भानु प्रिया वर्मा
इस साल मानो कोरोना का ट्वेंटी-20 मैच चलता रहा। एक वायरस जिसने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया और लोगों को ‘क्लीन बोल्ड’ कर के हर मैच मानो अपने नाम करता रहा। लेकिन धीरे-धीरे हम सभी को इस मैच को यहीं इसी साल खत्म करने की कोशिश करनी है।
मोबाइल पर चेतावनी भरी आवाज में अक्सर हमें सुनाई देता है- ‘जब तक दवाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं’ और हम हैं कि किसी की कोई बात हमको सुनाई देती नहीं। ऐसा हमें तो अपनी जान से ज्यादा प्यारा है शादियों में जाना, सामाजिक समारोह में जाना, एक जगह इकट्ठा होना, सबसे मिल-जुल कर गले मिलना। लेकिन इसके साथ-साथ कोरोना की वजह से लागू हुई या पैदा हुए हालात में बेलगाम बेरोजगारी की चर्चा में भी कूद जाना।
दरअसल, सबसे आसान काम होता है अपनी नाकामी का ठीकरा दूसरों के सिर फोड़ देना। हम खुद कितने जिम्मेवार हैं, इस तरफ हमारा ध्यान नहीं जाता, क्योंकि दीया तले तो अक्सर अंधेरा ही होता है। मुद्दे की बात यह है कि हमें कोरोना से अपनी सुरक्षा खुद करनी है।
कोरोना के इस तुरंता मैच को जीतना है उन देशों की तरह, जिन्होंने वायरस पर जीत हासिल की है। हालांकि तमाम बंदिशों और पूर्णबंदी से लेकर इसमें ढील तक का अनुभव सबका अलग-अलग है। लेकिन इस कोरोना से जो सबसे अहम बात सामने आई है, वह यह है कि इंसान को किसी भी हाल में हार नहीं माननी चाहिए। इंसान चाहे तो क्या कुछ नहीं कर सकता है। हौसला कायम है तो जिंदगी है। इससे परेशान कोई क्यों होता है?
इंसान इंसान के काम आता है, यह बात इस दौर में कई बार सही साबित हुई, जब पूर्णबंदी के समय लोगों को दूसरों की मदद महसूस हुई और यकीनन उन्हें वह मदद मिली भी। हालांकि सोशल मीडिया ने इस काल में योद्धा की तरह काम किया और लोगों की बात को दुनिया के सामने लाकर रख दिया।
फेसबुक ने भी कहा- ‘आप दिल तो खोलिए, क्या पता आपके लिए दुनिया खुल जाए’। याद रखिए इस ट्वेंटी-20 मैच में कोरोना को हम सभी को हराना है, उससे हारना नहीं है!’इस वायरस से पूरे विश्व के लिए कई चुनौतियां सामने आर्इं। हर वर्ग के लिए जीवन की नई परिभाषा और मायने बदल गए।
कुदरत ने मानो अब अपना बदला लेना शुरू कर दिया उस इंसान से, जिसने प्रकृति का दमन करना शुरू कर दिया था कई वर्षों पहले विकास का लबादा ओढ़ेछ हर तरफ खौफ का मंजर देखने को मिला। हमारे देश में हालात बाकी देशों से बेहतर है।
इसमें प्रशासन के साथ-साथ सहयोग हर उस शख्स का है, जिसने इस वायरस से बचने के लिए या यों कहें कि सामना करने के लिए कमर कस ली है। कहते भी हैं, अगर किसी मुसीबत से आपका सामना हो जाए तो समझदारी उस से भागने में नहीं, बल्कि डट कर उसका सामना करने में होती है।
ऐसा ही कुछ देखने को मिला जब पूरे विश्व में सभी देशों ने युद्ध स्तर पर इस वायरस से लड़ने और वैक्सीन बनाने का काम शुरू कर दिया, कुछ खास नियम बनाए गए।इसके कारण समय-समय पर कई चुनौतियां सामने आर्इं। लोगों ने बेशक रोजगार खो दिया, लेकिन इस मुश्किल दौर में जीने का जज्बा कायम रखा और आत्मनिर्भरता के नए रास्ते ढूंढ़ना शुरू कर दिया।
किसी ने स्वयं सहायता समूह के जरिए मास्क बनाने का काम शुरू किया तो किसी ने आचार-पापड़ जैसे कारोबार शुरू कर दिए। यही नहीं, कई लोगों ने तो खेती में नए प्रयोग करके अपने साथ-साथ परिवार का भरण-पोषण करने का जिम्मा भी उठा लिया। इंसान चाहे तो क्या कुछ नहीं कर सकता।
बीच समंदर से भी रास्ता बनाने का हुनर और हिम्मत इंसान में ही है, बस इंतजार सही वक्त का होता है। हालांकि इसी बीच कई हृदय विदारक दृश्य ऐसे सामने आए, जो जनमानस में अमिट छाप छोड़ गए और सिखा गए एक सबक इंसान को कि स्थायी कुछ भी नहीं। प्रकृति का दमन नहीं, दोहन करना है, आत्मनिर्भर बनना है।
सन् 2020 में जो हालात हम सभी ने देखे हैं, उसकी कल्पना शायद ही किसी ने कभी की होगी। फिर भी अब हालात बदल रहे हैं। हमें यह बात अच्छे से याद रखनी चाहिए कि हमने अब तक कोरोना पर जीत हासिल नहीं की है। इससे मुक्त होना ही जीत होगी।
हालांकि लोगों ने कहना यह शुरू कर दिया है कि साधारण से सर्दी-जुकाम-बुखार को लोग कोरोना का नाम दे रहे हैं, लेकिन इस बारे में वही बेहतर जानते हैं, जिन्होंने इस बीमारी की वजह से किसी अपने को खो दिया। हम सभी दुआ यह कर रहे हैं कि यह साल इस महामारी के साथ आया था, वैसे ही इसे लेकर चला भी जाए और 2021 नव वर्ष खुशहाली लेकर आए। अब तक बहुत सारे देश टीका बनाने का दावा कर चुके हैं।
पूरे विश्व की निगाहें भारत पर टिकी है। उम्मीद है जल्द ही हमारा देश विश्व की उम्मीदों पर खरा उतरेगा और हमें सफलता मिलेगी। समझदार तो सभी हैं, लेकिन जानकार वही है जो मौके की नजाकत को समझे और सब कुछ जान कर भी कोरोना से जंग को मामूली मानने की गलती न करे।

