Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उस विधवा महिला के संपत्ति के अधिकार को बहाल कर दिया जिसे उसके ससुराल वालों ने अपने बेटे की जीवन बीमा पॉलिसी से जुड़े पैसे को हड़पने के बाद ससुराल से निकाल दिया गया था। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि ससुराल वालों पर विधवा के साथ मारपीट करने का भी आरोप है।

पीठ ने इस मामले में अग्रिम ज़मानत की मांग करने वाले बीरेंद्र उरांव से कहा, “आपने इस गरीब विधवा को उसके पति की मृत्यु के बाद घर से निकाल दिया, सिर्फ उसकी संपत्ति हड़पने के लिए। आपने उसके पति के नाम से की गई जीवन बीमा पॉलिसी के पैसे हड़प लिए। अब आप गरीब आदिवासी होने का दावा कर रहे हैं। यह स्वीकार नहीं किया जाएगा।”

जस्टिस कांत ने आगे कहा, “ये लोग सोचते हैं कि आदिवासी होने के नाते वे कुछ भी कर सकते हैं। हम जानते हैं कि इन ग्रामीण इलाकों में क्या होता है।”

सुप्रीम कोर्ट ने चेतावनी के साथ दिया यह आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने विधवा के ससुराल वालों द्वारा प्रस्तुत एक बयान को रिकॉर्ड में लिया, जिसमें उसके नाम पर संपत्ति वापस दिलाने का आश्वासन दिया गया था। अदालत ने कहा, “हम इस याचिका के साथ-साथ याचिकाकर्ता के सह-आरोपियों को दी गई नियमित जमानत को भी पूरी तरह से खारिज कर देते और राज्य पुलिस को उन्हें गिरफ्तार करने का निर्देश देते, लेकिन बयान के एक पैराग्राफ में दिए गए आश्वासन के कारण ऐसा नहीं हो सका। याचिकाकर्ता और उसके सह-आरोपियों को एक सप्ताह के भीतर आवश्यक कदम उठाने का निर्देश दिया जाता है; ऐसा न करने पर गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।”

लातेहार पुलिस को दिया यह निर्देश

पीठ ने आरोपियों के खिलाफ 5,000-5,000 रुपये के जमानती वारंट जारी करने का निर्देश दिया और झारखंड के लातेहार ज़िले के पुलिस अधीक्षक को अगली सुनवाई से पहले वारंट तामील करके अनुपालन रिपोर्ट पेश करने को कहा।

पीठ ने मामले की सुनवाई की अगली तारीख 15 सितंबर तय करते हुए याचिकाकर्ता बीरेंद्र उरांव की जमानत अवधि केवल एक हफ्ते के लिए बढ़ाने का निर्देश दिया। शीर्ष अदालत ने एक सितंबर को बीरेंद्र के वकील को चार दिन का समय दिया था ताकि वे उससे और सह-अभियुक्तों से यह निर्देश ले सकें कि क्या वे मृतक सकेन्द्र के हिस्से की सीमा तक पूर्ण स्वामित्व अधिकार शिकायतकर्ता विधवा को बहाल करने के लिए तैयार और इच्छुक हैं या नहीं।

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