मुसलमानों को पाकिस्तान जाने की सलाह देने वाले कुछ दक्षिणपंथी नेताओं को आड़े हाथ लेते हुए पीडीपी सांसद महबूबा मुफ्ती ने कहा कि मुसलमानों को बार-बार पाकिस्तान जाने का ताना नहीं दिया जाना चाहिए क्योंकि यह देश जितना ‘उनका’ है उतना ही मुसलमानों का भी है।

संविधान को अंगीकार किए जाने और बाबा साहब भीमराव आंबेडकर की 125वीं जयंती पर लोकसभा में जारी चर्चा में हिस्सा लेते हुए पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की सदस्य महबूबा मुफ्ती ने लोकसभा में कहा, ‘बार-बार पाकिस्तान का ताना न दें। ये मिट्टी जितनी उनकी है, उतनी ही हमारी भी है’।

देश में कथित रूप से बढ़ती असहिष्णुता की चर्चाओं पर उन्होंने सीरिया और खाड़ी देशों में जारी अशांतिपूर्ण माहौल की पृष्ठभूमि में कहा, ‘जितनी सहिष्णुता हिंदुस्तान में है, उतनी किसी में नहीं है’। महबूबा ने कहा कि बाबा साहब इतना खूबसूरत और समावेशी संविधान इसलिए तैयार कर पाए क्योंकि उनके सामने आगामी चुनाव नहीं बल्कि भावी पीढ़ियों का विकास था।

उन्होंने कहा, ‘अमेरिका, यूरोप, ब्रिटेन, खाड़ी, सीरिया और पाकिस्तान किसी भी देश को देख लें। हिंदुस्तान सर्वाधिक सहिष्णु देश है’। उन्होंने आतंकवादी संगठन आइएस का नाम लिए बिना कहा कि इस्लाम के नाम पर वे गलत काम कर रहे हैं। उन्होंने हालांकि दादरी जैसी घटनाओं की निंदा की। पीडीपी नेता ने इसी संदर्भ में कहा कि हमारे मुल्क का इस्लाम असली इस्लाम है। यहां का मुसलिम अमन पसंद इसलिए है क्योंकि हिंदू समाज सहिष्णु है।

उन्होंने पिछले दिनों देश में कथित रूप से असहिष्णुता की बढ़ती घटनाओं के संबंध में लेखकों के पुरस्कार लौटाए जाने और दादरी जैसी घटनाओं के बाद कुछ दक्षिणपंथी नेताओं के मुसलमानों को पाकिस्तान जाने की सलाह देने वाले नेताओं को भी आड़े हाथ लिया। महबूबा ने कहा, ‘आप कौन होते हैं ये कहने वाले कि पाकिस्तान जाओ? ये हम सब का देश है। बार-बार पाकिस्तान का ताना न दें। ये मिट्टी जितनी उनकी है, उतनी ही हमारी भी है’।

दूसरी ओर संविधान पर किसी तरह का खतरा मंडराने की विपक्ष की आशंकाओं को पूरी तरह खारिज करते हुए सरकार ने शुक्रवार को कहा कि ‘सेकुलरिजम’ शब्द संविधान की प्रस्तावना में में बना रहेगा। इस शब्द को लेकर गृह मंत्री राजनाथ सिंह के गुरुवार के बयान को लेकर पैदा घमासान पर केंद्र ने बचाव की मुद्रा में आते हुए स्पष्टीकरण दिया कि यह शब्द ‘संविधान में था, है और रहेगा’।

नायडू ने विपक्ष के आरोपों को पूरी तरह से बेबुनियाद बताते हुए कहा, ‘आज संविधान को कोई खतरा नहीं है, कोई गिरफ्तारियां (राजनीतिक नेताओं की) नहीं हो रही हैं, जजों के अधिकारों का अतिक्रमण नहीं किया जा रहा है। हम सभी को संविधान को मजबूत करने के लिए मिलकर काम करना होगा’। उन्होंने कहा, ‘सेक्युलरिजम हमारे दिल में है और यह हमारे दिल में रहेगा’।
इसके साथ ही उन्होंने ‘छद्म धर्मनिरपेक्षों’ पर हमला बोलते हुए कहा कि जो जाति और सांप्रदायिक राजनीति करते हैं वे दूसरों को धर्मनिरपेक्षता विरोधी कहते हैं’। आरक्षण पर छिड़ी बहस पर उन्होंने कहा कि उनकी सरकार जब तक जरूरत है तब तक आरक्षण देगी। उन्होंने कहा, ‘यह पार्टी का पक्ष है’।

हालांकि उन्होंने स्वीकार किया कि संसद और विधानसभाओं में महिलाओं को 33 फीसद आरक्षण इतना आसान नहीं है। यही कारण है कि सत्ता पक्ष भी हिचक रहा है और विपक्ष भी हिचक रहा है। उन्होंने कहा कि इस पर वार्ता की जरूरत है। उन्होंने कहा कि पुरुष सदस्यों को अपनी सीट जाने का डर है लेकिन उन्हें दिल बड़ा करते हुए इस दिशा में आगे बढ़ना होगा। नायडू ने कहा कि हमें इस मुद्दे पर किसी नतीजे पर पहुंचना होगा और हमारी सरकार यह काम कर रही है। समाज में कथित रूप से बढ़ते कट्टरपंथ के संबंध में नायडू ने कहा कि कुछ ऐसे तत्त्व किसी भी पार्टी में हो सकते हैं जिन्हें अलग-थलग किए जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि तुष्टीकरण के बजाए सभी को न्याय दिलाने की भावना के साथ काम करना चाहिए।

पिछले दिनों पाकिस्तान में वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री मणिशंकर अय्यर के बयान का मुद्दा उठाते हुए नायडू ने कहा कि कश्मीर मुद्दा कांग्रेस की वजह से नहीं सुलझ पाया और पाकिस्तान से जारी आतंकवाद न रुकने के पीछे भी कांग्रेस की नीतियां जिम्मेदार हैं। उनके इस आरोप का कड़ा प्रतिवाद करते हुए सदन में मौजूद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सवालिया अंदाज में कहा, ‘क्या आपने रोक दिया उन्हें’?

चुनाव में धन बल के प्रयोग, दलबदल और जातीय राजनीतिक कार्ड खेले जाने को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए नायडू ने चुनाव प्रक्रिया में सुधार की जरूरत को रेखांकित किया। उन्होंने पूर्वोत्तर के एक राज्य विशेष का नाम लिए बिना कहा, ‘पहले रिटेल दल बदल पर रोक लगाई गई थी लेकिन अब थोक में दलबदल हो रहा है। पूर्वोत्तर के एक राज्य में पिछले दिनों विपक्षी दल के सभी सदस्य सत्तारूढ़ दल में शामिल हो गए’।

उन्होंने इसे हास्यास्पद के साथ ही दुर्भाग्यपूर्ण और निर्वाचन प्रक्रिया की दृष्टि से समाज के लिए कैंसर बताया। नायडू ने कहा, ‘दुर्भाग्य है कि जमीन, पानी, भाषा, मजहब लोगों को इतना आंदोलित कर देते हैं कि वे भावनाओं में बह जाते हैं और फिर बात पांच साल पर चली जाती है तब वे कुछ कर नहीं सकते’। उन्होंने कहा कि राष्ट्रहित और लोकतंत्र के हित में यह चलन ठीक नहीं है।