रंजना मिश्रा

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने भारत में बाढ़ को सबसे घातक प्राकृतिक आपदाओं में से एक बताया है। बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों से लोगों को विस्थापित होना पड़ता है। इससे उनकी आजीविका भी प्रभावित होती है। प्राधिकरण के अनुसार, भारत में हर वर्ष आने वाली बाढ़ लगभग पचहत्तर लाख हेक्टेयर भूमि क्षेत्र को प्रभावित और करोड़ों रुपए का नुकसान करती है।

बाढ़ की घटनाएं देश की अर्थव्यवस्था को तो चोट पहुंचाती ही हैं, इनसे जानमाल का भी बड़ा नुकसान होता है। मौसम विभाग अधिक बारिश की भविष्यवाणी तो करता है, पर बाढ़ प्रभावित इलाकों में के क्या हालात बनेंगे, जलभराव के कारण आम नागरिकों को किन परेशानियों का सामना करना पड़ेगा, इसका पूर्वानुमान लगाना भी बहुत जरूरी है।

अधिक बारिश, भूकम्प या चक्रवात जैसी आपदाओं को रोकना तो संभव नहीं है, लेकिन इनसे समय रहते राहत और बचाव के उपाय खोजे जा सकते हैं। इसके अलावा कुछ ऐसे मसले हैं, जिन पर ध्यान देने की जरूरत है। मसलन, पर्यावरण से छेड़छाड़, बढ़ती गर्मी और बदलता मौसम। इन कारणों से दुनिया भर के मौसम में अप्रत्याशित बदलाव देखने को मिल रहा है।

पर्यावरणविदों का मानना है कि बाढ़ का प्रमुख कारण पर्यावरण से छेड़छाड़ है। 2013 में उत्तराखंड की बाढ़ के समय भी पहाड़ी क्षेत्रों की भौगोलिक परिस्थितियों को नजरअंदाज कर लगातार हो रहे अनियोजित विकास कार्यों पर सवाल उठाए गए थे। यही स्थिति 2014 में श्रीनगर और 2015 की चेन्नई बाढ़ में भी देखने को मिली थी, जिसमें बिना सोचे-समझे हुए विकास कार्यों ने तबाही मचा दी थी।

दुनिया भर के देश जलवायु परिवर्तन की मार झेल रहे हैं। जलवायु परिवर्तन का प्रभाव न सिर्फ पर्यावरण पर हो रहा है, बल्कि इसका वास्तविक प्रभाव अर्थव्यवस्था पर भी पड़ रहा है। यूरोपीय अकादमियों की विज्ञान सलाहकार परिषद के अनुसार, 1980 के बाद दुनिया भर में बाढ़ की घटनाएं लगभग दोगुनी हो गई हैं।

इसलिए जरूरी है कि राहत और बचाव के इंतजामों के साथ-साथ बदलते मौसम पर भी शोध होना चाहिए। आज हम जलवायु परिवर्तन और उसके कारण दुनिया पर पड़ने वाले प्रभावों और इस बात की भी चर्चा करते हैं कि देश की सरकारों तथा अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के लिए कौन-से उपाय करने चाहिए, लेकिन वास्तव में इसे इतनी गंभीरता से नहीं लिया जाता। जब तक प्रत्येक व्यक्ति जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने की अपनी जिम्मेदारी नहीं समझेगा, तब तक इस समस्या से निजात पाना बहुत मुश्किल होगा।

बढ़ते तापमान के कारण पर्वतों की बर्फ और ग्लेशियर पिघल रहे हैं, जिससे नदियों का जलस्तर बढ़ रहा है। चक्रवात और तूफान जैसी मौसमी घटनाओं के चलते भारत के तटीय क्षेत्रों में भारी बारिश के हालात बनते हैं, जिससे इन क्षेत्रों में बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है। बाढ़ का एक कारण नदी का अतिप्रवाह (ओवरफ्लो) है।

दरअसल, भारी वर्षा होने पर, बर्फ या ग्लेशियर पिघलने पर, चक्रवात या तूफान आने पर, बांध या बैराज से अधिक जल छोड़े जाने या नदियों में अत्यधिक गाद जमा हो जाने के कारण नदियों में अतिप्रवाह जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इसका एक उदाहरण अभी हाल में दिल्ली में देखने को मिला। जब हिमाचल प्रदेश और हरियाणा में भारी बारिश होने के कारण यमुना नदी का जलस्तर बहुत बढ़ गया और दिल्ली स्थित बैराज यमुना नदी के इस अतिप्रवाह को नियंत्रित करने में असमर्थ रहे, जिसके कारण आसपास के कई क्षेत्रों में भयंकर बाढ़ की स्थिति देखने को मिली।

नदियों, नालों के बहाव क्षेत्रों के आसपास अत्यधिक अवैध निर्माण और अतिक्रमण हो जाने से वे क्षेत्र सिकुड़ते जा रहे हैं। इसलिए अत्यधिक बारिश होने पर पानी का दबाव बढ़ जाता और आसपास के क्षेत्रों में जल प्रवाहित होने लगता है, जिससे वहां जलभराव होने लगता है। कई शहरों की जल निकास प्रणालियां भी बेहतर नहीं हैं और अत्यधिक बारिश की स्थिति में उनकी क्षमता जवाब दे जाती है।

कभी-कभी बांध या बैराज से पूर्व सूचना दिए बिना अचानक पानी छोड़ दिया जाता है, जिससे नदी का जलस्तर बहुत अधिक बढ़ जाता है और उसके तट पर बसे शहरों में बाढ़ आ जाती है। कई शहर बहुत पुराने जल निकासी व्यवस्था पर निर्भर हैं, जबकि उन शहरों की आबादी पहले से काफी बढ़ गई है और उनकी अवसंरचना भी बहुत परिवर्तित हो गई है। शहरों में बाढ़ का एक कारण अनियोजित शहरीकरण है।

दरअसल, शहरों में हो रहे अनियोजित निर्माण कार्यों की वजह से प्राकृतिक बहाव प्रणालियों का अतिक्रमण हो जाता है। यानी इन शहरों की जल निकास प्रणालियों में या तो कई कमियां हैं या उनमें से अधिकतर का अतिक्रमण हो चुका है। इसी कारण अतिवृष्टि की अवस्था में जल की पूरी निकासी नहीं हो पाती और पानी शहरों में भरने लगता है।

दरअसल, किसी भी शहर में दो तरह की जल निकास प्रणालियां मौजूद होती हैं, एक सीवेज प्रणाली और दूसरी वर्षा जल प्रणाली। घरों और उद्योग धंधों का कचरा सीवेज प्रणाली से बहकर निकलता है, जबकि वर्षा जल प्रणाली से बारिश का पानी निकलता है। शहरों में आबादी बढ़ने के कारण सीवेज प्रणाली की क्षमता कम हो जाती है और नालों में पानी भरने लगता है, जिससे अधिकतर उस शहर का प्रशासन सीवेज प्रणाली को वर्षा जल प्राणाली से ही जोड़ देता है। इसलिए जब अधिक बारिश होती है, तो आपस में जुड़ी हुई इन दोनों प्रणालियों की क्षमता कम पड़ जाती है और शहरों की सड़कों पर जलभराव होने लगता है।

हर साल आने वाली बाढ़ सैकड़ों-हजारों लोगों की जान ले लेती है और पशुओं का जीवन भी संकट में पड़ जाता है। बाढ़ की स्थिति में लोगों के डूबने, संक्रमण फैलने, घायल होने और बिजली का करंट आदि लगने का खतरा बढ़ जाता है। बाढ़ आने पर शहरों की विद्युत आपूर्ति बाधित हो जाती है, साथ ही इमारतें, घर, परिवहन, संचार तथा अवसंरचना भी बुरी तरह प्रभावित होते हैं। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने भारत में बाढ़ को सबसे घातक प्राकृतिक आपदाओं में से एक बताया है। बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों से लोगों को विस्थापित होना पड़ता है। उन्हें बेहद मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इससे उनकी आजीविका भी प्रभावित होती है।

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अनुसार, भारत में हर वर्ष आने वाली बाढ़ लगभग पचहत्तर लाख हेक्टेयर भूमि क्षेत्र को प्रभावित और करोड़ों रुपए का नुकसान करती है। आंतरिक विस्थापन निगरानी केंद्र के अनुसार 2020 में भारत में बाढ़ की वजह से लगभग 54 लाख लोगों का विस्थापन हुआ था। इस साल की बाढ़ ने भी हजारों लोगों को विस्थापित होने पर मजबूर कर दिया है।

अतिवृष्टि प्रभावित क्षेत्रों में अधिक बारिश होने के कारण उस क्षेत्र में आने वाली आपदा का पूर्वानुमान लगा कर, समय रहते वहां के आम नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना तथा राहत कार्यों का इंतजाम करना बहुत जरूरी है। इसके लिए सरकार को मानसून आने से पहले ही समुचित उपाय और इंतजाम कर लेने चाहिए।

इसके अलावा पर्यावरण से छेड़छाड़ बंद होनी चाहिए तथा किसी क्षेत्र विशेष की भौगोलिक परिस्थितियों को नजरअंदाज कर वहां हो रहे लगातार अनियोजित विकास कार्यों पर भी रोक लगनी चाहिए। ऐसा विकास किस काम का जो मनुष्य जीवन के लिए ही संकट बन जाए। पृथ्वी के बढ़ते तापमान को नियंत्रित करने के लिए, वायुमंडल में कम से कम कार्बन उत्सर्जन हो, इसलिए कोयले तथा जीवाश्म र्इंधन के बजाय हमें हरित ऊर्जा का अधिक से अधिक उपयोग करना चाहिए।

अन्यथा इससे होने वाले नुकसान का सामना भी हमें ही करना होगा। साथ ही शहरी अवसंरचना पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। नदी, नालों के बहाव क्षेत्र में हो रहे अवैध निर्माण और अतिक्रमण को रोका जाना चाहिए। शहरों की जल निकास प्रणाली को दुरुस्त करना बहुत जरूरी है। अवैध खनन की गतिविधियों पर भी रोक लगाई जानी चाहिए, क्योंकि अत्यधिक रेत खनन से नदी के तल उथले हो सकते हैं, जिससे बाढ़ का खतरा बढ़ सकता है।