जयंतीलाल भंडारी

अब भी भारत दुनिया के उन प्रमुख दस देशों में शामिल है, जहां बीते बीस वर्षों में लोगों की आय में असमानता बढ़ी है। इसलिए गरीबों को मुफ्त अनाज देने के साथ उनके जीवन की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए भी प्रयास करने होंगे। देश की तेजी से बढ़ती आबादी के तहत गरीब वर्ग की खाद्य सुरक्षा के लिए अधिक खाद्यान्न उत्पादन के रणनीतिक प्रयत्न भी जरूरी होंगे। इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि जनकल्याण के नाम पर मुफ्त रेवड़ियां बांटने के अभियान आगे न बढ़ें।

हाल ही में नीति आयोग ने वैश्विक मान्यता के मापदंडों पर आधारित बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआइ) पर दस्तावेज जारी किया है। इसमें कहा गया है कि पिछले नौ वर्षों में भारत में करीब पच्चीस करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी के दायरे से बाहर आ गए हैं। मगर अब भी भारत में करीब पंद्रह करोड़ लोग इसका सामना कर रहे हैं।

भारत में बड़ी संख्या में गरीबी के दायरे में रहने वाले लोगों को सरकार के लक्ष्य के मुताबिक वर्ष 2030 तक बहुआयामी गरीबी से बाहर लाने के लिए विभिन्न योजनाओं के कारगर कार्यान्वयन की दिशा में ठोस प्रयास करने की जरूरत है। इसके साथ-साथ बहुआयामी गरीबी का सामान कर रहे परिवारों के युवाओं को कौशल प्रशिक्षण और डिजिटल कौशल से युक्त करके रोजगार से सशक्तीकरण का अभियान चलाना होगा।

गौरतलब है कि नीति आयोग का एमपीआइ सूचकांक निकालने के लिए बिजली, स्वास्थ्य, शिक्षा और वित्तीय समावेशन जैसी सुविधाओं पर आधारित बारह विभिन्न मानकों- पोषक तत्त्व, बच्चों की मृत्यु दर, माताओं के स्वास्थ्य, बच्चों के स्कूल जाने की उम्र, स्कूल में उनकी उपस्थिति, रसोई ईंधन, स्वच्छता, पेयजल, बिजली, आवास, संपदा और बैंक खातों- को शामिल किया गया है। इस दस्तावेज के मुताबिक सरकार की विभिन्न लोक कल्याणकारी योजनाओं की बहुआयामी गरीबी कम करने में अहम भूमिका रही है।

वित्तवर्ष 2013-14 में देश की 29.17 फीसद आबादी एमपीआइ के हिसाब से गरीब थी। अब वित्तवर्ष 2022-23 में सिर्फ 11.28 फीसद लोग एमपीआइ के हिसाब से गरीब रह गए हैं। इन नौ वर्षों में 17.89 फीसद लोग यानी करीब 24.82 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी के दायरे से बाहर आए हैं। विश्व बैंक ने 180 रुपए प्रतिदिन से कम कमाने वालों को गरीबी रेखा से नीचे माना है।

महत्त्वपूर्ण है कि नीति आयोग की रपट के मुताबिक उत्तर प्रदेश में पिछले नौ वर्षों में 5.94 करोड़, बिहार में 3.77 करोड़, मध्यप्रदेश में 2.30 करोड़ और राजस्थान में 1.87 करोड़ लोग एमपीआइ मानकों के हिसाब से गरीबी से मुक्त हुए हैं। इस हिसाब से अब लगभग पंद्रह करोड़ लोग एमपीआइ मानक से जुड़ी सुविधाओं से वंचित रह गए हैं।

ऐसे लोगों की संख्या बिहार में सबसे ज्यादा 26.59 फीसद, झारखंड में 23.34, उत्तर प्रदेश में 17.40, छत्तीसगढ़ में 11.71, राजस्थान में 10.77, तेलंगाना में 3.76, हिमाचल में 1.88, तमिलनाडु में 1.48 और केरल में 0.48 फीसद है। इन सबके सामने अब भी बहुआयामी गरीबी से बाहर आने की चुनौती बनी हुई है। सरकार ने 2030 तक देश के ऐसे सभी नागरिकों को बहुआयामी गरीबी से बाहर करने का लक्ष्य रखा है।

नीति आयोग के दस्तावेज के मुताबिक सरकार की तरफ से चलाए जाने वाले पोषण अभियान और रक्ताल्पता मुक्त भारत अभियान से स्वास्थ्य सुविधाएं बढ़ाने में मदद मिली है। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत अस्सी करोड़ से अधिक लोगों को मुफ्त अनाज, स्वच्छ र्इंधन के लिए उज्ज्वला योजना, सभी घरों में बिजली के लिए सौभाग्य योजना, पेयजल सुविधा के लिए जल जीवन मिशन और जनधन खाते की सुविधा आदि से लोगों को गरीबी से ऊपर लाने में खासी मदद मिली है।

खासकर, गरीबों के सशक्तीकरण में करीब 51 करोड़ से अधिक जनधन खातों, करीब 134 करोड़ आधार कार्डों तथा करीब 118 करोड़ से अधिक मोबाइल उपभोक्ताओं की शक्ति वाले ‘जैम’ से सुगठित बेमिसाल डिजिटल ढांचे की असाधारण भूमिका रही है। इस परिप्रेक्ष्य में विगत 6 नवंबर को संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) द्वारा प्रकाशित रपट भी उल्लेखनीय है। इसमें कहा गया है कि भारत में गरीबी 2015-2016 के मुकाबले 2019-2021 के दौरान 25 फीसद से घटकर 15 फीसद पर आ गई है।

‘एशिया पैसिफिक ह्यूमन डेवलेपमेंट रपट’ 2024 के अनुसार भारत में प्रतिव्यक्ति आय वर्ष 2000 में जहां करीब 37 हजार रुपए थी, वहीं वर्ष 2022 में बढ़कर करीब दो लाख रुपए हो गई है। यह भी कोई छोटी बात नहीं है कि विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष सहित दुनिया के विभिन्न सामाजिक सुरक्षा के वैश्विक संगठनों द्वारा भारत में बहुआयामी गरीबी घटाने में भारत में लागू खाद्य सुरक्षा की जोरदार सराहना की गई है।

आइएमएफ द्वारा प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि सरकार के प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाइ) के तहत मुफ्त खाद्यान्न कार्यक्रम ने कोविड-19 में लगाई गई पूर्णबंदी के प्रभावों की गरीबों पर मार को कम करने में अहम भूमिका निभाई है और इससे गरीबी में अत्यधिक कमी आई है।

हालांकि देश में एक ओर गरीबों के कल्याण के लिए लागू की गई विभिन्न सरकारी योजनाएं, सामुदायिक रसोई, एक राष्ट्र एक राशन कार्ड, उज्ज्वला योजना, आयुष्मान भारत, पोषण अभियान, समग्र शिक्षा आदि से प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से गरीबी के स्तर में कमी लाने और स्वास्थ्य तथा भुखमरी की चुनौती को कम करने में सहायता मिली है।

मगर अब भी बहुआयामी गरीबी का सामना कर रहे करीब पंद्रह करोड़ से अधिक लोगों को गरीबी से बाहर लाने के लिए विभिन्न योजनाओं के कार्यान्वयन की दिशा में कारगर प्रयासों की जरूरत बनी हुई है। अब भी भारत दुनिया के उन प्रमुख दस देशों में शामिल है, जहां बीते बीस वर्षों में लोगों की आय में असमानता बढ़ी है।

इसलिए गरीबों को मुफ्त अनाज देने के साथ उनके जीवन की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए भी प्रयास करने होंगे। देश की तेजी से बढ़ती आबादी के तहत गरीब वर्ग की खाद्य सुरक्षा के लिए अधिक खाद्यान्न उत्पादन के रणनीतिक प्रयत्न भी जरूरी होंगे। इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि जनकल्याण के नाम पर मुफ्त रेवड़ियां बांटने के अभियान आगे न बढ़ें।

बहुआयामी गरीबी को कम करने के लिए महंगाई नियंत्रण पर लगातार ध्यान देना होगा। देश में थोक महंगाई दिसंबर 2023 में बढ़कर 0.73 फीसद पर पहुंच गई। यह महंगाई के नौ महीने का उच्चतम स्तर है। मार्च में महंगाई 1.34 फीसद थी। खाने-पीने के सामान की कीमतें बढ़ने से महंगाई बढ़ी है। इसी तरह खुदरा महंगाई दिसंबर में बढ़कर 5.69 फीसद पर पहुंच गई। यह महंगाई का चार महीने का उच्चतम स्तर है। सिंतबर में खुदरा महंगाई 5.02 फीसद थी। इससे गरीबों के जीवन निर्वाह के साथ उत्पादन क्षेत्र पर बुरा असर पड़ता है। अगर मूल्य बहुत ज्यादा समय तक ऊंचे स्तर पर रहता है, तो महंगाई गरीबों को प्रभावित करती है।

निश्चित रूप से नीति आयोग द्वारा जारी बहुआयामी गरीबी में कमी का सूचकांक अब भी उत्सव मनाने लायक परिदृश्य नहीं है। भारत को अब भी निम्न आय वाला देश माना जाता है। विभिन्न वर्गों की प्रति व्यक्ति आय में संतुलित वृद्धि से अधिक लोग गरीबी के दायरे से बाहर आएंगे और उनका जीवन बेहतर होगा। इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि विकास की प्रक्रिया और गरीबी उन्मूलन में देश के कुछ प्रदेश बहुत पीछे छूट गए हैं।

इन राज्यों के समावेशी विकास पर विशेष ध्यान देना होगा। इसके साथ-साथ यह मूल्यांकन करना होगा कि क्या अब भी उन लोगों को एक समान राहत और नकद हस्तांतरण किया जाए, जो बहुआयामी गरीबी के दायरे से बाहर आ चुके हैं। गरीब और कमजोर वर्ग के युवाओं के लिए रोजगार के मौके जुटाने के लिए एक ओर सरकार द्वारा शुरू की गई डिजिटल शिक्षा के रास्ते में दिखाई दे रही कमियों को दूर करना होगा। उन्हें कौशल प्रशिक्षण देकर नए कौशल सिखाने होंगे। ऐसे विभिन्न रणनीतिक प्रयासों से जहां देश में बहुआयामी गरीबी में और कमी लाई जा सकेगी, वहीं आय असमानता को कम करने में भी मदद मिल सकेगी।