हाल में ‘तिब्बतन पॉलिसी एंड सपोर्ट ऐक्ट-2020’ पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दस्तखत किए हैं, जिसपर चीन ने मुखर विरोध शुरू कर दिया है। अमेरिका का नया कानून उसके ‘तिब्बत पॉलिसी ऐक्ट 2002’ का ही संवर्धित रूप है। इसके तहत अमेरिका ने वचनबद्धता दोहराई है कि चौदहवें दलाई लामा के उत्तराधिकारी के चयन में तिब्बती बौद्ध समुदाय की ही बात सुनी जाए और चीन का उसमें बेवजह और गैरजिम्मेदाराना दखल ना हो।

चीन इस कानून के प्रारूप को लेकर काफी सशंकित रहा है और दबी जबान से इसका विरोध भी करता रहा है। हालांकि, उसे यह पता है कि अमेरिकी सरकार के कानूनी प्रावधानों पर उसका कोई जोर नहीं चलेगा। ट्रंप के हस्ताक्षर की खबर के बाद भी चीन ने इस पर अपना विरोध जताया और कहा है कि अमेरिकी सरकार के इस कदम से दोनों देशों के बीच संबंध और खराब होंगे।

दरअसल ‘तिब्बतन पॉलिसी एंड सपोर्ट ऐक्ट-2020’ अमेरिका के ‘तिब्बत पॉलिसी ऐक्ट 2002’ का ही परिमार्जित रूप है। तिब्बत पॉलिसी ऐक्ट 2002 जॉर्ज डब्लू बुश के कार्यकाल में पारित किया गया था। 2020 का कानून पहले से काफी सख्त है और तिब्बत को लेकर चीन पर दबाव बनाने के उद्देश्य से इसे लाया गया है।

इस कानून के तहत अमेरिका ने इस बात की वचनबद्धता दोहराई है कि चौदहवें दलाई लामा के उत्तराधिकारी के चयन में तिब्बती बौद्ध समुदाय की ही बात सुनी जाए और चीन का उसमें बेवजह और गैरजिम्मेदाराना दखल ना हो।

यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी तिब्बती मामलों के अमेरिकी सरकार के विशेष समन्वयक रॉबर्ट डेस्ट्रो को सौंप दी गई है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय में इस बात पर कूटनीतिक समर्थन जुटाना भी रॉबर्ट के कार्यक्षेत्र में है। माना जा रहा है कि अगर अमेरिका और चीन के संबंध बदतर होते हैं, तो तिब्बत का मुद्दा जंगल की आग बन सकता है।

दलाई लामा तिब्बती बौद्ध समुदाय के सर्वोच्च धर्मगुरु हैं। मौजूदा दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो हैं, जो तिब्बती बौद्ध समुदाय के चौदहवें दलाई लामा हैं। वे 1959 में तिब्बत पर चीन के कब्जे के बाद भारत आ गए थे और तब से भारत के धर्मशाला में ही निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे हैं। वर्ष 1959 से 2012 तक वे तिब्बत की निर्वासित सरकार – केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के सर्वोच्च प्रशासक भी रहे। उनका कार्यभार उनके उत्तराधिकारी लोबसांग सांगे ने संभाल लिया है, जो हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में प्रधानमंत्री की हैसियत से केंद्रीय तिब्बती प्रशासन का कामकाज देख रहे हैं।

चौदहवें दलाई लामा के उत्तराधिकारी को लेकर चीन और तिब्बती समुदाय में विवाद और मतभेद रहा है। पंद्रहवें दलाई लामा को लेकर अब तक चौदहवें दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो ने कोई ठोस सुराग नहीं दिए हैं, ना ही उन्होंने यह साफ किया है कि उनके उत्तराधिकारी की पहचान कैसे हो। चीन इस मुद्दे पर काफी जोर-शोर से जुटा है।

1995 में ही चीन ने दलाई लामा या तिब्बती बौद्ध समुदाय से बिना किसी बातचीत और बहस मुबाहिसे के 11वें पंचेन लामा की घोषणा कर दी थी। दलाई लामा ने चीनी पंचेन लामा को यह कह कर अमान्य करार दिया कि अपना उत्तराधिकारी चुनना सिर्फ उनके कार्य अधिकार का हिस्सा है। इसे वे खुद अपने चुने सहयोगियों की मदद से ही करेंगे।

दूसरी ओर, चीनी सरकार ने कहा है कि उसे पंद्रहवें दलाई लामा का चयन करने का हक है। अपनी मर्जी का धर्मगुरु चुन कर चीन एक ओर तिब्बत की निर्वासित सरकार को विफल करना चाहता है। दूसरी ओर, इससे तिब्बत में वह अपनी स्वीकार्यता बढ़ाना चाहता है।

अमेरिकी सरकार के ल्हासा में अपना राजनयिक केंद्र खोलने की बात भी कही है और यह भी कहा गया है कि जब तक चीन अमेरिका को तिब्बत में अपना राजनयिक कार्यालय नहीं खोलने देता, तब तक अमेरिका में भी चीन को कोई नया राजनयिक केंद्र खोलने की अनुमति नहीं होगी।