Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि बच्चों की शिक्षा के मामले में कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। शीर्ष अदालत ने कहा कि यह बात रोहिंग्या प्रवासियों के बच्चों पर भी लागू होती है, जिन्हें स्कूलों में प्रवेश पाने में कठिनाई हो रही है।

कोर्ट गैर सरकारी संगठन रोहिंग्या मानवाधिकार पहल द्वारा दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें यह सुनिश्चित करने के निर्देश देने की मांग की गई है कि रोहिंग्या शरणार्थियों को स्कूल में प्रवेश और सरकारी लाभ आधार कार्ड पर किसी भी तरह के जोर दिए बिना और उनकी नागरिकता की स्थिति की परवाह किए बिना दिए जाएं।

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, इस मामले पर बुधवार को जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एनके सिंह की खंडपीठ ने सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि शिक्षा के मामले में कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा।

याचिकाकर्ता संगठन का प्रतिनिधित्व करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोंसाल्वेस ने कहा कि रोहिंग्या शरणार्थी निराशाजनक स्थिति का सामना कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि ये वे लोग हैं जिन्हें प्रवेश नहीं मिल पा रहा है। यह एक निराशाजनक स्थिति है।

इस बीच, कोर्ट ने उनसे इस बात का प्रमाण मांगा कि वे वर्तमान में वे कहां रहते हैं, ताकि यह देखा जा सके कि उन्हें क्या राहत दी जा सकती है। न्यायालय ने यह भी कहा कि नाबालिग बच्चों के बारे में व्यक्तिगत विवरण का खुलासा न करना ही बेहतर है।

कोर्ट ने कहा कि हमें छात्रों के बारे में मत बताइए। हमें उनके माता-पिता के बारे में बताइए। वे कहां रह रहे हैं… हमें घर का नंबर, परिवारों की सूची, वे कहां हैं, इसका कुछ सबूत बताइए… हमें किसी भी बच्चे को उजागर नहीं करने दीजिए। हमें पंजीकरण संख्या आदि दिखाइए, जिससे हम कुछ कर सकें। हम देखेंगे कि क्या किया जा सकता है।

गोंजाल्विस ने जवाब दिया कि रोहिंग्याओं के पास संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (यूएनएचसीआर) द्वारा जारी कार्ड हैं जो उनकी शरणार्थी स्थिति को मान्यता देते हैं। कोर्ट ने संकेत दिया कि शरणार्थियों के निवास की पुष्टि करने वाले विवरण प्रस्तुत होने के बाद वह इस बात पर विचार करेगा कि किस प्रकार राहत प्रदान की जा सकती है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि शिक्षा के मामले में कोई भेदभाव नहीं होगा। हमें यह जानना होगा कि वे कहां हैं और फिर उसकी व्यवस्था करनी होगी। हमें इस बात से संतुष्ट होना होगा कि वे कहां रह रहे हैं और कैसे रह रहे हैं। इस पूरे मामले की अगली सुनवाई 28 फरवरी को होगी।

हालांकि, दिल्ली हाई कोर्ट ने इससे पहले इसी प्रकार की एक याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया था, जिसमें म्यांमार से भारत आए रोहिंग्या शरणार्थियों के बच्चों को स्कूल में प्रवेश देने के लिए दिल्ली सरकार को निर्देश देने की मांग की गई थी। इसके बजाय हाई कोर्ट ने सुझाव दिया था कि इस मुद्दे पर केंद्रीय गृह मंत्रालय से संपर्क किया जा सकता है।

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पिछले अक्टूबर में मामले की सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने मौखिक रूप से कहा था कि अदालत को इसमें माध्यम नहीं बनना चाहिए। इस मामले में एक अपील ( सोशल ज्यूरिस्ट, सिविल राइट्स ग्रुप बनाम दिल्ली नगर निगम एवं अन्य ) वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है।

जब यह अपील 27 जनवरी को जस्टिस कांत और जस्टिस सिंह के समक्ष आई , तो कोर्ट ने याचिकाकर्ता के उस अनुरोध को स्वीकार कर लिया था, जिसमें उसने अस्थायी शिविरों के बजाय नियमित आवासीय क्षेत्रों में रहने वाले रोहिंग्या परिवारों का विवरण दाखिल करने के लिए समय मांगा था। इस याचिका पर 17 फरवरी को सुनवाई होनी है।

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