Three-Language Policy Row: दक्षिण में हिंदी का विरोध किए जाने की खबरें आती रहती हैं लेकिन अब महाराष्ट्र में भी ऐसा देखने को मिल रहा है। महाराष्ट्र की महायुति सरकार ने राज्य में जब थ्री-लैंग्वेज पॉलिसी (Three-Language Policy) को लागू करने की मंजूरी दी तो विपक्षी दलों ने इसे राज्य सरकार के स्कूलों में हिंदी को थोपे जाने वाला क़दम बताया।
ऐसे दलों में शिवसेना (यूबीटी), कांग्रेस, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) और क्षेत्रीय दल शामिल हैं। थ्री-लैंग्वेज पॉलिसी के तहत कक्षा 1 से 5 तक के विद्यार्थियों के लिए हिंदी को अनिवार्य तीसरी भाषा बना दिया गया है।
बीजेपी के लिए यह मामला परेशान करने वाला है लेकिन क्यों, आइए बताते हैं?
यह मुद्दा ऐसे वक्त में तूल पकड़ रहा है जब महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय के चुनाव होने वाले हैं। मुंबई ऐसा शहर है, जहां मराठी बनाम गैर मराठी की बहस चलती रही है और ऐसे में थ्री-लैंग्वेज पॉलिसी को मंजूरी दिए जाने को लेकर तनाव बढ़ सकता है।
बीजेपी इस मामले को लेकर इसलिए बेहद सतर्क है क्योंकि पार्टी को इस बात का डर है कि उसे महाराष्ट्र में मराठी भाषा के विरोधी के रूप में देखा जा सकता है।
लाल किले को मुगल क्या कहते थे, नहीं पता होगा असली नाम
अलग मराठी भाषी राज्य के लिए आंदोलन
1950 के दशक के मध्य में मुंबई प्रोविंस के भीतर एक अलग मराठी भाषी राज्य के लिए आंदोलन शुरू किया गया था। इसे ‘संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन’ ने शुरू किया था। उस वक्त मुंबई प्रोविंस में मौजूदा गुजरात और उत्तर-पश्चिम कर्नाटक के भी कुछ इलाके शामिल थे।
इसके बाद महाराष्ट्र राज्य बना और मुंबई महाराष्ट्र की राजधानी बनी। बाल ठाकरे ने जब शिवसेना का गठन किया तो उन्होंने दक्षिण भारतीयों और गुजरातियों के वर्चस्व के खिलाफ ‘मराठी मानुष’ की रक्षा का नारा दिया। बाद में शिवसेना दक्षिण और उत्तर भारतीयों- विशेष कर उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों के खिलाफ भी मुखर होकर सामने आई।
महाराष्ट्र में अपनी सरकारों के दौरान शिवसेना ने दुकानों में मराठी नेम प्लेट को जरूरी कर दिया और बैंकों और सरकारी दफ्तरों में भी मराठी को अनिवार्य किया।
महाराष्ट्र सरकार में खड़ा हुआ नया बखेड़ा, मंत्री-विधायक नाराज
सुरेश भैया जी जोशी के बयान पर बवाल
याद दिलाना होगा कि इस साल मार्च में आरएसएस के सीनियर नेता सुरेश भैया जी जोशी के एक बयान को लेकर भी विवाद खड़ा हो गया था। सुरेश भैया जी जोशी ने कहा था, “मुंबई की कोई एक भाषा नहीं है” और “मुंबई आने वाले लोगों को मराठी सीखने की जरूरत नहीं है”। तब इसे लेकर महाविकास अघाड़ी के दलों ने कड़ा विरोध दर्ज कराया था।
महाराष्ट्र में थ्री-लैंग्वेज पॉलिसी का जिस तरह विपक्षी दलों ने जोरदार विरोध किया है, उससे ऐसा लगता है कि अगर यह विवाद बढ़ा तो बीजेपी के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है। हालांकि पार्टी इस मामले में संभलकर स्टैंड ले रही है और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा है कि “महाराष्ट्र में हर किसी को मराठी आनी चाहिए” लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि “हिंदी एक सुविधाजनक भाषा बन गई है। इसे सीखना फायदेमंद है।”
यह भी पढ़ें- कब मिलेगा BJP को नया राष्ट्रीय अध्यक्ष? संगठन में बड़े बदलाव करने जा रही पार्टी