राष्ट्रपति चुनाव के लिए संयुक्त विपक्ष की ओर से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा के यात्रा कार्यक्रम में तृणमूल कांग्रेस के शामिल होने की संभावना नहीं है। सिन्हा 18 जुलाई को राष्ट्रपति चुनाव से पहले चंडीगढ़, झारखंड और बिहार के अन्य स्थानों का दौरा करने की योजना बना रहे हैं। हालांकि सिन्हा के बंगाल नहीं जाने के बारे में टीएमसी की ओर से कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं की गई थी, लेकिन पूर्व केंद्रीय मंत्री की कैंपेन टीम के सूत्रों ने इस बात का संकेत दिया कि वह समय के अभाव की वजह से बंगाल की कैंपेनिंग छोड़ सकते हैं।
टीएमसी के एक कार्यकर्ता ने बताया कि, “यशवंत सिन्हा के पास ज्यादा विचार करने का समय नहीं है। उन्हें कई अन्य राज्यों का दौरा करना है और उनके पास समय बहुत कम है। पश्चिम बंगाल के किसी भी मामले में उनके पक्ष में बहुमत का आश्वासन दिया गया है। ममता बनर्जी ने खुद एक-एक विधायक और सांसद को इस बात का निर्देश दिया है कि वो सिन्हा को ही वोट करें। ”
21 जून को टीएमसी से दिया था इस्तीफा
राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी से पहले यशवंत टीएमसी के के वरिष्ठ पदाधिकारी रह चुके हैं। 21 जून को उन्होंने विपक्षी उम्मीदवार के तौर पर राष्ट्रपति चुनाव में हिस्सा लेने के लिए पार्टी से इस्तीफा दिया था। टीएमसी ने ही राष्ट्रपति चुनाव के लिए विपक्ष की ओर से संयुक्त उम्मीदवार उतारने के लिए आम सहमति की जिम्मेदारी उठाई थी। वहीं भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) ने झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू को मैदान में उतारा है। मुर्मू आदिवासी समुदाय से हैं। टीएमसी सिन्हा के अभियान से रणनीतिक दूरी बनाए हुए है।
द्रौपदी मुर्मू तो निर्विरोध हो सकती थी राष्ट्रपतिः ममता बनर्जी
पिछले शुक्रवार को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी अध्यक्ष ममता बनर्जी ने संवाददाताओं से कहा था कि मुर्मू राष्ट्रपति पद के लिए सभी दलों के सर्वसम्मति के उम्मीदवार हो सकती थीं, अगर बीजेपी पहले से ही इस बात की जानकारी दे देती। पश्चिम बंगाल में संथाल आदिवासियों का एक बड़ा समुदाय है जिससे झारखंड के पूर्व राज्यपाल ताल्लुक रखते हैं। राज्य में संथाल पदचिह्न पांच लोकसभा सीटों और 30 से अधिक विधानसभा क्षेत्रों में फैला हुआ है और ये समुदाय बंगाल की जनजातीय आबादी का 80 प्रतिशत से अधिक बनाता है।
जानिए ममता को किस बात का डर
द्रौपदी मुर्मू संथाल आदिवासी समुदाय से हैं पूर्वी भारत में संथाल आदिवासियों की अच्छी-खासी आबादी है। अगर हम सिर्फ बंगाल की बात करें तो राज्य की कुल आदिवासी आबादी में से 80 फीसदी आबादी संथाल समुदाय की है। ऐसे में अगर ममता बनर्जी बंगाल में यशवंत सिन्हा के समर्थन में चुनाव प्रचार करती हैं तो वो सीधे तौर पर अपने वोट बैंक पर असर डालने का काम करेंगी। ममता मुर्मू जो कि खुद संथाल समुदाय से हैं उनके खिलाफ यशवंत सिन्हा को चुनाव प्रचार के लिए बुलाकर अपनी छवि खराब नहीं होने देंगी।
2019 में टीएमसी ने गंवाया था बड़ा वोट बैंक
2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी अपना अब तक का सबसे बेहतरीन परिणाम दिया था। बीजेपी ने इस चुनाव में 18 लोकसभा सीटों पर कब्जा किया था इसमें से सबसे मुख्य जीत उसके लिए जंगलमहल क्षेत्र की रही। वहीं उत्तर बंगाल में बीजेपी ने छह लोकसभा सीटें जीतीं। जनजातीय मतदाताओं में जंगलमहल के चार संसदीय क्षेत्रों में लगभग 25 प्रतिशत मतदाता शामिल हैं इसमें बांकुरा, पुरुलिया, झारग्राम और पश्चिम मेदिनीपुर जिले शामिल हैं और उत्तर बंगाल के आठ निर्वाचन क्षेत्र जैसे दार्जिलिंग, कलिम्पोंग, अलीपुरद्वार, जलपाईगुड़ी, कूचबिहार, उत्तर और दक्षिण दिनाजपुर और मालदा। हालांकि इसके बाद टीएमसी ने इस समुदाय के वोटरों पर जमकर मेहनत की और 2021 के विधानसभा चुनाव में इसे वापस पाने में सफल रही।
सिन्हा अगले कुछ दिनों में इन राज्यों का करेंगे दौरा
सिन्हा ने 29 जून से ही राष्ट्रपति पद की दावेदारी के लिए केरल, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश का दौरा किया है। एक सूत्र ने बताया कि उनका अगले कुछ दिनों में झारखंड, राजस्थान, बिहार, असम, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और चंडीगढ़ का दौरा करने का कार्यक्रम है। चंडीगढ़ का दौरा करने की योजना महत्वपूर्ण है क्योंकि आम आदमी पार्टी (आप), जो पंजाब के साथ-साथ दिल्ली में भी सत्ता में है, राष्ट्रपति चुनाव पर विपक्ष की संयुक्त बैठकों से दूर रही और अभी तक सिन्हा को अपना समर्थन नहीं दिया है।
झारखंड मुक्ति मोर्चा भी मुश्किल में
शुरू में सिन्हा का समर्थन करने के बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा भी अब अपने आप को मुश्किल में देख रहा है क्योंकि झारखंड की अनुसूति जनजाति राज्य की कुल आबादी का 26 फीसदी हिस्सा है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार जिन्होंने एक आम उम्मीदवार को खड़ा करने के लिए विपक्ष को एक साथ लाने में अग्रणी भूमिका निभाई, वो भी सिन्हा के समर्थन में रैली करने की कोशिश कर रहे हैं। गुरुवार को उन्होंने राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और माकपा महासचिव सीताराम येचुरी सहित कई विपक्षी नेताओं से उनके दिल्ली स्थित आवास पर मुलाकात की। इस बैठक के बाद उन्होंने ट्वीट किया, “हम सभी अपने उम्मीदवार श्री यशवंत सिन्हा के साथ देश के सामने आने वाले मुद्दों के लिए लड़ने के लिए मजबूती से खड़े हैं।”
राष्ट्रपति चुनाव वैचारिक लड़ाईः यशवंत सिन्हा
सिन्हा शुरू से ही राष्ट्रपति चुनाव को वैचारिक लड़ाई बताते रहे हैं। गुरुवार को लखनऊ में पत्रकारों से बात करते हुए कहा, इससे पहले जो देश के राष्ट्रपति थे पिछले पांच सालों तक रहे उनके राष्ट्रपति बने रहने तक क्या उनके समुदाय में कोई सुधार आया? क्या किसी सरकारी नीति ने अनुसूचित जातियों के जीवन में सुधार किया है? एक व्यक्ति का उत्थान अपने आप पूरे समुदाय का उत्थान नहीं करता है।”