Supreme Court Hearing On Triple Talaq: सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक को लेकर एक अहम सुनवाई हुई है, यह सुनवाई खुद सीजेआई संजीव खन्ना की बेंच ने की है। असल में कुछ याचिकाकर्ताओं ने तीन तलाक के कानून को ही पूरी अंसवैधानिक बता दिया है, वे इसे खत्म करवाना चाहते हैं। अब इसी मुद्दे पर बुधवार को सुनवाई हुई और सर्वोच्च अदालत ने सरकार से ही बड़ी मांग कर डाली। केंद्र को कहा गया है कि वो अगली सुनवाई से पहले वो डेटा उपलब्ध करवाए जिससे पता चले कि तीन तलाक कानून के तहत कितनी FIR दर्ज हुई हैं।
CJI संजीव खन्ना ने तीन तलाक कानून पर क्या बोला?
असल में सीजेआई संजीव खन्ना ने कहा कि यहां कोई ऐसा वकील नहीं है जो इस प्रैक्टिस को सही मानता हो, लेकिन सवाल बस इतना है- क्या सिर्फ तीन तलाक बोल देने को आपराधिक श्रेणी में रखा जा सकता है। तर्क तो यह भी दिया गया है कि तीन तलाक देने के बाद भी असल में कोई डिवोर्स नहीं हो रहा है, पति-पत्नी का रिश्ता खत्म नहीं हुआ है। लेकिन केंद्र के कानून ने तो सिर्फ तीन तलाक बोलने को ही दंडनीय अपराध मान लिया है।
सरकार की पूरे मामले में राय क्या है?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सरकार बताए कानून के एक्ट 3 और एक्ट चार केत हत कितनी FIR रेजिस्टर की गई हैं। सेक्शन तीन कहता है कि अगर कोई पति अपनी पति को बोलकर, लिखकर या फिर इलेक्ट्रोनिक माध्यम से तीन तलाक देता है, तो यह पूरी तरह गैर कानूनी है और इसे अवैध माना जाएगा। वहीं सेक्शन चार कहता है कि अगर कोई पति अपनी पत्नी को तीन तलाक देता है, उस स्थिति में उसे तीन साल तक की सजा हो सकती है, जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
मार्च में होगी अगली सुनवाई
इस मामले में केंद्र सरकार की तरफ से दलीलें रख रहे एडवोकेट तुषार मेहता ने कहा कि तीन तलाक के खिलाफ कानून बनाना पूरी तरह केंद्र के अधिकार क्षेत्र में आता है। तर्क तो यह भी दिया गया है कि यहां तो सिर्फ तीन साल की सजा का प्रावधान है, दूसरे कानूनों में तो और कड़ी सजा मिल सकती है। इस मामले में अगली सुनवाई मार्च महीने में होने वाली है।
तीन तलाक कानून है क्या?
बता दें कि मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक जुलाई 2019 में संसद के दोनों सदनों से पारित हुआ था। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने इस विधेयक को एक अगस्त 2019 को मंजूरी दी थी और यह कानून अस्तित्व में आ गया था। इस कानून के अनुसार तीन तलाक एक गैर-जमानती और संज्ञेय अपराध है। साथ ही इस कानून के अनुसार पीड़िता को गुजारा भत्ता का भी अधिकार दिया गया है। वैसे ऐसा नहीं है कि इस कानून से सिर्फ फायदे हुए हैं, महिलाओं ने ही कुछ चुनौतियों का सामना भी किया है, वो जानने के लिए यहां क्लिक करें