण ने कड़ी प्रतिक्रिया दी थी। सीतारमण ने ऊंची ब्याज दरों के लिए राजन की आलोचना भी की थी। स्वदेशी जागरण मंच के गुरुमूर्ति ने भी कहा था कि राजन भारत के बारे में नहीं जानते।
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आरबीआई के एक पूर्व गवर्नर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि गवर्नर के पद का इस तरह से राजनीतिकरण पहले कभी नहीं हुआ। उन्होंने कहा, ”ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। राजन मौद्रिक मामलों से संबंध ना रखने वाले मुद्दों पर भी बोल रहे थे। उन्हें हिटलर, इंटोलरेंस जैसे मामलों में क्यों जाना चाहिए। क्या आपने पहले कभी गवर्नर को इन बातों पर बोलते सुना है। यह उनका काम नहीं है।”
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