ऑसफोर्ड एस्ट्राजेनेका टीका के परीक्षण के बाद सकारात्मक नतीजों की खबरें आने लगी हैं। कोरोना विषाणु के खिलाफ जंग में टीका कार्यक्रम के लिए आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय ने एक महिला वैज्ञानिक के नेतृत्व में शोध किए, जिन्हें अब कामयाब माना जा रहा है। उनका नाम है सारा गिल्बर्ट। उनकी बदौलत अब इंग्लैंड और दुनिया को कोविड-19 टीका मिलने की पूरी उम्मीद मिली है। एक समय विज्ञान का क्षेत्र छोड़ने का मन बना चुकीं सारा के योगदान के लिए दुनिया भर में तारीफ मिल रही है।
आॅक्सफोर्ड टीके के 90 फीसद तक सफल होने की खबरें आ रही हैं। इस परीक्षण में शामिल अहम वैज्ञानिक सारा ने एंगिला विश्वविद्यालय से जीव विज्ञान की पढ़ाई की। जब वे पढ़ाई कर रही थीं, तब उनके मन में कई क्षेत्रों का अनुभव और विचारों को हासिल करने की इच्छा थी, लेकिन जब उन्होंने डॉक्टरेट की पढ़ाई की, तो उन्हें बहुत समय एक ही विषय पर फोकस करना पड़ा। यह उनके मन के खिलाफ बात थी। उस वक्त सारा ने विज्ञान के क्षेत्र को अलविदा कहने तक का मन बना लिया था। बाद में उन्होंने खुद को एक और मौका देने का निर्णय लिया और वह फैसला दुनिया के लिए सार्थक रहा।
कोरोना टीके से पहले भी सारा गिल्बर्ट का नाम मलेरिया वैक्सीन के साथ जुड़ चुका था। 1962 में इंग्लैंड में जन्मीं सारा को उनके साथी पक्के इरादों वाला शख्स कहते रहे हैं। मन डगमगाने के बावजूद सारा ने डॉक्टरेट की डिग्री पाने में सफलता हासिल की थी और उसके बाद शराब उद्योग से जुड़े शोध केंद्र में नौकरी की। वहां यीस्ट यानी खमीर और इसके मानव स्वास्थ्य पर असर के बारे में उन्होंने समझा।
सारा की दिलचस्पी शोध में तो थी, लेकिन वो कभी वैक्सीन विशेषज्ञ नहीं बनना चाहती थीं। 1990 के दशक में जब उन्हें आॅक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में मलेरिया विषय से जुड़ी नौकरी मिली, तब मलेरिया के टीके की तरफ उनका सफर शुरू हुआ। जूते के व्यापार से जुड़े पिता और अंग्रेजी की शिक्षक मां की बेटी सारा विज्ञान के क्षेत्र में आर्इं तो जिम्मेदारियों और काम से वक्त निकालना उनके लिए भी चुनौतीपूर्ण ही रहा।
इसके बाद, तीन जुड़वां बच्चों की मां बनने की घटना ने सारा के जीवन में और कठिन हालात पैदा किए। आॅक्सफोर्ड में नौकरी पाने के बाद सारा ने पेशेवर जीवन में पीछे मुड़कर नहीं देखा। जेनर इंस्टीट्यूट में प्रोफेसर बनने से लेकर अपनी खुद की शोध टीम बनाकर पूरी दुनिया के लिए फ्लू टीका बनाने की जिम्मेदारी निभाई। फिर 2014 में इबोला के टीके का परीक्षण उनके नेतृत्व में ही हुआ।
इसके बाद मध्य पूर्व में जो विषाणु मर्स फैला था, उसका टीका बनाने के लिए भी सारा ने अरब देशों की यात्रा की थी। इतने टीके विकसित करने का अनुभव रखने वाली सारा कोरोना विषाणु के फैलते ही टीका बनाने की योजना में जुट गई थीं। इस महामारी के फैलाव और घातक असर को देखते हुए उन्होंने अपनी टीम के साथ तेज गति से काम किया। सारा के मुताबिक उनकी दौड़ विषाणु के खिलाफ थी। सारा साफ कहती हैं कि उनका पेशा विज्ञान का है, दौलत बनाने का नहीं। सारा के दोस्त, साथी और परिचित उन्हें ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ, शांत, मजबूत और पक्के इरादों वाली पेशवर महिला के रूप में जानते हैं।