गुर कृपाल सिंह अश्क
पंजाब में फरीदकोट की धरती पर टिल्ला बाबा फरीद जी एक ऐसा पवित्र स्थान है, जहां से उठने वाली खुशबू दुनिया भर में आपसी भाईचारे और धार्मिक सहनशीलता का निरंतर प्रसार करती है। यह ऐसा स्थल है जिस के प्रांगण में एक तरफ मुसिलम सूफी फकीर बाबा फरीद की याद में हमेशा पांच चिराग रौशन रहते हैं तो दूसरी तरफ बने गुरुद्वारा साहिब में से गुरु ग्रंथ साहिब का प्रकाश दुनिया को सांझीवालता का संदेश देता है। इसी स्थल पर चल रहा लंगर बाबा फरीद की बेटी बीबी फातिमा के नाम को समर्पित है।
बारहवीं सदी में सतलुज से थोड़ी दूरी पर स्थित कस्बे मोक्ल्हार के लोगों को दरिया पार से आने वाले लुटेरे अक्सर लूट कर ले जाते थे। इस कारण इस कस्बे में रहने वाले लोग भय महसूस करते थे। दिल्ली से हांसी, हिसार, सरसा, कोटकपूरा, और कसूर हो कर लाहौर जाने वाले मार्ग पर स्थित इस कस्बे का कोई विकास नहीं हो रहा था।
यहां के हुक्मरान भाटी राजपूत मोक्ल्सी ने कसूर और कोट ईसे खां से कारीगरों को ला कर बसाने के प्रयास किए पर कोई सफलता नही मिली। लुटेरों से बचाने के लिए राजा मोक्ल्सी ने मोकल्हार में स्थित गढ़ी (किला) की बाहरी दीवार को ऊंचा करवाना शुरू किया। इसी समय तत्कालीन प्रसिद्ध सूफी फकीर बाबा फरीद दिल्ली से हांसी होते हुए पाकपटन को जा रहे थे। वह नगर से कुछ फासले पर रुके हुए थे।
अपने खाने की व्यवस्था के लिए सामान खरीदने वह कुछ फासले पर स्थित नगर में आए तो राजा के सैनिकों ने उन्हें पकड़ कर ‘बेगार’ (बिना मजदूरी दिए कम लेना) पर लगा दिया। जब लोगों ने देखा कि बाबा फरीद जी के सर पर उठाई गई ‘गारे’ (र्इंटों की चिनाई के लिए गीली मिट्टी) की टोकरी उन के सर से सवा हाथ ऊपर हवा में तैर रही है तो वह उन के पैरों पर गिर गए, बात राजा तक भी पहुंची तो वह भी उन के कदमों पर आ गिरा।
अपने किए पर माफी मांगी। इस नगर को हंसता बसता हुआ देखने के लिए राजा मोक्ल्सी ने बाबा जी के आशीर्वाद से इस का नाम फरीदकोट रखा। बताया जाता है कि बाबा फरीद इस नगर में 40 दिन रहे। जिस जगह पर वह रुके थे उस स्थान को लोगों ने टीले का नाम दिया। जिस दरख्त के नीचे बाबा जी बैठे थे उस जगह पर आज पांच चिराग रौशन हैं और वह बन की लकड़ी जिस से बाबा फरीद जी ने गारे से सने अपने हाथ पोछे थे, वहीं एक शीशे के केस में रखी हुई है ताकि उसे उसी स्वरूप में गारे से सना रखा जाए।
बिना किसी धर्म के भेदभाव से बड़ी संख्या में लोग चिरागों में तेल डालते हैं, उस बन की लकड़ी के दर्शन करते हैं और गुरु ग्रन्थ साहिब के आगे माथा टेकते हैं। पंजाबी विश्वविद्यालय पटियाला में गुरु ग्रंथ साहिब स्टडीज विभाग के प्रमुख सर्वजिंदर सिंह के मुताबिक, गुरु ग्रंथ साहिब में चिश्ती संप्रदाय के बानी सूफी फकीर बाबा फरीद के चार शब्द और 112 श्लोग दो रागों में दर्ज हैं।
बाबा फरीद की बाणी में इतनी मिठास है कि लोग उन्हें बाबा फरीद शकरगंज के नाम से भी याद करते हैं। टीला बाबा फरीद रिलिजिअस एंड चैरिटेबल सोसाइटी के एक सेवादार महीप इंदर सिंह बताते हैं, फरीदकोट पर बाबा जी का आशीर्वाद है।
इस पवित्र स्थान पर हर धर्म के लोग शीश निवाने आते हैं। वर्ष 1986 से यहां हर 23 सितंबर को एक शोभा यात्रा गुरुद्वारा गोदड़ी साहिब जाती है वैसे मेला 19 सितंबर से शुरू होता है। बाबा फरीद के नाम को समर्पित यह संस्था एक स्कूल व लॉ कालेज भी चला रही है। हम चाहते हैं हम लोग धर्म और कर्म से सेवा करते रहें।